दो दिन बाद शुरू होने वाला है मोदी सरकार का आखिरी मानसून सत्र, होगा बेहद खास
18 जुलाई से 10 अगस्त तक चलने वाला संसद का मानसून सत्र नरेंद्र मोदी सरकार का आखिरी मानसून सत्र होगा। साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यह सत्र और भी महत्वपूर्ण हो गया है।
(कार्तिकेय हरबोला)। लोकसभा का बजट सत्र हंगामेदार रहने के बाद अब हर किसी की निगाहें आगामी मानसून सत्र पर टिकी हुई हैं। 18 जुलाई से 10 अगस्त तक चलने वाला संसद का मानसून सत्र नरेंद्र मोदी सरकार का आखिरी मानसून सत्र होगा। साल के अंत में राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर यह सत्र और भी महत्वपूर्ण हो गया है। ऐसे में 18 कार्य दिवसों के इस सत्र में सरकार कई अहम विधेयकों को पारित कराने पर जोर देगी। उधर विपक्ष अभी से सत्तापक्ष को घेरने की तैयारी में जुट गया है। उसने मानसून सत्र में कश्मीर, आतंकवाद, किसान, दलित उत्पीड़न, पेट्रोल-डीजल की बढ़ी हुई कीमतों और विदेश नीति जैसे मसलों पर सत्तापक्ष को घेरने के संकेत दे दिए हैं। अगले वर्ष आम चुनाव भी होने हैं। ऐसे में चुनावों को ध्यान में रखते हुए मानसून सत्र के दरमियां सदन में विपक्ष अपनी एकजुटता प्रदर्शित करने की कोशिश भी कर सकता है ताकि सदन के साथ-साथ पूरे देश में यह संदेश पहुंच सके कि विपक्ष अब मोदी सरकार के खिलाफ संगठित हो चुका है।
राज्यसभा के उप-सभापति का चुनाव
इस बीच राज्यसभा के उप-सभापति के लिए भी चुनाव होना है। ऐसे में गहमागहमी बढ़ने की संभावना बन सकती है। चूंकि बड़ा दल होने के बावजूद भाजपा के पास राज्यसभा में पर्याप्त बहुमत नहीं है। लिहाजा भाजपा को अपने प्रत्याशी के लिए सहयोगी दलों के साथ अन्य दलों का भी सहारा लेना पड़ेगा। गौरतलब है कि संसद का पिछला सत्र (बजट सत्र) विभिन्न मुद्दों पर विपक्ष के हंगामे के कारण बाधित रहा था, जिसकी वजह से कई महत्वपूर्ण विधेयक पारित नहीं हो पाए थे, लेकिन इस सत्र में सरकार कई महत्वपूर्ण विधेयक पारित कराने के साथ पिछले सत्र के बाद जारी किए गए छह अध्यादेशों के स्थान पर विधेयक लाने की तैयारी में है। प्रस्तावित विधेयकों में तीन तलाक और अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने संबंधी विधेयक भी शामिल हैं।
विधेयकों को पारित कराने पर होगा पूरा जोर
संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार के अनुसार सरकार 123वां संविधान संशोधन विधेयक-2017, तीन तलाक से संबंधित विधेयक, ट्रांसजेडर (अधिकार संरक्षण) विधेयक-2016, राष्ट्रीय मेडिकल आयोग विधेयक-2017, बच्चों के लिए नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा (दूसरा संशोधन) विधेयक के अलावा अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा देने जैसे विधेयकों को पारित कराने पर पूरा जोर देगी। असल में अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा मिलने से समूचे पिछड़ा वर्ग को बड़ी ताकत मिल जाएगी। जाहिर तौर पर अगर ये बिल पास हो जाता है तो मानसून सत्र के बाद जिन राज्यों में चुनाव होने वाले हैं, खासतौर से मध्य प्रदेश में भाजपा को इसका बड़ा फायदा मिल सकता है।
पिछले सत्र में हुआ ये काम
उल्लेखनीय है कि बजट सत्र के पहले चरण में, जो 29 जनवरी से नौ फरवरी तक चला था, लोकसभा में करीब 134 प्रतिशत और राज्यसभा में करीब 96 प्रतिशत कामकाज हुआ था। यानी उत्पादकता की दृष्टि से बजट सत्र के पहले चरण को ठीक माना जा सकता है, लेकिन सत्र का दूसरा चरण, जो पांच मार्च से छह अप्रैल तक चला था, वह भारत के संसदीय लोकतंत्र के इतिहास में कामकाज के ठप होने का रिकॉर्ड बनाकर खत्म हुआ। दूसरे चरण में लोकसभा में केवल और केवल चार प्रतिशत, जबकि राज्यसभा में मात्र आठ प्रतिशत कामकाज हुआ था। नीरव मोदी बैंक घोटाला, आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा, कावेरी नदी जल विवाद, एससी-एसटी एक्ट, उत्तर प्रदेश के कैराना जैसे मामलों पर बजट सत्र विपक्ष के हंगामे की भेंट चढ़ गया था। आलम यह रहा कि न तो प्रश्नकाल चल पाया और न ही शून्यकाल। बजट सत्र के दौरान लोकसभा की कुल 29 और राज्यसभा की कुल 30 बैठकें हुई थीं।
सिर्फ पांच विधेयक हुए थे पास
इस दौरान लोकसभा में वित्त विधेयक 2018 (बजट) समेत सिर्फ पांच विधेयक ही पारित हो सके थे। दूसरी तरफ देश हित से जुड़े कई जरूरी विधेयक दोनों सदनों में लंबित रहे, जिन पर चर्चा नहीं हो सकी। कुल मिलाकर लोकसभा में केवल 34 घंटे 5 मिनट ही कार्यवाही चल सकी, जबकि 127 घंटे 45 मिनट का वक्त बर्बाद हुआ था। राज्यसभा में कामकाज की स्थिति को इससे समझा जा सकता है कि 27 दिन तक प्रश्नकाल नहीं हो सका था। बता दें कि बजट सत्र के दौरान ही टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाना चाहते थे, लेकिन सदन में लगातार हंगामा चलता रहा, जिसके कारण लोकसभा अध्यक्ष सुमित्र महाजन ने सदन व्यवस्थित न होने का तर्क देते हुए प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था।
लोकसभा अध्यक्ष का सांसदों को पत्र
यही वजह है कि पिछले सत्र का संज्ञान लेते हुए एहतियात के तौर पर लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने मानसून सत्र शुरू होने से ठीक पहले सांसदों को पत्र लिखकर अपील की है कि वह संसद में सुचारू रूप से कामकाज करने में सहयोग करें। लोकसभा अध्यक्ष ने कहा, ‘मैं उम्मीद करती हूं कि संसद सदस्य अपने कार्यो का कुशलता के साथ निर्वहन करेंगे, क्योंकि आप इस देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा के सदस्य हैं।’ मानसून सत्र में सरकार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती तीन तलाक बिल को राज्यसभा से पास कराना होगी। तीन तलाक के अलावा भी कई अहम बिल ऐसे हैं, जो सदन में लटके पड़े हैं। आकड़ों के मुताबिक लोकसभा में 68 तथा राज्यसभा में 40 विधेयक लंबित हैं। इन्हें पास कराना सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। चूंकि विपक्ष इस सत्र में जम्मू-कश्मीर में युद्ध विराम लागू करने, उससे उत्पन्न स्थिति और पीडीपी-बीजेपी सरकार गिरने व आतंकवाद जैसे मुद्दों को उठाएगा।
क्या होगा बीच का रास्ता
ऐसे में देखना होगा कि सरकार अपनी भूमिका का निर्वहन करते हुए क्या बीच का रास्ता निकालेगी, जिससे सदन सुचारू रूप से चल सके और विधायी कार्यो को निपटाया जा सके। इसलिए इस बार का मानसून सत्र सरकार और विपक्ष दोनों के लिए बेहद खास होने वाला है, लेकिन यह तो सत्र में ही पता चल पाएगा कि सत्तापक्ष और विपक्ष जन सरोकार के मुद्दों से जुड़े कितने बिलों की बारिश करा पाने में समर्थ हो पाते हैं। बताते चलें कि संसद के पिछले मानसून सत्र में लोक सभा में 17 में से 14 बिल पास हुए थे, जबकि राज्य सभा में पेश किए गए कुल नौ विधेयकों को पारित किया गया। इस सत्र में लोकसभा में 77.94 प्रतिशत, वहीं राज्यसभा में 79.95 प्रतिशत कामकाज हुआ।
(लेखक लोकसभा टीवी में पत्रकार हैं)