Upper Caste Reservation Analysis: मोदी सरकार के इस फैसले का होगा दूर तक असर, जानिए
Upper Caste Reservation लोकसभा चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी सरकार ने अगड़ों की नाराजगी दूर करने के लिए सवर्ण आरक्षण का कार्ड खेला है, जिसका दूरगामी असर होगा।
नई दिल्ली, जेएनएनः लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नरेंद्र मोदी सरकार ने Upper caste Reservation का दाव खेलकर विपक्ष को चित करने का पूरा इंतजाम कर दिया है। विपक्ष चाहे तो इसे तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली हार का नतीजा बताए लेकिन राजनीतिक पंडितों का मानना है कि यह फैसला दूरगामी असर वाला होगा। इस कदम में जाटों, मराठों और पाटीदारों के आंदोलन को शांत करने की क्षमता है। हालांकि कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार का यह कदम विधायिका और न्यायपालिका की बाधा पार नहीं कर पाएगा।
इस बारे में जागरण डॉट कॉम ने राजनीतिक विश्लेषकों से बात कर उनकी राय जानने की कोशिश की। वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह का कहना है कि सवर्णों के लिए आरक्षण की मांग लंबे समय से थी। एक वर्ग की यह भी मांग है कि पूरा का पूरा आरक्षण आर्थिक आधार पर हो। लेकिन किसी भी सरकार के लिए यह करना राजनीतिक रूप से संभव नहीं है क्योंकि कोई एससी-एसटी और ओबीसी को नाराज नहीं कर सकता है।
देश भर में होगा असर
इस फैसले को वे कैसे देखते हैं, इस पर उन्होंने कहा कि पांच राज्यों के चुनाव में सवर्णों की नाराजगी को दूर करने का यही एक सकारात्मक उपाय है। इसका पूरे देश में असर होगा, जहां जहां आंदोलन हुए। पाटीदार, जाट और मराठा का आंदोलन की भी धार कम होगी। लोकसभा चुनाव से पहले Upper caste Reservation एक गेमचेंजर है लेकिन इसका जमीनी असर बहुत ज्यादा नहीं होगा क्योंकि सरकारी नौकरियां पहले से कम हो रही है। भाजपा को इसका काफी फायदा मिलेगा। यह एक ऐसा आरक्षण है जिसे किसी से छीन कर नहीं दिया जा रहा है।
यह फैसला लागू करने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा। मंगलवार को सरकार इस बारे में संशोधन विधेयक पेश करने जा रही है। लोकसभा में यह विधेयक आसानी से पारित हो जाएगा क्योंकि सरकार को वहां बहुमत है। राज्यसभा में हालांकि बहुमत उसके पक्ष में नहीं है लेकिन इस कदम का शायद ही कोई राजनीतिक दल विरोध करे क्योंकि Upper caste Reservation की मांग न सिर्फ काफी पुरानी है बल्कि इसे सभी राजनीतिक दलों का समर्थन प्राप्त है। वैसे भी चुनाव इतने नजदीक हैं कि कोई भी इसका विरोध करने का जोखिम नहीं उठा सकता है।
राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार अरविंद मोहन का मानना है कि Upper caste Reservation का यह फैसला बहुत दूर तक नहीं जाएगा। तकनीकी रूप से फंस जाएगा। सरकार इसे लागू करने के लिए संविधान संशोधन विधेयक ला रही है लेकिन इसे राज्यसभा में भी पारित कराना मुश्किल होगा। लोकसभा में भी आसानी नहीं होगी क्योंकि सहयोगी दल इस पर भाजपा का साथ देंगे, ऐसा लग नहीं रहा है। इसके अलावा आर्थिक आधार पर आरक्षण देना संभव ही नहीं है। जन्मजात रूप से पिछड़े लोगों को ही आरक्षण दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट इस बारे में स्पष्ट फैसला दे चुका है।
बहुत फायदा नहीं होगा
इसके अलावा सवर्णों के आरक्षण (Upper caste Reservation) के लिए जो मानक सोचे जा रहे हैं उसके अनुसार कोई भी सवर्ण इसके दायरे से बाहर नहीं होगा क्योंकि गांवों में जमीनें इतनी ज्यादा बंट चुकी हैं कि किसी के पास पांच एकड़ जमीन नहीं बची है। जिनके पास बची है, वे आगे बंटवारा कर लेंगे। मुझे नहीं लगता है कि भाजपा को इसका राजनीतिक रूप से कोई बहुत फायदा होगा। अलबत्ता इस फैसले के जरिए मोदी सरकार ने यह मान लिया कि वह अगले आम चुनाव को लेकर व्यग्र हैं। सरकार ने यह भी मान लिया कि तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में उसे अगड़ों की नाराजगी का नतीजा भुगतना पड़ा है।
जानेमाने समाजविज्ञानी एवं प्रयागराज स्थित गोविंद बल्लभ पंत समाज विज्ञान संस्थान के निदेशक बदरीनारायण कहते हैं कि यह नैतिक सवाल है जिसे भाजपा हल करने की कोशिश कर रही है। Upper caste Reservation के इस फैसले की टाइमिंग को लेकर संशय पैदा हो सकता है। सवर्ण कितना खुश होंगे, कहना मुश्किल होगा। अनुसूचित जातियों एवं ओबीसी में भी प्रतिक्रिया हो सकती है क्योंकि वे इसे अपनी हिस्सेदारी पर हमला मान सकते हैं। यह भी देखना होगा कि सवर्णों के आरक्षण की हिमायत कर रही पार्टियां सचमुच में इसका कितना समर्थन करती हैं। कुल मिलाकर मुझे नहीं लगता है कि यह भाजपा के लिए आम चुनावों में कोई फायदे का सौदा साबित होगा।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीति पर करीबी नजर रखने वाले प्रंजय गुहाठाकुरता Upper caste Reservation के इस फैसले को दूसरे नजरिए से देखते हैं। उनका कहना है कि एक तरह से चुनाव के पहले यह सिर्फ राजनीतिक कारणों से किया गया फैसला है। भाजपा तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव हार गई हैं। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हार को छुपाने के लिए सरकार अलग-अलग रास्ता ढूंढ रही है।
असर के बारे में आश्वस्त नहीं
वे कहते हैं कि सरकार के कर्ता-धर्ता सिर्फ यही सोच रहे हैं कि वे कैसे चुनाव जीत सके। वे सोच रहे हैं कि सवर्ण लोग भाजपा को छोड़कर जा रहे हैं। Upper caste Reservation के इस फैसले का क्या असर होगा, इस बारे में उनका कहना है कि सब कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि सवर्ण क्या सचमुच में भाजपा को वोट देते हैं कि नहीं। वैसे कुल मिलाकर सरकार बाहर के अलावा भीतर से भी परेशान है। भाजपा के अंदर भी सरकार का विरोध हो रहा है। नितिन गडकरी कह चुके हैं कि हार का क्रेडिट भी कप्तान को लेना चाहिए। यही नहीं, उन्होंने जवाहरलाल नेहरू की भी तारीफ की। इससे पता चलता है कि भाजपा में सबकुछ ठीक नहीं है। तीन राज्यों के चुनाव हारने के बाद संघ परिवार में हलचल मची हुई है, यह उसका नतीजा है।