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वाघा से वापस लौटने के बजाय किसके कहने पर लाहौर तक चले गए थे अटल

पाकिस्तान की तमाम नापाक हरकतों के बावजूद अटल जी ने इस पड़ोसी देश से हमेशा दोस्ती के ख्वाहिश रखी

By Brij Bihari ChoubeyEdited By: Published: Thu, 16 Aug 2018 07:27 PM (IST)Updated: Thu, 16 Aug 2018 08:36 PM (IST)
वाघा से वापस लौटने के बजाय किसके कहने पर लाहौर तक चले गए थे अटल
वाघा से वापस लौटने के बजाय किसके कहने पर लाहौर तक चले गए थे अटल

नई दिल्ली (अरविंद पांडे)। पाकिस्तान जैसे चिर प्रतिद्वंद्वी के साथ रिश्ते सुधारने को लेकर अटलजी इस कदर उत्साहित थे कि वह जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने इस पड़ोसी के साथ संबंधों को सुधारने के लिए कई बड़े कदम उठाए थे। उन्होंने दोनों देश के बीच न सिर्फ बस चलाने जैसी पहल की, बल्कि इस बस में बैठकर वह खुद भी पाकिस्तान जा पहुंचे थे।

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इसका भी एक बड़ा रोचक वाकया है जिसका उल्लेख अटलजी ने लाहौर में दिए गए अपने भाषण में भी किया था। उन्होंने कहा कि मेरा पहले इरादा वाघा की सीमा से मियां साहब से मिलकर वापस जाने का था। लेकिन मियां साहब ने कहा, ऐसा नहीं हो सकता। दरवाजे से लौट जाएं, ये भी कोई बात हुई। घर के भीतर तक आना चाहिए। इसके बाद तो अटलजी खुद को नहीं रोक पाए, वह उसी बस से लाहौर तक जा पहुंचे। इतना ही नहीं, वहां 24 घंटे बिताया भी।

अटल और बाजार अनारकली

इस दौरान पाकिस्तान में उनके सम्मान में एक नागरिक अभिनंदन समारोह भी आयोजित किया गया जिसमें उन्होंने पाकिस्तान से जुड़ी अपनी कई यादें साझा की थीं। लोगों के दिलों को भी छुआ था। अपने अनूठे अंदाज में बोलते हुए उन्होंने कहा था कि मै पहली बार लाहौर नहीं आया हूं और आखिरी बार भी नहीं आया हूं। पहली दफा आया था, तब अंग्रेजों का राज था। मै कोहाट बन्नू तक गया था। हाईस्कूल का विद्यार्थी था। उस समय बाजार अनारकली (यह लाहौर का एक प्रसिद्ध बाजार है) देखा था। बाद में विदेश मंत्री बनने के बाद आया तो पंजाब के गवर्नर साहब से मैंने कहा था कि मेरा जो आधिकारिक कार्यक्रम है, उनमें अनारकली जाने की कोई सूरत नहीं आती है। मगर अनारकली जाए बिना मैं कैसे दिल्ली वापस जा सकता हूं। रात में मेरे लिए अनारकली जाने का खास इंतजाम किया गया था। लेकिन इस बार मै नहीं गया। क्योंकि और नई कलियां खिल गई हैं। अटलजी का इशारा संबंधों को लेकर रची जा रही नई इबारत की ओर था।

इतिहास बदल सकते हैं  भूगोल नहीं

पाकिस्तान की अपनी इस यात्रा के दौरान अटलजी ने वहां लोगों को भी दोटूक संदेश देने की कोशिश की थी। उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान फले-फूले हम चाहते है और हम फले-फूलें यह आप भी चाहते होंगे। इतिहास बदला जा सकता है, मगर भूगोल नहीं बदला जा सकता। आप दोस्त बदल सकते है, पड़ोसी नहीं बदल सकते। हम अच्छे पड़ोसी के नाते रहें।

पाक से दोस्ती का कोई मौका नहीं छोड़ा

अटलजी ने पाकिस्तान से संबंधों को सुधारने को लेकर पहल सिर्फ प्रधानमंत्री बनने के बाद ही नहीं की थी, बल्कि वह जब 1977-78 में विदेश मंत्री थे, तब भी दोनों देशों के बीच आना-जाना आसान बनाया था। उन्होंने दोनों देशों के बीच दोस्ती का माहौल बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ा था। लाहौर में दिए गए अपने भाषण में उन्होंने इसकी छाप भी छोड़ी। उन्होंने कहा कि कल आए थे, आज जा रहे हैं। दुनिया का यही तरीका है, लेकिन मैं अकेला नहीं जा रहा हूं। आया भी अकेला नहीं था। मेरे साथ एक प्रतिनिधिमंडल आया है। भारत के चुने हुए लोग हैं। अलग-अलग क्षेत्रों में नाम कमाने वाले मेरे साथ आए हैं। मुझे 24 घंटे मिले। लेकिन इन 24 घंटों में मुझे ऐसा लगता है कि दिल्ली और लाहौर की दूरी कुछ कम हो गई है। हम कुछ नजदीक आ गए हैं। कुछ भरोसा बढ़ गया है। साथ मिलकर चलने के लिए कदमों में कुछ तेजी आ गई है।


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