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MP Politics: भाजपा और कांग्रेस के लिए क्यों नाक का सवाल है राज्यसभा चुनाव?

मध्य प्रदेश की तीन राज्यसभा सीटों में से दो भाजपा और एक कांग्रेस को मिलना है फिर भी आखिरी समय तक एक-एक वोट के लिए खींचतान मची हुई है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Published: Thu, 18 Jun 2020 08:36 PM (IST)Updated: Fri, 19 Jun 2020 10:19 AM (IST)
MP Politics: भाजपा और कांग्रेस के लिए क्यों नाक का सवाल है राज्यसभा चुनाव?
MP Politics: भाजपा और कांग्रेस के लिए क्यों नाक का सवाल है राज्यसभा चुनाव?

ऋषि पांडेय, भोपाल। यह बात साफ है कि मध्य प्रदेश की तीन राज्यसभा सीटों में से दो भाजपा और एक कांग्रेस को मिलना है, फिर भी आखिरी समय तक एक-एक वोट के लिए खींचतान मची हुई है। दोनों दल इस चुनाव को ऐसे लड़ रहे हैं मानो आखिरी समय कुछ उलटफेर कर सकते हैं, जबकि ऐसा होना असंभव है। सपा-बसपा, निर्दलीय विधायकों को कांग्रेस के पाले से खींचकर अपने पक्ष में करना, कांग्रेस द्वारा जीतने वाले उम्मीदवार को निर्धारित से दो वोट ज्यादा दिलाने की रणनीति बनाना, यह बताता है कि दोनों दल राई बराबर जोखिम उठाने को तैयार नहीं हैं।

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ऐसे में यह समझना दिलचस्प होगा कि सब कुछ साफ होते हुए भी सियासी दल इतनी मशक्कत क्यों कर रहे हैं? राष्ट्रीय फलक पर नजर दौड़ाएं तो भाजपा के लिए राज्यसभा में बहुमत के लिए एक-एक सीट का कितना महत्व है। मार्च से पहले भाजपा को मध्य प्रदेश से केवल एक सीट मिल रही थी। यानी यहां से उसे एक सीट का घाटा हो रहा था, लेकिन अब स्थिति जस की तस रहेगी। यानी दो भाजपा और एक कांग्रेस। अब बात करें प्रदेश की। मध्य प्रदेश की सियासत को मार्च में 360 डिग्री से घुमाने वाले घटनाक्रम की तमाम वजहों में से एक राज्यसभा चुनाव भी है।

जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के अंदरखाने मचे संघर्ष की नींव में राज्यसभा के टिकट बंटवारे से उपजे अपमान की टीस भी थी। पार्टी सूत्र कहते हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्यसभा भेजा तो जा रहा था, लेकिन दूसरी वरीयता पर। यह उन्हें नागवार गुजरा। पिछले साल-सवा साल से कई मुद्दों को लेकर उनके मन में चल रहे असंतोष को राज्यसभा के वरीयता क्रम ने आंच दिखा दी, फिर जो नतीजा हुआ वह सबके सामने हैं।

भाजपा ने बनाया था अनुसूचित जाति का दबाव

इन चुनावों को लेकर दोनों ही दल फूंक-फूंक कर कदम उठा रहे हैं। यह जानते हुए भी कि संख्या बल के हिसाब से भाजपा को दो और कांग्रेस को एक सीट मिलना तय है। इसके बावजूद ऐसी रणनीति बनाई जा रही है, जिसे कोई भेद न पाए। कांग्रेस की कोशिश है कि उसके प्रथम वरीयता के उम्मीदवार की जीत में कोई गफलत न हो जाए, इसलिए वह जीत के लिए आवश्यक 52 वोटों से दो ज्यादा वोट दिग्विजय को दिलाने के लिए जुट गई है। 54 विधायकों को बता दिया गया है कि उन्हें दिग्विजय को वोट देना है।

दूसरे उम्मीदवार फूल सिंह बरैया को लेकर पिछले दो माह से जारी अफवाहों को देखते हुए कांग्रेस के लिए यह जरूरी हो गया था कि वह दिग्विजय सिंह की जीत सुनिश्चित कराए। पार्टी के अंदरखाने की खबरों को भाजपा ने हवा देते हुए यह दबाव बनाने की कोशिश की थी कि यदि कांग्रेस अनुसूचित जाति की इतनी ही खैरख्वाह है तो वह बरैया को राज्यसभा भेजे। अब बरैया को उपचुनाव लड़ाए जाने की चर्चा चल पड़ी है।

सिंधिया के बहाने कांग्रेस को जवाब देने की तैयारी

दूसरी ओर भाजपा की रणनीति है कि वह ज्योतिरादित्य सिंधिया को आवश्यक मतों से ज्यादा वोट दिलवा कर कांग्रेस को राजनीतिक जवाब दे। भाजपा के पास खुद के 107 वोट हैं। दोनों उम्मीदवारों को जिताने के बावजूद उसके पास तीन वोट अतिरिक्त बचेंगे। इसके बाद वह निर्दलीय और सपा-बसपा विधायकों को सिंधिया के पक्ष में कर उन्हें ज्यादा वोट दिलवा सकती है।

सिंधिया को लेकर कांग्रेस द्वारा फैलाए जा रहे भ्रम को इस कदम से भाजपा जवाब देगी। इसके अलावा पार्टी यह भी संदेश देना चाहेगी कि उपचुनावों के बाद वह स्थिर सरकार देने में सक्षम होगी, क्योंकि उसे बहुमत के लिए कांग्रेस के मुकाबले कम वोटों की जरूरत है। सपा-बसपा और निर्दलीयों ने आकर उसकी इस समस्या का काफी हद तक समाधान भी कर दिया है। पार्टी के भीतर अंसतोष को दबाने के लिए भी तीसरी ताकत का समर्थन नेतृत्व को राहत दिलाने वाला होगा।


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