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सीबीआइ निदेशक के चयन पर जेटली ने खड़गे पर लगाया असहमति की मर्यादा गिराने का आरोप

जेटली ने कहा कि पहले आलोक वर्मा की नियुक्ति पर खड़गे ने असहमति जताई। फिर नए निदेशक के रूप में ऋषि कुमार शुक्ल के सीबीआइ निदेशक पद पर चयन में विरोध जताया।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 03 Feb 2019 07:31 PM (IST)Updated: Sun, 03 Feb 2019 07:31 PM (IST)
सीबीआइ निदेशक के चयन पर जेटली ने खड़गे पर लगाया असहमति की मर्यादा गिराने का आरोप

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने लोकसभा में कांग्रेस दल के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे पर असहमति की मर्यादा गिराने का आरोप लगाया है। असहमति को लोकतांत्रिक प्रक्रिया का अहम हिस्सा बताते हुए जेटली ने सीबीआइ निदेशक के चयन मंडल में खड़गे की भूमिका की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि बार-बार विरोध में मतदान करके खड़गे ने चयन मंडल और इसमें असहमति के वोट का अवमूल्यन किया है।

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सीबीआइ निदेशक की चयन प्रक्रिया में मल्लिकार्जुन खड़गे की भूमिका पर सवाल उठाते हुए जेटली ने फेसबुक पोस्ट में लिखा कि पहले आलोक वर्मा की नियुक्ति पर खड़गे ने असहमति जताई। इसके बाद उसी आलोक वर्मा के तबादले पर असहमत रहे। यह सिलसिला नए निदेशक के रूप में ऋषि कुमार शुक्ल के सीबीआइ निदेशक पद पर चयन में जारी रहा।

बार-बार खड़गे की असहमति को खेदजनक बताते हुए जेटली ने कहा इससे असहमति के वोट की साख गिरी है। यही नहीं, खड़गे के राजनीति रवैये से चयन समिति की विश्र्वसनीयता और कार्यक्षमता पर सवालिया निशान लग गया है।

जेटली के अनुसार सही मायने में तो खड़गे को चयन समिति में होना ही नहीं होना चाहिए था क्योंकि उन्होंने पूर्व निदेशक आलोक वर्मा के तबादले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। लेकिन कांग्रेस नेता ने हितों के इस टकराव की अनदेखी करके चयन समिति की कार्यवाही में हिस्सा लिया और निष्पक्ष चयनकर्ता की बजाय राजनीतिक रवैया अपनाया।

जेटली के अनुसार लोकतांत्रिक प्रक्रिया में असहमति का वोट बहुत मूल्यवान होता है तथा वह ठोस बुनियाद पर बहुमत के फैसले को चुनौती देता है। न्यायपालिका में भी कोई न्यायाधीश बहुमत के फैसले के खिलाफ जब असहमति वाला फैसला देता है तो उसका बहुत महत्व होता है। ऐसा फैसला भविष्य में गलतियों को सुधारने का आधार बनता है तथा भावी पीढि़यों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध होता है। 


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