अमेरिकी संसद में दक्षिण एशिया में मानवाधिकार पर सुनवाई में छाया रहा कश्मीर मुद्दा
अमेरिकी कांग्रेस में दक्षिण एशिया में मानवाधिकार मुद्दे पर सुनवाई थी जिसमें अमेरिकी सरकार के प्रतिनिधियों के अलावा अन्य लोगों को भी बुलाया गया था।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। अमेरिका के कुछ महत्वपूर्ण सांसदों ने भले ही कश्मीर के हालात को लेकर भारत के फैसले पर तल्ख टिप्पणी की हो, लेकिन अमेरिकी सरकार मानती है कि भारतीय संस्थान इतने सक्षम हैं कि कश्मीर के उपजे मुद्दों को सुलझा सकते हैं। बुधवार को अमेरिकी कांग्रेस (संसद) में दक्षिण एशिया में मानवाधिकार मुद्दे पर सुनवाई थी जिसमें अमेरिकी सरकार के प्रतिनिधियों के अलावा बाहरी क्षेत्र के भी कई लोगों को बुलाया गया था।
कश्मीर के हालात पर अमेरिकी सांसदों ने की टिप्पणी
सुनवाई में कश्मीर के हालात पर छह-सात अमेरिकी सांसदों ने भारत के हितों को प्रभावित करने वाली टिप्पणी की है। जानकारों की मानें तो इन टिप्पणियों या अमेरिकी कांग्रेस की रिपोर्ट का भारत-अमेरिका रिश्तों पर कोई असर नहीं होगा, लेकिन कश्मीर मुद्दे पर भारत को घेरने वाली शक्तियां इन रिपोर्टो का इस्तेमाल कर असहज स्थिति जरूर पैदा कर सकती हैं।
मोदी सरकार के साथ अमेरिका के रिश्ते मूल्यों पर निर्भर नहीं हैं
सुनवाई के दौरान अमेरिकी विदेश मंत्रालय में उपमंत्री (दक्षिण व केंद्रीय एशिया) एलिस वेल्स ने भारत-अमेरिका रिश्तों की मजबूती को लेकर अपनी सरकार का भरोसा जताया और इस बात से साफ इन्कार किया कि मोदी सरकार के साथ अमेरिका के रिश्ते मूल्यों पर निर्भर नहीं हैं।
अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला भारतीय संसद की स्वीकृति के बाद किया गया
वेल्स ने मोदी के दोबारा भारी बहुमत से चुनाव जीतने का उदाहरण देते हुए यह भी कहा, 'अनुच्छेद 370 हटाने का फैसला भारतीय संसद की स्वीकृति के बाद किया गया। उसमें विपक्षी दलों के सदस्यों ने भी पार्टी लाइन से बाहर जाकर वोट किया। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में सुनवाई हो रही है। भारत के लोकतांत्रिक संस्थान सही काम कर रहे हैं।'
आतंक पर पाकिस्तान को कठघरे में खड़ा किया
वेल्स के सहयोगी रॉबर्ट डेस्ट्रो भी कई बार सांसदों के सवाल जवाब में अपना धैर्य खोते दिखे। एक बार उन्होंने कश्मीर के हालात को मानवीय संकट के तौर पर भी चिन्हित किया। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के उक्त अधिकारियों ने वैसे पाकिस्तान को भी कठघरे में खड़ा किया कि किस तरह उसकी तरफ से आतंकियों को पनाह दिए जाने से हालात बिगड़ते हैं। लेकिन कश्मीर पर उनके कुछ बयानों को अंतिम रिपोर्ट में स्थान मिलने से भारत के लिए असहज स्थिति पैदा होने का खतरा है।
भारत ने संसदीय कार्यवाही पर नहीं दी कोई प्रतिक्रिया
भारत ने संसदीय कार्यवाही पर कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की है, लेकिन जानकारों का मानना है कि इसका जमीनी तौर पर कोई खास असर नहीं होता है। पूर्व में भी कश्मीर और पंजाब के हालात को लेकर अमेरिकी कांग्रेस की रिपोर्ट में भारत सरकार की नीतियों की भर्त्सना की गई है, लेकिन उसका दोनों देशों के रिश्तों पर असर नहीं पड़ा है।
अमेरिकी कांग्रेस की मानवाधिकार व धार्मिक स्वतंत्रता पर रिपोर्ट
अमेरिकी कांग्रेस की तरफ से मानवाधिकार व धार्मिक स्वतंत्रता पर जारी होने वाली रिपोर्ट में भी कई बार भारत के खिलाफ तल्ख टिप्पणी होती है जिसे हर बार खारिज कर दिया जाता है। हालांकि अमेरिकी कांग्रेस की रिपोर्ट का इस्तेमाल पाकिस्तान या दूसरे देश भारत के खिलाफ कश्मीर मुद्दे में कर सकते हैं। कई यूरोपीय देशों की संसद में भी मानवाधिकार पर जो रिपोर्ट तैयार की जाती है उसमें अमेरिकी कांग्रेस की रिपोर्ट का जिक्र किया जाता है। कई देश अमेरिकी कांग्रेस की रिपोर्ट के आधार पर आगे कार्रवाई करते हुए अपनी अलग रिपोर्ट तैयार करते हैं।
अमेरिकी सांसद इल्हाम ओमार का भारत विरोधी रुख
संयुक्त राष्ट्र से जुड़े कई गैर-सरकारी संगठन भी इन रिपोर्टो के आधार पर चिन्हित देशों के खिलाफ मुहिम चलाते हैं। अमेरिकी सांसद इल्हाम ओमार ने जिस तरह पूरी सुनवाई के दौरान भारत विरोधी रुख अख्तियार किया था उसको अभी से एक खास वर्ग सोशल मीडिया पर भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने में जुट गया है।
सुश्री ओमार ने कश्मीर के साथ ही असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के मुद्दे को जिस तरह से उठाया, उसे भुनाने की पूरी कोशिश हो रही है। सुनवाई की अध्यक्षता कांग्रेस सदस्य ब्रैड शेरमैन ने की। इसमें भारतीय मूल की कांग्रेस सदस्य प्रमिला जयपाल, शीला जैकसन ली समेत अन्य कई सदस्यों ने हिस्सा लिया।