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मध्य प्रदेश के IAS अधिकारियों ने राज्य एवं केंद्र सरकार की कार्यप्रणाली पर खड़े किए सवाल

पिछले दो साल में आधा दर्जन से ज्यादा आइएएस अफसर राज्य एवं केंद्र सरकार की कार्यप्रणाली एवं योजनाओं पर सवाल खड़े कर चुके हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 20 Jul 2018 12:16 PM (IST)Updated: Fri, 20 Jul 2018 12:24 PM (IST)
मध्य प्रदेश के IAS अधिकारियों ने राज्य एवं केंद्र सरकार की कार्यप्रणाली पर खड़े किए सवाल

भोपाल [नईदुनिया]। चुनावी साल में मध्य प्रदेश सरकार के लिए अफसर चुनौती बनते जा रहे हैं। आए दिन फेसबुक, ट्विटर और अखबारों में लेख के जरिये अफसर सरकार के लिए नई-नई समस्याएं खड़ी कर रहे हैं। अलबत्ता, अपनी भावनाओं को सार्वजनिक करते हुए अफसर एहतियात बरत रहे हैं। वहीं, सरकार चुनावी माहौल को देखते हुए चुप्पी साधे है। उसे इन मामलों में अफसरों से सवाल-जवाब करने पर माहौल गरमाने और उससे नुकसान होने की आशंका सता रही है। गौरतलब है कि साल के अंत में प्रदेश में विधानसभा चुनाव होंगे।

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पिछले दो साल में आधा दर्जन से ज्यादा आइएएस अफसर राज्य एवं केंद्र सरकार की कार्यप्रणाली एवं योजनाओं पर सवाल खड़े कर चुके हैं। वरिष्ठ आइएएस अधिकारी दीपाली रस्तोगी नौकरशाहों की कार्यशैली पर सवाल उठाकर आजकल चर्चा में हैं। इससे पहले वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्राथमिकता वाले स्वच्छता मिशन पर सवाल खड़े कर चुकी हैं। विकास यात्रा को लेकर फील्ड अफसरों को दिए गए उनके निर्देश भी सरकार को नागवार गुजर रहे हैं, लेकिन सरकार कार्रवाई या सवाल-जवाब करने से बच रही है।

हाल ही में आइएएस अधिकारी भास्कर लक्षकार ने भी अफसरों के स्वभाव पर कटाक्ष किया है। पूर्व आइएएस अधिकारी डीडी अग्रवाल ने फेसबुक पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। उन्होंने श्रीमद् भागवत गीता और रामचरित मानस के हवाले से कलयुग की व्याख्या करते हुए लिखा है कि कलयुग की निशानी है कि राजा खुद चोर हो जाए। उनकी इस पोस्ट को कई यूजर्स ने वर्तमान हालात से जोड़ दिया। हालांकि, विवाद की स्थिति बनने पर अग्रवाल ने अपनी पोस्ट फेसबुक से हटा दी।

जवाब देकर बरी हुए अफसर
पिछले साल तक सरकार और योजनाओं पर कटाक्ष करने वाले अफसरों पर ताबड़तोड़ कार्रवाई की गई। दो अफसरों ने कलेक्टर रहते हुए अपने विचार व्यक्त किए थे। उन्हें हटाया गया और नोटिस भी जारी किए गए। हालांकि, ये अफसर नोटिस का जवाब देकर बरी हो गए। अब सरकार नोटिस देने से भी बच रही है।

अफसर भी एहतियात बरत रहे
पिछले साल कुछ अफसरों पर कार्रवाई के बाद वर्तमान में अफसर सोशल मीडिया पर सोच-विचार कर लिख रहे हैं, लेकिन लिखने से नहीं चूक रहे। उनकी पूरी कोशिश रहती है कि किसी भी विचार को लेकर उनके खिलाफ सिविल सेवा आचरण अधिनियम के तहत कार्रवाई की स्थिति न बने। प्रशासनिक अफसरों की सियासत में दिलचस्पी का पुराना इतिहास रहा है। हाल के समय में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में अफसरों ने तो पद पर रहते हुए भी राजनीति में अपने भावी जीवन की तैयारी शुरू कर दी।

किसने-क्या लिखा
दीपाली रस्तोगी : अंग्रेजी अखबार में लिखे लेख में नौकरशाहों की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए लिखा ‘अच्छा आइएएस अधिकारी वही माना जाता है, जो नेता की इच्छा के अनुरूप काम करे।’ इससे पहले उन्होंने खुले में शौचमुक्त (ओडीएफ) भारत अभियान को औपनिवेशिक मानसिकता से ग्रस्त बताया था।

भास्कर लक्षकार : अफसरों के स्वभाव पर कटाक्ष करते हुए अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट किया कि ‘वो अफसर ही क्या, जो छोटी-मोटी बातों पर सहमत हो जाए।’ इससे पहले वे गायक सोनू निगम से जुड़े विवाद पर एक धर्म को लेकर बेबाक राय फेसबुक पर लिख चुके हैं।

अजय गंगवार : बड़वानी के कलेक्टर रहते हुए फेसबुक पर गांधी-नेहरू परिवार की तारीफ की थी। साथ ही मोदी की नीतियों का विरोध करने वाली एक पोस्ट को लाइक कर दिया था। इसके बाद उनसे कलेक्टरी छीन ली गई थी।

सीबी चक्रवर्ती : नरसिंहपुर कलेक्टर रहते हुए फेसबुक पर लिखा था ‘अगर कथित बुद्धिजीवियों ने आइएएस के बजाय भ्रष्टाचार से घृणा की होती तो अब तक भ्रष्टाचार कम हो चुका होता।’ इसके बाद उन्हें जिले से हटाया गया था। 


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