कानून मंत्री किरण रिजिजू ने बोला हमला, कहा- फैसले पक्ष में नहीं आते तो कपिल सिब्बल जैसे नेता करते हैं कोर्ट की आलोचना
केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू का कहना है कि जब फैसले पक्ष में नहीं आते हैं तो कपिल सिब्बल जैसे नेता कोर्ट की आलोचना करने लगते हैं। उन्होंने कहा कि विपक्षी नेताओं को लगता है कि अदालतों को उनके हितों के मुताबिक काम करना चाहिए।
नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट की आलोचना करने के लिए राज्यसभा सदस्य एवं वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल पर निशाना साधते हुए कानून मंत्री किरण रिजिजू ने सोमवार को कहा कि यह पूरे देश के लिए अत्यंत दुखद है कि जब फैसले पक्ष में नहीं आते तो विपक्षी नेता संवैधानिक प्राधिकारियों पर हमले शुरू कर देते हैं। कानून मंत्री ने कहा कि सिब्बल और कुछ कांग्रेस नेताओं द्वारा दिए गए बयान उनकी इस गलतफहमी को दर्शाते हैं कि अदालतों या किसी भी संवैधानिक प्राधिकारी को उनके पक्ष में फैसला करना चाहिए या उनके हितों के मुताबिक काम करना चाहिए। जब भी अदालतें उनकी सोच के विरुद्ध डिक्री या फैसला सुनाती हैं तो वे संवैधानिक प्राधिकरियों पर हमले शुरू कर देते हैं।
एजेंसियां और संस्थान पूरी तरह स्वायत्त
रिजिजू ने कहा, 'यह पूरे देश के लिए अत्यंत दुखद है कि प्रमुख नेता और राजनीतिक दल सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, चुनाव आयोग और अन्य महत्वपूर्ण एजेंसियों जैसे संवैधानिक संस्थानों की आलोचना कर रहे हैं।' उन्होंने कहा कि ये एजेंसियां और संस्थान पूरी तरह स्वायत्त हैं, कानून के नियमों के अनुसार काम करते हैं और कानूनों से निर्देशित होते हैं। कानून मंत्री ने कहा, 'हमारी सरकार की सोच बिल्कुल स्पष्ट है कि देश संविधान और कानून के अनुसार चलना चाहिए। संवैधानिक प्राधिकारियों और अदालतों पर किसी भी तरह का हमला बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय है।'
दो वकीलों ने मांगी अवमानना कार्यवाही की अनुमति
दो अधिवक्ताओं विनीत जिंदल और शशांक शेखर झा ने अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल को अलग-अलग पत्र लिखकर सिब्बल के विरुद्ध अवमानना कार्यवाही शुरू करने की अनुमति मांगी है। अदालतों की अवमानना अधिनियम की धारा-15 के मुताबिक शीर्ष कोर्ट में अवमानना कार्यवाही शुरू करने से पहले अटार्नी जनरल या सालिसिटर जनरल की अनुमति जरूरी है।
सिब्बल ने कहा था, सुप्रीम कोर्ट से नहीं बची कोई उम्मीद
दिल्ली में आयोजित पीपुल्स ट्रिब्यूनल को संबोधित करते हुए सिब्बल ने शनिवार को कहा था, 'अगर आप सोचते हैं कि सुप्रीम कोर्ट से आपको राहत मिलेगी तो बड़ी गलती कर रहे हैं। इस साल मैं सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस के 50 साल पूरे कर लूंगा और 50 साल बाद मुझे लगता है कि मुझे संस्थान से कोई उम्मीद नहीं है। आप सुप्रीम कोर्ट के प्रगतिशील फैसलों की बात करते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर जो कुछ होता है उसमें बड़ा अंतर है। सुप्रीम कोर्ट ने निजता और आपके घर आए ईडी अधिकारियों पर फैसला दिया.. आपकी निजता कहां है?'
सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों की आलोचना
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों की आलोचना की जिनमें 2002 के गुजरात दंगों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कई अन्य को एसआइटी द्वारा दी गई क्लीनचिट को पूर्व कांग्रेस सांसद अहसान जाफरी की विधवा जाकिया जाफरी द्वारा दी गई चुनौती याचिका को खारिज करना, ईडी को असीम शक्तियां देने वाले प्रिवेंशन आफ मनी लांड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के प्रविधानों को बरकरार रखना और छत्तीसगढ़ में नक्सल विरोधी अभियान के दौरान कथित तौर पर सुरक्षा बलों द्वारा 17 आदिवासियों की मौत की घटना की स्वतंत्र जांच की मांग वाली 2009 में दाखिल याचिका खारिज करना शामिल हैं। अब रिटायर हो चुके जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने ये सभी फैसले सुनाए थे और सिब्बल जाकिया जाफरी और पीएमएलए को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए थे।
न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर उठाए सवाल
सिब्बल ने यह भी कहा कि संवेदनशील मामले सिर्फ चुनिंदा जजों को सौंपे जाते हैं और कानून क्षेत्र से जुड़े लोग सामान्यत: पहले से जानते हैं कि फैसला क्या होगा। न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा, 'जिस अदालत में समझौते की प्रक्रिया के जरिये जज बिठाए जाते हैं, जिस अदालत में यह तय करने की कोई प्रणाली नहीं है कि कौन सा केस किस बेंच को जाएगा और जिस अदालत में प्रधान न्यायाधीश फैसला करते हैं कि कौन सा मामला कौन सी पीठ देखेगी और कब देखेगी तो अदालत कभी स्वतंत्र नहीं हो सकती।'
भारत में माई-बाप की संस्कृति
वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा, 'भारत में माई-बाप की संस्कृति है, लोग ताकतवर के कदमों में सिर झुकाते हैं। लेकिन समय आ गया है कि लोग आगे आएं और अपने अधिकारों की रक्षा की मांग करें। स्वतंत्रता तभी संभव है जब हम अपने अधिकारों के लिए खड़े होंगे और आजादी की मांग करेंगे।'