Lok Sabha Election: जब माधवराव सिंधिया के फेर में फंस गईं थी वसुंधरा, इस रणनीति के कारण कृष्ण सिंह जूदेव से हारी चुनाव
Lok Sabha Election 2024 भिंड-दतिया लोकसभा सीट से वर्ष 1971 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया चुनाव जीती थीं लेकिन 1984 में उन्होंने अपनी बड़ी बेटी वसुंधरा राजे सिंधिया को खड़ा किया जिसका परिणाम ये हुआ जिसकी कल्पना किसी को नहीं थी। चुनाव का रोचक किस्सा यह भी है कि वसुंधरा के खिलाफ चुनाव लड़ रहे कृष्ण सिंह जूदेव कई दफा भावुक भी हो गए थे।
मनोज श्रीवास्तव, भिंड। Lok Sabha Election 2024 लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद से मध्यप्रदेश में भी वार पलटवार की राजनीति तेज हो गई है। मध्यप्रदेश का चुनावी माहौल हमेशा से चर्चा का विषय रहा है। यहां कई सीटें ऐसी हैं जहां भाजपा और कांग्रेस में कांटे की टक्कर देखने को मिलती है। यही हाल वर्ष 1984 में देखने को मिला था।
दरअसल, इसी साल ग्वालियर सीट पर अटलजी की तरह ही कांग्रेस ने आम चुनाव में राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को भी अपनी चुनावी रणनीति में फंसा लिया था। भिंड-दतिया लोकसभा सीट से वर्ष 1971 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया चुनाव जीती थीं, लेकिन 1984 में उन्होंने अपनी बड़ी बेटी वसुंधरा राजे सिंधिया को खड़ा किया, जिसका परिणाम ये हुआ जिसकी कल्पना किसी को नहीं थी।
वसुंधरा को राजनीति में स्थापित करने की थी कोशिश
1984 में राजमाता ने अपनी बड़ी बेटी वसुंधरा राजे को राजनीति में स्थापित करने के लिए भिंड से चुनावी मैदान में उतारा था। बागडोर खुद राजमाता ने संभाली थी, लेकिन पूर्व केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया ने इस चुनाव में दतिया घराने के राजा कृष्ण सिंह जूदेव को कांग्रेस के टिकट पर उतार कर पासा पलट दिया।
पहली बार चुनाव लड़ने वाले कृष्ण सिंह जूदेव को कोई अनुभव नहीं था इसलिए कांग्रेस की तरफ से पूर्व केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया ने प्रचार और अन्य चीजों का जिम्मा उठाया।
पहले ही चुनाव में वसुंधरा को मिली हार
राजमाता की बेटी होने के कारण सभी को उम्मीद थी कि वसुंधरा को चुनाव में जीत मिलेगी। दूसरी ओर इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के लिए देश में सांतवना की लहर थी और कमान राजीव गांधी के हाथ में आ गई थी। इस बीच कांग्रेस ने भिंड-दतिया सीट की जिम्मेदारी पूर्व केंद्रीय मंत्री माधवराव सिंधिया को दी।
माधवराव ने आमसभाएं कर कृष्ण सिंह जूदेव के पक्ष में माहौल तैयार किया। इस चुनाव में वसुंधरा राजे को कृष्ण सिंह जूदेव से 87,403 से मतों से पराजित होना पड़ा था।
कृष्ण सिंह हो जाते थे भावुक
चुनाव का रोचक किस्सा यह भी है कि कृष्ण सिंह जूदेव गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि से होने की वजह से अपने भाषणों के दौरान कई बार भावुक हुए और उनकी आंखें छलक आती थीं। किला चौक पर आखिरी सभा के दौरान तो वह इतने भावुक हो गए कि मतदाताओं के सामने रोते हुए बोले कि पहली बार चुनावी मैदान में हूं, दतिया राजघराने की इज्जत आपके हाथों में हैं। इससे उनके पक्ष में माहौल बन गया।