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जन्मदिन पर विशेष: अटल जी की वाकपटुता के विरोधी भी कायल थे

जब वाजपेयी प्रधानमंत्री बने तो विकास और सुशासन को राजनीति का न सिर्फ एजेंडा बनाया बल्कि एक मानक तय कर दिया।

By Lalit RaiEdited By: Published: Mon, 25 Dec 2017 11:43 AM (IST)Updated: Mon, 25 Dec 2017 08:05 PM (IST)
जन्मदिन पर विशेष: अटल जी की वाकपटुता के विरोधी भी कायल थे
जन्मदिन पर विशेष: अटल जी की वाकपटुता के विरोधी भी कायल थे

नई दिल्ली [स्वदेश सिंह] । सरकारें आएंगी, सरकारें जाएंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी, लेकिन देश का लोकतंत्र जिंदा रहना चाहिए। भारत का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए। 28 मई 1996 को लोकसभा में विश्वास मत प्रस्ताव पर बोलते हुए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ये उद्घोषणा की थी। उनकी यह सरकार सिर्फ 13 दिन ही चली थी।सभी के बीच अटलजी के नाम से प्रसिद्ध अटल बिहारी वाजपेयी पर राजनीति में करीब छह दशक गुजारने के बाद एक भी दाग नहीं है। राजनीतिक शुचिता, प्रामाणिकता, वाकपटुता और लोगों के बीच जगह बनाने की कला की अनूठी मिसाल हैं अटल बिहारी वाजपेयी। जवाहरलाल नेहरू के अलावा लगातार तीन लोकसभा चुनाव जीतने वाले वह अकेले राजनेता हैं।

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1990 के अंतिम वर्षो और नई शताब्दी के शुरुआती वर्षो में जब अटलजी ने देश के नेतृत्व किया तो विकास और सुशासन को राजनीतिकी न सिर्फ एजेंडा बनाया बल्कि एक ऐसा मापदंड तय कर दिया जिससे अब हर राजनेता को होकर गुजरना ही पड़ता है। देश में एक नए राजनीतिक वातावरण का निर्माण हुआ। जो नेता अब तक सिर्फ जाति, धर्म और क्षेत्र की राजनीति कर रहे थे उन्होंने भी विकास को अपने एजेंडे में शामिल किया। अटलजी की ही देन है कि लोग आज सुशासन और विकास को बड़ा मुद्दा मानकर वोट कर रहे हैं।

अटल बिहारी वाजपेयी और भारतीय राजनीति
नवंबर 1995 में भाजपा का मुंबई अधिवेशन हुआ जहां पार्टी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने घोषणा की कि अटल बिहारी वाजपेयी आगामी लोकसभा चुनाव में पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे। भाजपा 1996 के लोकसभा चुनाव में सबसे बड़े दल के रूप में उभरी और अटल जी देश के प्रधानमंत्री बने। यह सरकार ज्यादा दिन न चल सकी क्योंकि भाजपा के पास बहुमत के लिए जरूरी सांसद नहीं थे। सरकार के विश्वास मत प्रस्ताव पर अटलजी ने जोरदारभाषण दिया जिसमें उन्होंने कहा, मैं भ्रष्टाचार को चिमटे से भी नहीं छूना चाहूंगा। अटलजी ने 1998 से 2004 तक राजग सरकार का नेतृत्व किया।

हालांकि एक बार सरकार एक वोट से गिर भी गई, लेकिन दोबारा चुनाव होने पर भी भाजपा के नेतृत्व वाली राजग सरकार ही बनी। अटलजी के छह साल के इस कार्यकाल ने भारतीय राजनीति की दिशा ही बदल दी। अटल बिहारी वाजपेयी ने सबसे पहले एक स्थिर सरकार दी जो उस समय की पहली जरूरत थी। भाजपा ने चुनाव ही इस मुद्दे पर लड़ा था कि वह एक स्थिर सरकार और योग्य नेतृत्व देश को देगी। लोगों ने इस संकल्प को सच मानते हुए अटलजी के नेतृत्व में भाजपा को देश की सबसे बड़ी पार्टी बना दिया।

अटल के कई काम रहे बेमिसाल

अटलजी के नेतृत्व में एक स्थिर सरकार ने अपना कार्यकाल पूरा किया और ऐसे कई काम किए जो अपने आप में मिसाल बन गए। वाजपेयी सरकार ने 1998 में परमाणु परीक्षण किए। कई देशों ने अमेरिका की अगुवाई में देश पर तमाम प्रतिबंध लगा दिए, लेकिन अटल सरकार के कारण इनका कोई भी असर देश के जनमानस पर नहीं हुआ। भारत की बढ़ती ताकत को देखते हुए पहले अमेरिकी राष्ट्रपति क्लिंटन और फिर दूसरे राष्ट्रध्यक्ष भारत के दौर पर आए और तमाम समझौतों पर हस्ताक्षर किए। अटलजी के कार्यकाल में किए गए आर्थिक सुधारों द्वारा देश की आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत हुई। बड़े पैमाने पर रोजगारों का सृजन हुआ। आर्थिक वृद्धि दर बढ़कर 6-7 फीसद हो गई जिसका लाभ नीचे तक पहुंचते हुए दिखाई दिया। देश में विदेशी निवेश बढ़ा, आधारभूत सुविधाएं बढ़ीं और भारत एक आईटी सुपरपॉवर के रूप में भी उभरा।


सरकार ने कई टैक्स सुधार किए, बड़ी सिंचाई और आवासीय योजनाएं शुरू की गईं। पूरे देश में और खासतौर पर मध्यवर्ग के जीवन स्तर में बदलाव साफ दिखाई देने लगा। लोगों को विकास और सुशासन अपने आस-पास होता दिखाई दिया। देश के हर हिस्से को जोड़ने के लिए एक बहुत ही महात्वाकांक्षी परियोजना स्वर्णिम चतुभरुज की शुरुआत की गई जिसके तहत दिल्ली, कोलकाता, मुंबई और चेन्नई को चार लेन सड़कों से जोड़ा गया। इससे अर्थव्यवस्था को बहुत लाभ हुआ। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क रोजगार योजना के तहत हर गांव को सड़क से जोड़ा गया। सर्वशिक्षा अभियान के तहत सभी बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा की सुविधा उपलब्ध कराई गई। किसानों, युवाओं, महिलाओं, कामगारों के लिए बहुत सी अलग-अलग योजना शुरू की गई। इस तरह अटलजी ने भारत में सुशासन की राजनीति की शुरुआत की। 15 अप्रैल, 2000 को हुई भाजपा कार्यकारिणी बैठक में उन्होंने कहा, ‘राजनीतिक सफलता के बाद क्या हम केंद्र और कई राज्यों में सत्ता में हैं। हमें अपने प्रयास सुशासन की गुणवत्ता को सुधारने में केंद्रित करना चाहिए। सुशासन की राजनीतिक करते समय लोगों की सेवा और राष्ट्रीय हितों को सवरेपरि रखना चाहिए।’

यूं नहीं बने अटल विकास पुरुष
अटलजी ने 2002 में गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को देश का उप प्रधानमंत्री बना दिया। तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष वेंकैया नायडू ने एक कार्यक्रम में अटलजी को विकास पुरुष और लालकृष्ण आडवाणी को लौह पुरुष की संज्ञा दी। अटलजी ने कहा करते थे कि दोस्त बदले जा सकते हैं पड़ोसी नहीं। इसी नीति का पालन करते हुए उन्होंने पाकिस्तान से दोस्ती का हाथ बढ़ाया। भारत-पाकिस्तान के बीच बस सेवा शुरू की। अटलजी पहली बस लेकर खुद लाहौर गए, लेकिन पाकिस्तान अपनी हरकत से बाज नहीं आया और उसने भारत के कुछ इलाकों पर कब्जा कर लिया। वाजपेयी सरकार ने इस का मुंह तोड़ जवाब दिया और कारगिल की लड़ाई में जीत हुई। 2005 में अटलजी ने राजनीतिक जीवन से सन्यास ले लिया। 2014 में भारत सरकारने उन्हें भारत रत्न देने का निश्चय किया। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी खुद उनके घर भारत रत्न से सम्मानित करने गए। भारत सरकार ने अटलजी के 25 दिसबंर को अब सुशासन दिवस के रूप में मनाती है। एक जननायक,सांसद,ओजस्वी वक्ता, लेखक,विचारक, पत्रकार होने के साथ जब अवसर आया तो अटलजी ने विकास और सुशासन की एक नई इबारत लिखी। आज सामाजिक और राजनीतिक जीवन में काम करने वाले लाखों के लिए प्रेरणा का काम कर रही है।

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं)
 


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