कई भागों में नंदा देवी पर गायब हुआ था खतरनाक डिवाइस, सीक्रेट मिशन का था हिस्सा
नंदा देवी पर गुम हुआ न्यूक्लियर डिवाइस सौ वर्ष तक एक्टिव रह सकता है। इसको तलाश कर पाना लगभग नामुमकिन है। जानिये आखिर क्यों
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। समुद्र तल से 7816 मीटर ऊंचा नंदा देवी पर्वत भारत की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है। दुनिया की सबसे ऊंची चोटियों में इसका 23वां नंबर आता है। नंदा देवी का ये पर्वत आज सभी की जुबान पर है। इसकी वजह इसकी खूबसूरती नहीं बल्कि कुछ और ही है। दरअसल, नंदा देवी पर्वत 1965 में अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए और भारत सरकार के एक सीक्रेट मिशन का हिस्सा बनी थी। आपको बता दें कि 1964 में चीन ने अपना पहला न्यूक्लियर टेस्ट किया था। चीन के इस टेस्ट की क्षमता का पता लगाने के लिए सीआईए ने भारत सरकार के साथ मिलकर एक मिशन चलाया था। इस गुप्त मिशन के तहत नंदा देवी पर कुछ सेंसर लगाए जाने थे, जो चीन में हुए न्यूक्लियर टेस्ट और इसकी क्षमता को बताने में सहायक साबित हो सकते थे।
पहले अलास्का में हुआ मिशन का ट्रायल
इन सेंसर्स को लगाने से पहले इसका ट्रायल अमेरिका में अलास्का की माउंट किनले पर 23 जून 1965 को किया था। वहां मिली सफलता के बाद नंदा देवी पर इस मिशन को अंजाम देने की प्रक्रिया शुरू हुई। लेकिन नंदा देवी पर मौसम काफी खराब होने की वजह से इसमें सफलता हासिल नहीं हो सकी। मजबूरन वहां सेसर टीम को वापस आना पड़ा। लेकिन इस बीच में एक खास डिवाइस वहां पर छूट गया जो इस मिशन का ही हिस्सा था। मई 1966 में इस डिवाइस की खोज की गई लेकिन कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद 1967 और फिर 1968 में भी इसकी खोज की गई लेकिन उस वक्त भी इस डिवाइस का पता नहीं चल सका। अंत में इस डिवाइस की खोज को बंद कर दिया गया।
सरकार की तरफ से थी जुबान बंद रखने की हिदायत
इतने वर्षों तक यह राज दफ्न था। लेकिन अब यह राज सभी के सामने आ चुका है। इस मिशन के गवाह रहे कैप्टन मनमोहन सिंह ने एक अखबार को दिए इंटरव्यू में इस मिशन से जुड़ी कई बातों का खुलासा किया है। उनके मुताबिक यह मिशन बेहद सीक्रेट था। यही वजह थी कि मिशन के दौरान और बाद में भी मिशन से जुड़े सभी लोगों को यह सख्त हिदायत थी कि इस बारे में कहीं भी कभी भी किसी से कोई बात नहीं करनी है। उनके मुताबिक अमेरिका ने भी इस डिवाइस को लेकर कभी कोई बात नहीं की। जहां तक भारत की बात है तो सरकार ने मिशन के शुरू में ही अपनी बातें पूरी तरह से साफ कर दी थीं।
100 वर्षों तक एक्टिव रहेगा डिवाइस
कैप्टन मनमोहन के मुताबिक इस न्यूक्लियर डिवाइस की उम्र करीब 100 साल की है। अभी इसको दफ्न हुए 40 वर्ष बीत चुके हैं। लिहाजा इसका खतरा अब भी बरकरार है। यह डिवाइस इतना खतरनाक है कि यदि किसी भी सूरत से यह गंगा के पानी से मिल जाता है तो भयानक तबाही ला सकता है। खुद मनमोहन सिंह के मुताबिक यह डिवाइस बेहद गर्म है। एक बार ग्लेशियर से मिलने के बाद यह बर्फ के नीचे लगातार धंसता रहा होगा। ऐसा तब तक होता रहेगा जब तक वह चट्टान से मिल नहीं जाता। एक बार चट्टान से मिलने के बाद यह वहां से नहीं हिल सकेगा।
कौन उठाए खर्च
उनके मुताबिक पहले तकनीक की सुविधा न होने की वजह से भी इस डिवाइस का पता लगापाना काफी मुश्किल था। लेकिन अब तकनीक पहले से बेहतर है। इसके अलावा कई तरह की मशीन हैं जो बर्फ के नीचे करीब 15 फीट तक पता लगा सकती हैं। लेकिन यह मशीन काफी महंगी है और दूसरी सबसे बड़ी वजह नंदा देवी का तेजी से बदलता मौसम है। इसके लिए या तो भारत सरकार को खर्च कर इस डिवाइस का पता लगाना होगा या फिर अमेरिका को यह खर्च उठाना होगा।
डिवाइस को तलाशपाना बेहद मुश्किल
कैप्टन मनमोहन सिंह का कहना है कि वह इस बात को नहीं मानते हैं कि चीन को इस डिवाइस के बारे में कोई भी जानकारी है। इसके अलावा यह चार भागों में है। जिसमें से एक जनरेटर है जो प्लूटोनियम कैप्सूल से जुड़ा है, दूसरा दो ट्रांसमीटर सेट, तीसरा एक रेडियो वेव को पकड़ने के लिए एरियल या एंटीना है। इनकी तलाश कर पाना इसलिए भी मुश्किल है क्योंकि यह सब अलग अलग जगहों पर दफ्न हैं। यदि यह आपस में जुड़े रहते तो भी इनका पता लगापाना आसान हो सकता था, लेकिन जुड़े न रहने पर इनको तलाश कर पाना बेहद मुश्किल है।
हॉलीवुड में फिल्म
इस पूरे मिशन पर हॉलीवुड फिल्म बनने की योजना पर कैप्टन मनमोहन का कहना था कि ग्रेग मैक्लिन ने इसकी स्क्रिप्ट तैयार कर ली है। कास्ट के तौर पर मनमोहन का किरदार रणबीर कपूर निभा सकते हैं। वह सौ फीसद सच्ची घटना पर फिल्म बनाना चाहते हैं। जहां तक इसकी शूटिंग की बात है तो यह मार्च 2020 तक शुरू हो सकती है।