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#Me Too के आरोपों में घिरे एमजे अकबर ने मंत्री पद से दिया इस्तीफा

मी टू के तहत एम जे अकबर 16 महिला पत्रकारों ने यौन शोषण के आरोप लगाए थे, जबकि 20 महिलाएं इन आरोपों के समर्थन में आईं थीं।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Wed, 17 Oct 2018 04:58 PM (IST)Updated: Wed, 17 Oct 2018 07:16 PM (IST)
#Me Too के आरोपों में घिरे एमजे अकबर ने मंत्री पद से दिया इस्तीफा
#Me Too के आरोपों में घिरे एमजे अकबर ने मंत्री पद से दिया इस्तीफा

नई दिल्ली, एएनआइ। मी टू के आरोपों के चलते विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर ने बुधवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। मी टू के तहत एम जे अकबर पर 16 महिलाओं ने यौन शोषण के आरोप लगाए थे, जबकि 20 महिलाएं इन आरोपों के समर्थन में आईं हैं। पिछले रविवार को विदेश दौरे से लौटने के बाद अकबर ने न सिर्फ इस्तीफा देने से इनकार किया था बल्कि अपने उपर लगे सारे आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताया था। गुरुवार को दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट में एम जे अकबर द्वारा प्रिया रमानी पर किए गए मानहानी के दावे पर सुनवाई भी है।

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माना जा रहा है कि कोर्ट सुनवाई में यौन उत्पीड़न के मामले में बतौर विदेश राज्य मंत्री उनके उपस्थित होने से सरकार को जो असहजता होती उसे देखते हुए अकबर से इस्तीफा लिया गया है। यह पहला मामला है जब राजग सरकार के कार्यकाल में किसी मंत्री ने किसी आरोप की वजह से इस्तीफा दिया है। अकबर ने इस्तीफे के बाबत लिखे अपने पत्र में कहा है कि, ''मैंने न्यायालय में व्यक्तिगत तौर पर न्याय की मांग की है। ऐसे में अपने पद से इस्तीफा देना और फिर अपने उपर लगे आरोपों का सामना करना सही जान पड़ता है। ऐसे में मैंने विदेश राज्य मंत्री के तौर पर अपना इस्तीफा दे दिया है। मैं पीएम नरेंद्र मोदी और विदेशी राज्य मंत्री सुषमा स्वराज का आभारी हूं कि उन्होंने मुझे देश सेवा का मौका दिया।''

     

सूत्रों के मुताबिक राज्य सभा सांसद व विदेश राज्य मंत्री एम जे अकबर पर यौन शोषण के आरोपों पर सरकार अभी तक यह मान रही थी कि अकबर को अपना पक्ष रखने का मौका मिलना चाहिए। लेकिन अकबर की तरफ से मानहानि का आपराधिक मामला दायर करने के बावजूद जिस तरह से अकबर के खिलाफ आरोप लगने का सिलसिला बंद नहीं हुआ उसे देखते हुए सरकार के विचार में भी बदलाव आया।

खास तौर पर यह साफ होने के बाद कि अकबर की तरफ से दायर मामले पर मानहानि का मुकद्दमा गुरुवार से शुरु होगा उससे एक नई चिंता पैदा हो गई थी। बतौर सरकार के मंत्री अकबर का अदालत में उपस्थित होना भी सरकार के लिए एक अच्छी बात नहीं होती। अकबर के मुद्दे पर कांग्रेस व वामदल लगातार अकबर के इस्तीफे की मांग कर रहे थे। सनद रहे कि रविवार को विदेश से लौटने के बाद अकबर ने अपने उपर लगे आरोपों से साफ तौर पर इनकार किया था और इन्हें पूरी तरह से गलत व बेहद पीड़ादायक करार दिया था। अकबर पर यौन शोषण का आरोप लगाने वाले तमाम महिला पत्रकारों ने उनके इस्तीफे का स्वागत किया है।

अकबर के इस्तीफे के बाद आया प्रिया रमानी का बयान 
एम जे अकबर के इस्तीफा देने के बाद उन पर सबसे पहले आरोप लगाने वाली प्रिया रमानी ने ट्वीट कर कहा है कि आज मैं एक महिला के रूप में एमजे अकबर के इस्तीफे को सही तरीके से महसूस कर सकती हूं, लेकिन मुझे अभी भी उस दिन की प्रतीक्षा है जब इसके लिए मुझे अदालत से न्याय मिलेगा।, वहीं गजाला वहाब ने कहा कि यह तीन दिन पहले ही हो जाना चाहिए था। 

         

इसके पहले यौन शोषण के आरोपों से घिरे विदेश राज्य मंत्री एमजे अकबर के खिलाफ पत्रकार प्रिया रमानी समेत कई महिलाओं ने मोर्चा खोल दिया था। एमजे अकबर द्वारा मानहानि का केस दर्ज कराने के बाद प्रिया रमानी के समर्थन में 20 महिला पत्रकार सामने आई थी जिसके बाद अकबर को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। आरोप लगाने वाली ये सभी महिला पत्रकार 'द एशियन एज' अखबार में काम कर चुकी हैं। इन महिला पत्रकारों ने एक संयुक्त बयान में रमानी का समर्थन करने की बात कही है। साथ ही, अदालत से निवेदन किया है कि अकबर के खिलाफ उन्हें सुना जाए।

'आरोप लगाने वालों में अकेली नहीं हैं प्रिया रमानी ....'
मी टू के तहत एम जे अकबर के खिलाफ जारी संयुक्त बयान में दावा किया गया है कि उनमें से कुछ (महिला पत्रकारों) का अकबर ने यौन उत्पीड़न किया है, जबकि कई अन्य महिलाएं भी इसकी गवाह हैं। महिला पत्रकारों ने अपने हस्ताक्षर वाले संयुक्त बयान में कहा है, 'इस लड़ाई में प्रिया रमानी अकेली नहीं हैं। हम मानहानि के मामले सुनवाई कर रही माननीय अदालत से आग्रह करते हैं कि याचिकाकर्ता (एमजे अकबर) के हाथों हममें से कुछ के यौन उत्पीड़न को लेकर और अन्य हस्ताक्षरकर्ताओं (महिला पत्रकारों) की गवाही पर विचार किया जाए, जो इस उत्पीड़न की गवाह थीं।’

एम जे अकबर के खिलाफ इन महिला पत्रकारों ने जारी किया संयुक्त बयान
एम जे अकबर पर मी टू के तहत 'द एशियन एज' अखबार में काम कर चुकीं पत्रकारों जिन्होंने संयुक्त बयान पर दस्तखत किए हैं, उनमें मीनल बघेल (1993-1996), मनीषा पांडेय (1993-1998), तुषिता पटेल (1993-2000), कणिका गहलोत (1995-1998), सुपर्णा शर्मा (1993-1996), रमोला तलवार बादाम (1994-1995), होइहनु हौजेल (1999-2000), आयशा खान (1995-1998), कुशलरानी गुलाब (1993-1997), कनीजा गजारी (1995-1997), मालविका बनर्जी (1995-1998), ए टी जयंती (1995-1996), हामिदा पार्कर (1996-1999), जोनाली बुरागोहैन, मीनाक्षी कुमार (1996-2000), सुजाता दत्ता सचदेवा (1999-2000), रेशमी चक्रवाती (1996-98), किरण मनराल(1993-96) और संजरी चटर्जी शामिल हैं। डेक्कन क्रॉनिकल की एक पत्रकार क्रिस्टीना फ्रांसिस (2005-2011) ने भी इस बयान पर हस्ताक्षर किए हैं।


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