सरकार की कई योजनाओं ने गरीबी की ताबूत में ठोकी अंतिम कील
यह अनुमान लगाया जा रहा है कि जिस तरह गरीबी के कारणों की जड़ पर हमला हुआ है उसके कारण यह आंकड़ा बहुत तेजी से घटेगा।
सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। लगभग पचास साल लगाए गए गरीबी हटाओ नारे पर शायद पिछले पांच छह सालों में ही अहम कदम बढ़ा है। मूलभूत जरूरतें पूरी होने के साथ ही गरीबी उन्मूलन की रफ्तार तेज हुई है और आयुष्मान जैसी योजना तो संभवत: गरीबी की ताबूत पर आखिरी कील साबित हो सकती है।
यूं तो गरीबी को लेकर आखिरी आंकड़ा सात साल पहले आया था और उस वक्त यह तकरीबन 30 फीसद थी। माना जा रहा है नया आंकड़ा जून 2019 में आएगा। फिलहाल यह अनुमान लगाया जा रहा है कि जिस तरह गरीबी के कारणों की जड़ पर हमला हुआ है उसके कारण यह आंकड़ा बहुत तेजी से घटेगा। दरअसल पिछले कुछ वर्षो में उन्हें गरीबी से निकालने का समग्र प्रयास पहली बार किया गया है। 2022 तक हर किसी को पक्का मकान देने पर काम युद्ध स्तर चल रहा है।
पिछले चार साल में दो करोड़ मकान बन चुके हैं। खेतिहर मजदूरों को मनरेगा के तहत काम देने के लिए आवंटन 2013-14 के लगभग 34 हजार करोड़ के मुकाबले अब बढ़कर सालाना 58 हजार करोड़ रुपये हो गया है। पहली बार काम कागजों पर नहीं बल्कि जमीन पर दिखाई दे, इसके लिए जियो टैगिंग जैसी आधुनिक टेक्नोलॉजी मुफीद साबित हुई है।
इससे गांव व गरीबों की योजनाओं में सेंध लगाना आसान नहीं रह गया है। अब तक 23 राज्यों के 40 लाख पक्के मकानों को जियो टैग कर दिया गया है। जबकि मनरेगा के तहत तकरीबन 3.5 करोड़ निर्मित विकास कार्यों को जियो टैग कर दिया गया है।
गरीबी को मापदंडों के आधार पर आंका जाता है और सरकार ने उन मानकों पर ही काम तेज किया है। सभी घरों में शौचालय और पेयजल की सुविधा मुहैया कराई जा रही है। ऐसे गरीबों को लकड़ी या गोबर के कंडे पर भोजन पकाने से भी मुक्त किया जा रहा है। सभी को मुफ्त रसोई गैस और उसका चूल्हा दिया गया। कोई घर ऐसा नहीं होगा जिसमें बिजली का कनेक्शन न हो।
पीएमजीएसवाई की सड़कों से सभी गांवों को हर मौसम में पक्की व काली सड़क से जोड़ दिया गया है। संपर्क मागरें से सभी गांव जोड़ दिये गये हैँ। लगभग डेढ़ लाख ग्राम पंचायतें इंटरनेट कनेक्शन से पहले ही जुड़ चुकी हैं। अपने खेतों के खसरे व खतौनी की नकल के लिए अब उन्हें गांव के आसपास के सामुदायिक केंद्र से दूर कहीं और नहीं जाना पड़ता है। जाहिर है कि इन सुविधाओं से जहां गरीबों का जीवन सुगम हुआ है वहीं गरीबों की संख्या में तेजी से गिरावट आई होगी।
पहले जहां 38 फीसद लोग शौचालय का उपयोग करते थे, वह आंकड़ा बढ़कर अब 98 फीसद को छूने लगा है। इसके चलते जलजनित बीमारियों का प्रकोप घटा है। गरीबों के बच्चों में कुपोषण की समस्या का स्थायी समाधान मिल गया है। गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा का प्रावधान किया गया है। इलाज की पुख्ता बंदोबस्त से गरीबी से शत प्रतिशत मुकाबला संभव हो गया है। गंभीर बीमारियों की वजह से सामान्य आय के परिवार भी गरीबी के अंधकूप में लुढ़क जाते थे। ऐसे में आयुष्मान जैसी स्वास्थ्य योजना अगले कुछ सालों में गरीबी की ताबूत पर आखिरी कील साबित हो सकती है।