आपका बजट: कई मायनों में खास होगा सरकार का इस बार का बजट
बजट की प्रक्रिया अंतिम चरण में पहुंच चुकी है, उम्मीद है कि आने वाले बजट में सभी के लिए कुछ न कुछ जरूर अच्छा होगा।
नई दिल्ली [आशुतोष त्रिपाठी]। आगामी 1 फरवरी को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार अपना चौथा और आखिरी पूर्णकालिक बजट पेश करेगी जो कई मायनों में खास होगा। देश में नई अप्रत्यक्ष कर प्रणाली यानी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू किए जाने के बाद यह पहला बजट होगा। इसके अलावा 2019 में होने वाले लोकसभा के आम चुनावों और कई राज्यों के विधानसभा चुनावों से पहले आखिरी बजट होगा। यही वजह है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली के लिए लोगों की उम्मीदों और राजकोषीय अनुशासन के बीच संतुलन साधने के लिहाज से यह बजट किसी चुनौती से कम नहीं है।
बजट पर चर्चाओं का सिलसिला शुरू
बजट पर चर्चाओं का सिलसिला चालू हो चुका है। इन अपेक्षाओं के बीच हमें यह भी समझना होगा कि बजट कुल मिलाकर एक लेखा संबंधी कवायद ही था, है और हमेशा रहेगा। हालांकि सरकार की ओर से की जाने वाली घोषणाओं के लिए बजट एक महत्वपूर्ण अवसर होता है, लेकिन ऐसा नहीं है कि नई घोषणाएं करने के लिए सरकार बजट की प्रतीक्षा करेगी। फिर भी 1991 के बजट में लागू किए गए सुधारों के बाद से इसे लेकर लोगों की उत्सुकता और उम्मीदें बढ़ी हैं। ऐसे में उद्योगपतियों से लेकर आम करदाता और किसान तक, हरेक आम और खास की वित्त मंत्री के बजट भाषण में दिलचस्पी को नकारा नहीं जा सकता है। अलग-अलग क्षेत्रों से संबंधित लोग बजट में अपना हिस्सा चाहते हैं।
कृषि एक संवेदनशील क्षेत्र
कृषि प्रधान देश होने के नाते कृषि ने हमेशा एक संवेदनशील क्षेत्र के तौर पर सुर्खियां बटोरी हैं। ग्रामीण अर्थव्यवस्था हमारी आर्थिक प्रणाली का आधार है जिसमें आई सुस्ती सरकार के लिए चिंता का कारण बनी हुई है। यूं तो कृषि राज्यों का मसला है, लेकिन केंद्र के पास खेती के लिए सिंचाई, बीमा, ऋण, एकीकृत बाजार जैसे बुनियादी ढांचा मुहैया कराने की कुछ शक्तियां हैं। बीते दिनों राज्यों में कृषि ऋण माफ करने की होड़ देखने को मिली जिसका सीधा असर राजकोषीय स्थिति पर पड़ता है, लेकिन 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के सरकार के लक्ष्य को पूरा करने के लिए ऋण माफी से आगे बढ़ते हुए बुनियादी सुविधाओं की ओर ध्यान देना चाहिए जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में तेजी का दौर लौटे। इसके लिए सरकार स्वामीनाथन कमिटी की रिपोर्ट की सिफारिशों पर गौर कर सकती है जिसमें कृषि उत्पादकता में लगातार बढ़ोतरी होने के बाद भी किसान की स्थिति में सुधार न होने के कारणों पर विचार किया गया है।
भारत से दुनिया की उम्मीद
इसके बाद बारी आती है उद्योगों की। चीन के विनिर्माण उद्योग में आ रही ढलान के मद्देनजर दुनिया भारत की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रही है। कारोबारी सुगमता के लिहाज से भारत की रैंकिंग में हुआ सुधार वैश्विक उद्योगों का आकर्षण बढ़ा रहा है। ऐसे में उम्मीद है कि वित्त मंत्री बजट में मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, मुद्रा योजना जैसे अभियानों को गति देने की कोशिश करेंगे। उद्योगों का सीधा संबंध रोजगारों से है जिस मोर्चे पर सरकार काफी आलोचनाएं झेल रही है। सच है कि हर वर्ष तैयार हो रहे करीब 10 लाख युवाओं को सरकारी नौकरी देना संभव नहीं है, लेकिन लघु एवं मध्यम उद्यमों को बढ़ावा देकर सरकार रोजगार की समस्या से पार पाने की कोशिश कर सकती है। लघु एवं मध्यम उद्योगों को सरकारी सहायता की सख्त जरूरत इसलिए भी है क्योंकि नोटबंदी और जीएसटी लागू किए जाने का सबसे अधिक असर इन्हीं क्षेत्रों पर पड़ा है जबकि रोजगार सृजन में इस क्षेत्र के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है।
बुनियादी ढांचा क्षेत्र
कृषि, उद्योग और रोजगार को प्रभावित करने वाला एक पहलू बुनियादी ढांचा क्षेत्र है। मोदी सरकार के रिकॉर्ड पर गौर करें तो पता चलता है कि बुनियादी ढांचा क्षेत्र को अब तक प्राथमिकता मिलती रही है। भारतमाला परियोजना के अंतर्गत देश में सड़कों का जाल बिछाने की बात हो या सागरमाला के तहत बंदरगाहों का विकास, सरकार ने इस ओर भरपूर ध्यान दिया है। सरकार को एकीकृत बुनियादी ढांचा क्षेत्र को बढ़ावा देने से उद्योगों को प्रोत्साहित करने, कृषि की स्थिति को बेहतर बनाने और रोजगार में तेजी लाने में मदद मिलेगी। इन सारी चीजों के बीच वित्त मंत्री का ध्यान मध्यम वर्ग से ताल्लुक रखने वाले एक आम करदाता की ओर भी होगा। आम तौर पर बजट में शामिल कर प्रावधानों में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों का उल्लेख किया जाता था, लेकिन जीएसटी की वजह से यह पहला मौका होगा जब वित्त मंत्री के पास अप्रत्यक्ष करों के मामले में कहने के लिए ज्यादा कुछ नहीं होगा।करदाता के लिए पिटारे में क्या होगा
स्वाभाविक है कि लोग जानना चाहेंगे कि सामान्य वर्ग के करदाता के लिए उनके पिटारे में क्या होगा। चूंकि सरकार का पूरा जोर कर देने वालों का दायरा बढ़ाकर कर राजस्व में बढ़ोतरी करने की ओर है और नोटबंदी ने इस ओर सरकार की मदद भी की है, ऐसे में उम्मीद है कि कर में छूट की सीमा का दायरा बढ़ाकर खर्च करने योग्य आमदनी बढ़ाई जा सकती है। मगर वित्त मंत्री 1 फरवरी को जब अपना बजट भाषण शुरू करेंगे तो ज्यादातर विशेषज्ञों की पैनी नजर वृहद आर्थिक आंकड़ों की ओर होगी। दरअसल 2017 के बजट में राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.2 फीसद के स्तर पर रखने का लक्ष्य तय किया गया था, लेकिन नवंबर में ही राजकोषीय घाटा 2017-18 के लिए निर्धारित लक्ष्य 5.5 लाख करोड़ का 112 प्रतिशत हो गया है।
ये होगी सरकार के लिए चुनौती
सरकार के लिए राजकोषीय अनुशासन की उपलब्धि को कायम रखना चुनौती है जिसके दम पर पिछले दिनों ही रेटिंग एजेंसी ने 14 वर्षो के अंतराल पर देश की रेटिंग में सुधार किया है क्योंकि इसका सीधा असर निवेशकों पर पड़ना तय है। वित्त मंत्री को कृषि क्षेत्र की चुनौतियों का सामना भी करना पड़ेगा, उद्योगों को लुभाने की भी जुगत करनी होगी, रोजगार पैदा करने के अवसर तलाशने होंगे, करदाताओं को राहत भी देनी होगी, बुनियादी ढांचा का जाल भी बुनना होगा, स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास जैसी मूलभूत सुविधाओं का विस्तार करने के दबाव का सामना भी करना होगा और यह सब करते हुए राजकोषीय अनुशासन को भी साधना होगा। हलवा वितरण समारोह के साथ बजट तैयार करने की प्रक्रिया अंतिम चरण में पहुंच चुकी है, उम्मीद है कि आने वाले बजट में सभी के लिए कुछ न कुछ जरूर अच्छा होगा।
(लेखक बिजनेस पत्रकार हैं)