जेटली ने किया पलटवार, कहा- जजों की नियुक्तियों पर बेवजह हायतौबा मचा रही है कांग्रेस
जजों की नियुक्ति को लेकर कांग्रेस की तरफ से हो रही सरकार की आलोचना पर केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने पलटवार किया है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। जजों की नियुक्ति को लेकर कांग्रेस की तरफ से हो रही सरकार की आलोचना पर केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने पलटवार किया है। कांग्रेस को आड़े हाथ लेते हुए जेटली ने कहा कि पार्टी न्यायिक नियुक्तियों को लेकर बेवजह हायतौबा मचा रही है। उनका कहना था कि इस मामले में कांग्रेस को पहले खुद अपने गिरेबान में झांककर देखना चाहिए।
-जेटली ने फेसबुक पर लिखे लेख में कांग्रेस को लिया आड़े हाथ
-केंद्रीय मंत्री ने कहा, अपने गिरेबान में झांके कांग्रेस
सोशल मीडिया में फेसबुक पर लिखे अपने एक लेख में जेटली ने कांग्रेस को याद दिलाया है कि उसने अपने कार्यकाल में किस तरह वरिष्ठ जजों को नजरअंदाज कर कनिष्ठों की नियुक्ति की और अदालतों के फैसलों को प्रभावित करने का काम किया।
गौरतलब है कि सरकार ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश केएम जोसेफ की सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के कोलेजियम की सिफारिश को लौटा दिया है। हालांकि माना जा रहा है कि कोलेजियम अपनी सिफारिश को फिर से सरकार को भेजने जा रही है। जेटली ने लिखा है कि मौजूदा परिदृश्य में कार्यपालिका कोलेजियम को सुझाव दे सकती है। यहां तक कि वह कोलेजियम की सिफारिश को अतिरिक्त जानकारियों के साथ पुनर्विचार के लिए लौटा सकती है, लेकिन अंतत: वह कोलेजियम की सिफारिशों से बंधी है। अपनी फेसबुक पोस्ट में जेटली ने कहा है कि हालांकि यह व्यवस्था संविधान में जो लिखा है, उसके विपरीत है।
केंद्रीय मंत्री के मुताबिक, 'पिछले दिनों कोलेजियम की सिफारिश सरकार द्वारा पुनर्विचार के लिए लौटाने को लेकर कांग्रेस के मेरे मित्रों ने हाल में जो हायतौबा मचाई ह,ै वह उनकी विस्मृति को दर्शाती है।' जेटली के अनुसार, यह चुनी हुई सरकार की उस भूमिका का हिस्सा है कि वह कोलेजियम को संबंधित जानकारी उपलब्ध कराए। यह सरकार की लोकतांत्रिक जवाबदेही के साथ सामंजस्य बिठाता है। उन्होंने कहा, 'मैंने यह ब्लॉग इसीलिए लिखा है ताकि कांग्रेस के मेरे मित्रों को दर्पण में झांकने का अवसर मिल सके।'
जेटली ने अपने लेख में कई पुराने मामलों को याद दिलाया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के जजों को नजरअंदाज कर कनिष्ठों को प्रमोट किया गया। साथ ही ऐसे मामलों का जिक्र भी किया है, जहां सुप्रीम कोर्ट की सिफारिशों को खारिज कर दिया गया। ऐसे ही एक मामले में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे जस्टिस हिदायतुल्लाह ने बांबे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसपी कोतवाल और केरल हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एमएस मेनन के नाम की सिफारिश सुप्रीम कोर्ट के जज के लिए की थी, लेकिन तत्कालीन सरकार ने इन दोनों सिफारिशों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और सिफारिश को नजरअंदाज कर दिया। मुख्य न्यायाधीश ने इस पर कभी सवाल नहीं उठाया।
केशवानंद भारती केस का हवाला देते हुए जेटली ने कहा कि किस तरह तत्कालीन सरकार ने संसद के जरिये संविधान के मूल ढांचे के साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश की। वह कहते हैं कि यह संविधान के मूल ढांचे के सिद्धांत की व्याख्या करने वाला महत्वपूर्ण फैसला था। इसमें कहा गया था कि इसमें मूल ढांचे से छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। लेख में जेटली वरिष्ठ वकील टीआर अंध्यार्जुना की केशवानंद भारती केस की सुनवाई पर लिखी गई किताब के अंशों को याद करते हैं। इसमें आम जनता की तरफ से ननी पालकीवाला ने बहस की थी और सरकार की तरफ से एचएम सीरवाई पेश हुए थे, जिन्होंने अटार्नी जनरल नीरेन डे की दलीलों का समर्थन किया था।
जेटली ने अपने लेख में केशवानंद भारती केस की सुनवाई में सरकार की ओर से जानबूझकर की जा रही देरी करने की कोशिशों को याद दिलाते हुए कहा है कि सरकार चाहती थी कि तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एसएम सीकरी रिटायर हो जाएं और संविधान संशोधन जिसमें मौलिक अधिकारों में संशोधन का भी अधिकार सरकार के पास बना रहे। इस केस को 13 जजों की पीठ ने सुना था और 7-6 के बहुमत से फैसला आया था।
जेटली ने अपने लेख में पूर्व की उन दो घटनाओं का भी जिक्र किया है, जब वरिष्ठ जजों की अनदेखी करके कनिष्ठों को मुख्य न्यायाधीश बनाया गया। जस्टिस जेएम सेलत, न्यायमूर्ति एएन ग्रोवर और जस्टिस केएस हेगड़े की वरिष्ठता को नजरअंदाज करके तत्कालीन सरकार ने जस्टिस एएन रे को भारत का मुख्य न्यायाधीश बना दिया था। इसके बाद जस्टिस रे के रिटायर होने पर जस्टिस एचआर खन्ना की वरिष्ठता की अनदेखी कर कनिष्ठ जज एमएच बेग को मुख्य न्यायाधीश बनाया गया था।
नेहरू के कार्यकाल को याद करते हुए जेटली लिखते हैं कि हाई कोर्ट की नियुक्तियों के लिए जस्टिस एचजे कनिया ने जब सिफारिशें भेजना शुरू कीं तो उस वक्त भी इसे लेकर काफी हलचल हुई। नेहरू ने तो जस्टिस कनिया के भारत का मुख्य न्यायाधीश होने की काबिलियत पर ही सवाल उठा दिए थे। वह तो सरदार पटेल की सूझबूझ के कारण जस्टिस कनिया पद पर बने रहे।