Maharashtra Political Crisis: क्या महाराष्ट्र में भी दोहराया जाएगा कर्नाटक और मध्य प्रदेश, जानें क्या है इनमें समानता
है। महाराष्ट्र सरकार में दिग्गज मंत्री एकनाथ शिंदे पार्टी में काफी संख्या में विधायकों के साथ गुजरात के सूरत के एक होटल में रुके हुए हैं। महाराष्ट्र सरकार पर संकट के बादल छाये हुए हैं। यहां भी हालत कर्नाटक और मध्य प्रदेश जैसे हो रहे हैं।
नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। राज्यसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र राज्य विधान परिषद चुनाव रिजल्ट ने उद्धव ठाकरे सरकार को खतरे के क्षेत्र में डाल दिया, जहां भाजपा ने राज्य विधानसभा के 288 सदस्यों में से 145 के बहुमत के मुकाबले 134 वोट हासिल किए। इस चुनाव में महा विकास अघाड़ी का जनाधार बुरी तरह से गिरकर 169 मतों से घटकर 151 ही रह गया है। इसके बाद महाराष्ट्र में सियासी संकट गहरा गया है। महाराष्ट्र सरकार में दिग्गज मंत्री एकनाथ शिंदे पार्टी में काफी संख्या में विधायकों के साथ गुजरात के सूरत के एक होटल में रुके हुए हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि महाराष्ट्र सरकार पर संकट के बादल छाये हुए हैं। यहां भी हालत कर्नाटक और मध्य प्रदेश जैसे हो रहे हैं। इन दोनों राज्यों में सरकार गिरने की शुरुआत कुछ विधायकों की नाराजगी से हुई। कर्नाटक में भी नाराज विधायक पहले गुजरात के सूरत गये थे और मध्य प्रदेश के नाराज विधायक बेंगलुरु गए थे।
जानें क्या है महाराष्ट्र और कर्नाटक में समानता
महाराष्ट्र की उद्धव सरकार की स्थिति अब जुलाई 2019 में कर्नाटक की जेडीएस-कांग्रेस की गठबंधन सरकार जैसी हो गई है। उस समय कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस के 16 विधायक भाजपा के संपर्क में थे और अब महाराष्ट्र में 26 विधायक बीजेपी शासित गुजरात के एक होटल में ठहरे हैं। ये सभी विधायक मुख्यमंत्री उद्धव की पार्टी शिवसेना से नाराज हैं। माना जा रहा है कि एक समय एकनाथ शिंदे को शिवसेना में पार्टी का संकटमोचक माना जाता था, उनकी पार्टी में स्थिति वैसी नहीं जैसे पहले थी, ऐसे में वह बगावत को मजबूर हुए। कुछ ऐसी ही सियासी संकट की स्थिति मध्य प्रदेश में अप्रैल, 2020 में बनी थी, जब खबरें आ रही थीं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट के करीब 22 विधायक भाजपा नेतृत्व के संपर्क में थे। तो ऐसे में सवाल है कि क्या अब महाराष्ट्र में भी कर्नाटक और मध्य प्रदेश की तरह राजनीतिक हालात बदलेंगे?
महाराष्ट्र में फ़िलहाल राजनीतिक समीकरण क्या हैं, यह समझने से पहले यह जान लें कि मध्य प्रदेश में 2020 में कांग्रेस और 2019 में कर्नाटक में जेडीएस-कांग्रेस की सरकार के गिरने से पहले कैसी स्थिति थी।
2019 में गिर गई थी कर्नाटक सरकार
जिस तरह के राजनीतिक हालात महाराष्ट्र में मौजूदा समय में हैं, कुछ वैसे ही हालात कर्नाटक में जनवरी 2019 में थे। तब ऐसी खबरें आ रही थीं कि भाजपा नेतृत्व जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन के 16 विधायकों के संपर्क में है। छह माह में यानी जुलाई 2019 में जेडीएस-कांग्रेस सरकार गिर गई थी। इसके बाद 14 माह में कुमारस्वामी सरकार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा सौंप दिया था।
कर्नाटक में क्या हुआ?
कर्नाटक की सत्ता पर लंबे समय से भाजपा की नज़र थी। विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सीटें जीतने के बाद भी वह सरकार नहीं बना सकी थी। विश्लेषकों का मानना है कि कर्नाटक में सरकार बनाने के लिए भाजपा ने ‘आपरेशन लोटस’ चलाया था और कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों को तोड़ने की कोशिश की। 14 महीने में ही कुमारस्वामी सरकार गिर गई और वहां भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिला। यहां तक कि दल बदल विधेयक के कारण जिन 16 विधायकों की सदस्यता चली गई थी, उप चुनाव में उनमें से ज्यादातर फिर से विजयी हुई थे।
मध्य प्रदेश में क्या हुआ?
इसके बाद कयास लगाए जाने लगे थे कि मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार पर भी कभी भी संकट गहरा सकता है। दरअसल, कुल 230 सदस्यों वाली मध्य प्रदेश विधानसभा में कांग्रेस के पास 114 विधायक ही थे। विधानसभा में बहुमत के लिए 116 विधायकों की जरूरत थी। कांग्रेस को 4 निर्दलीय, बीएसपी के 2 और एसपी के 1 विधायक का समर्थन हासिल था। इस तरह कुल 121 विधायक उसके पास थे। इस तरह उसके पास बहुमत से कुछ ही ज्यादा वह दूसरों के समर्थन पर ही टिकी थी। दूसरी तरफ़ भाजपा के पास 108 विधायक थे।
ज्योतिरादित्य सिंधिया की नाराजगी कांग्रेस के लिए पड़ी भारी
2020 की शुरुआत में ही ख़बरें आई थीं कि मध्य प्रदेश में काफी संख्या में विधायक भाजपा के संपर्क में हैं। पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश का मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने और बाद में राज्यसभा सदस्यता का पद उन्हें न देकर दिग्विजय सिंह को दे दिया गया। इससे उनकी नाराजगी काफी बढ़ गई। बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने और 22 विधायकों के मध्य प्रदेश विधानसभा से इस्तीफ़ा देने के बाद कमलनाथ सरकार मुश्किल में आ गई थी। इन विधायकों के इस्तीफ़े के बाद कांग्रेस के पास 92 विधायक रह गए थे।
इसके बाद 20 मार्च 2020 को कमलनाथ ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा सौंप दिया था। कमलनाथ ने कहा था कि भाजपा ने 22 विधायकों को बंधक बनाया और पूरा देश यह जानता है। दल बदल विधेयक के कारण इन विधायकों की सदस्यता चली गई थी। उसके बाद हुए उपचुनाव में ज्यादातर विधायक विजयी हुए। उनमें से कई मंत्री बनाए गए।