फिल्मों में न सही लेकिन राजनीति में रजनीकांत को मात देना चाहते हैं कमल हासन!
दक्षिण भारत की राजनीति भी वहां की फिल्मों की तरह है। थ्रिलर, सस्पेंस तथा प्रतिद्वंद्विता से लेकर नायक-नायिका तक क्या कुछ नहीं होता।
नई दिल्ली [मोहम्मद शहजाद]। दक्षिण की राजनीति भी वहां की फिल्मों की तरह है। थ्रिलर, सस्पेंस और प्रतिद्वंद्विता से लेकर नायक-नायिका तक क्या कुछ नहीं होता। अनायास ही नहीं है कि वहां की राजनीति में ऐसा फिल्मी सितारों की चमक की वजह से है। विशेषकर तमिलनाडु की विगत पांच दशकों की राजनीतिक धुरी तो इन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती रही है। इसमें एमजी रामचंद्रन से लेकर एम करुणानिधि, शिवाजी गणोशन, जयललिता और चिरंजीवी जैसी हस्तियों के नाम आते हैं। हाल ही में इस फेहरिस्त में दो और नाम जुड़े हैं। कमल हासन ने गत दिनों तमिलनाडु के मदुरै में अपनी पार्टी के नाम- मक्कल नीधि मय्यम और छह हाथों वाले निशान की घोषणा कर दक्षिण की राजनीति में हलचल मचा दी है। बस टॉलीवुड के सुपरस्टार रजनीकांत की सियासी पारी की औपचारिक घोषणा होनी बाकी है।
हालिया राजनीतिक परिदृश्य
तमिलनाडु के इस हालिया राजनीतिक परिदृश्य को देखकर लग रहा है कि वहां की सियासत में इतिहास खुद को दोहराने को बेताब है। संयोगवश ये परिस्थितियां भी तमिल फिल्मों की मशहूर अभिनेत्री से नेता बनीं जे जयललिता के 2016 में निधन और फिल्मों में लेखक रहे एम करुणानिधि के वयोवृद्ध होने से बनी हैं। इस खाली जगह को भरने के लिए ही इन दोनों अभिनेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं उबाल मार रही हैं। सवाल यह है कि क्या रजनी और कमल अपने फिल्मी करियर की तरह ही राजनीति में भी वही सफलता दोहरा पाएंगे या फिर करुणानिधि और जयललिता की तरह लंबी सियासी पारी खेल पाएंगे? फिलहाल इस संबंध में कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। अलबत्ता कमल हासन और रजनीकांत के राजनीति में प्रवेश करने से जिस तरह की परिस्थितियां उत्पन्न हो रही हैं, वे कमोबेश एमजीआर और जयललिता की करुणानिधि के साथ प्रतिद्वंद्विता की याद जरूर ताजा करती हैं।
नहीं छोड़ेंगे मूल्यों का दामन
हालांकि अपनी पार्टी की घोषणा करने से पहले कमल हासन ने रजनीकांत के साथ एक मीटिंग की थी। इसमें उन्होंने फैसला किया कि एक-दूसरे की आलोचना करते हुए भी वे सभ्य रहेंगे और मूल्यों का दामन नहीं छोड़ेंगे। दोनों अपनी इस वचनबद्धता को कितनी देर तक कायम रख पाएंगे, यह कहना मुश्किल है। दरअसल रजनीकांत पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि वह राजनीति की जिस विचारधारा को आगे बढ़ाएंगे वह कुछ-कुछ पेरियार के नाम से मशहूर ईवी रामास्वामी वाली ‘स्प्रिचुअल’ ब्रांड की राजनीति होगी। हालांकि इस विचारधारा का केंद्र बिंदु भी बहुत अधिक आस्तिक नहीं रहा है, लेकिन द्रविड़ नस्ल की तरफ झुकाव की वजह से इसे स्प्रिचुअल जैसी संज्ञा दी जाने लगी है। इसी विचारधारा को पकड़ कर करुणानिधि और एमजीआर ने अपना सियासी कद बढ़ाया।
द्रविड़ राजनीति पर नजर
बाद में कुछ मतभेदों के चलते एमजीआर ने डीएमके से खुद को अलग कर लिया और अन्ना-डीएमके की स्थापना की। फिल्मों में उनसे अदाकारी का ककहरा सीखने वाली जयललिता ने राजनीतिक मंत्र भी उन्हीं से ही सीखे और सियासत में उनकी विरासत को आगे बढ़ाया। मुश्किल यही है कि रजनीकांत और कमल हासन की नजर भी इसी द्रविड़ राजनीति पर है। अर्थात निशाना और लक्ष्य एक ही वोटबैंक है, लेकिन दोनों अभिनेता में वैचारिक खाई अभी से नजर आने लगी है। रजनीकांत के बरक्स कमल हासन द्रविड़ समेत किसी भी विचारधारा से स्वयं को अलग रखने की बात करते हैं। एक तरह से वह शुरू से ही नास्तिक भी रहे हैं, लेकिन राजनीतिक महत्वाकांक्षा के आगे उनकी वैचारिक निष्पक्षता घुटने टेकती नजर आती है। ऐसा जल्लीकट्टू और कावेरी जल-विवाद पर उनके बयानों से स्पष्ट होता है जिसमें वह द्रविड़ों का एक तरह से पक्ष लेते नजर आए।
तमिलनाडु तक ही सीमित नहीं कमल हासन
दरअसल कमल हासन की नजर महज तमिलनाडु तक ही सीमित नहीं है। उन्हें फिल्मों में हिंदी समेत करीब पांच-छह भाषाओं का कामकाजी ज्ञान है। इसलिए शायद उन्हें लगता है कि फिल्मों के बड़े दर्शक वर्ग की तरह ही इस पूरे भाषाई क्षेत्रफल पर उनकी पकड़ है। इसीलिए उन्होंने अपने राजनीतिक दल मक्कल नीधि मय्यम के सिंबल के जरिये दक्षिण के छह राज्यों को जोड़ने की कोशिश की है। 1940 के दशक में चले द्रविड़ आंदोलन की धुरी भी यही थी जिसमें इनको मिलाकर पृथक द्रविड़-नाडु की मांग ने जोर पकड़ा था। इस तरह देखा जाए तो कमल हासन किसी विचारधारा से न जुड़ने की बात करने के बावजूद वह पूरी तरह से द्रविड़ सियासत पर ही अमलपैरा दिखाई दे रहे हैं।
सियासी जमीन तैयार
मकसद सीधा सा है कि पहले द्रविड़ विचारधारा वाली खाद-पानी से सियासी जमीन तैयार करो। इसके लिए तमिलनाडु बिल्कुल मौजूं जगह है, पर जब मौका पार्टी को अपना जनाधार तमिलनाडु के बाहर बढ़ाने का आए तो कह दिया जाए कि हम तो किसी विचारधारा से जुड़े ही नहीं थे। इसकी वजह यह है कि तमिलनाडु के बाहर दक्षिण के दीगर राज्यों में द्रविड़ विचारधारा चुनाव जीतने का कोई बहुत सफल फॉमरूला नहीं रही है। कमल हासन ने रजनीकांत से पहले राजनीतिक दल की घोषणा करके उनसे बढ़त लेने की कोशिश की है। इसी हड़बड़ी में उन्होंने मदुरै के आयोजन में तमिल लोगों से भ्रष्टाचार और जात-पात से मुक्त समाज, सबको शिक्षा और रोजगार जैसे वादे तो किए, लेकिन उसका कोई मूलमंत्र उन्हें दे पाने में असफल रहे। इसी तरह पार्टी की कोर कमेटी में विभिन्न क्षेत्रों से संबंधित लोग तो हैं, लेकिन उनमें किसी बड़े सियासी नाम की कमी नजर आ रही है।
मात देने की हसरत
इससे जाहिर होता है कि कमल हासन की पूरी कवायद फिल्मों में न सही राजनीति में रजनीकांत को मात देने की हसरत है। इसीलिए उन्होंने राजनीतिक मैदान में पहले ताल ठोक दी है, जबकि काफी पहले से एलान कर देने के बावजूद रजनीकांत ने अब तक अपने सियासी भविष्य के पत्ते नहीं खोले हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है कि कमल हासन अपने इस गेम-प्लान में सफल हो पाएंगे? बात अगर दर्शक वर्ग के सहारे राजनीतिक वैतरणी पार करने की बात हो तो प्रश्न यह भी उठता है कि क्या कमल हासन का दर्शक वर्ग राजनीकांत से बड़ा है? इसलिए दोनों नायकों की इस लड़ाई को लोग अभी से शिवाजी गणोशन और एमजीआर जैसी प्रतिद्वंद्विता करार दे रहे हैं। देखना यह होगा कि इनमें से कौन ‘रील हीरो’, रियल लाइफ का हीरो भी साबित होता है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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