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संसद के इसी सत्र में 'एससी-एसटी आरक्षण' को दस साल बढ़ाने का फैसला लेगी मोदी सरकार

मंगलवार को एक उच्च स्तरीय मंत्रिमंडल समूह की बैठक में इस पर फिर से विचार हुआ और तय हो गया कि यह आरक्षण लागू रहेगा।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Tue, 03 Dec 2019 09:20 PM (IST)Updated: Tue, 03 Dec 2019 09:34 PM (IST)
संसद के इसी सत्र में 'एससी-एसटी आरक्षण' को दस साल बढ़ाने का फैसला लेगी मोदी सरकार
संसद के इसी सत्र में 'एससी-एसटी आरक्षण' को दस साल बढ़ाने का फैसला लेगी मोदी सरकार

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। लोकसभा और देश की सभी विधानसभाओं में एससी-एसटी व एंग्लो इंडियन आरक्षण को अगले दस साल तक बढ़ाने के लिए कैबिनेट में प्रस्ताव आएगा और संभव है कि इसी संसद सत्र में पारित कराया जाएगा। हालांकि यह प्रक्रिया 1960 से लगातार दोहराई जा रही है लेकिन वर्तमान माहौल में यह इसलिए भी अहम है क्योंकि विपक्ष का एक खेमा मोदी सरकार को दलित विरोधी करार देने की कोशिश करता रहा है। जबकि खुद मोदी कई बार यह कहते रहे हैं कि उनके रहते आरक्षण खत्म नहीं हो सकता है।

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आखिरी बार 2009 में हुआ था पारित

गौरतलब है कि संविधान की धारा 334 के अनुसार इस आरक्षण का प्राविधान किया गया था लेकिन यह सिर्फ दस साल के लिए था। उसके बाद से हर दस साल में संविधान संशोधन के जरिए यह अगले दस साल के लिए बढ़ाया जाता रहा है। आखिरी बार 2009 में यह पारित हुआ था और 2020 तक के लिए लागू है। अगर इसे पारित नहीं किया गया तो आने वाले विधानसभा चुनावों में आरक्षण प्रभावी नहीं होगा।

उच्च स्तरीय मंत्रिमंडल समूह की बैठक

मंगलवार को एक उच्च स्तरीय मंत्रिमंडल समूह की बैठक में इस पर फिर से विचार हुआ और तय हो गया कि यह आरक्षण लागू रहेगा। इस समूह में गृहमंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद समेत कुछ अन्य मंत्री शामिल हैं। संभवत: बुधवार को होने वाली कैबिनेट बैठक में ही यह प्रस्ताव लाया जाएगा। वैसे सूत्रों के अनुसार एंग्लो इंडियन के लिए नामांकन के जरिए आरक्षण पर विचार का प्रश्न आया था। दरअसल पिछले सत्तर वर्षो में उनकी जनसंख्या बहुत कम हो गई है। हालांकि सूत्रों का कहना है कि सरकार फिलहाल इसमें कोई छेड़छाड़ नहीं करना चाहती है।

संविधान संशोधन का बड़ा राजनीतिक महत्व

यूं तो यह एक संवैधानिक परंपरा की तरह चली आ रही है लेकिन आज के राजनीतिक परिदृश्य में इसका खास महत्व इसलिए है क्योंकि भाजपा को अक्सर एससी-एसटी विरोधी बताने की कोशिशें होती रही हैं। यहां तक कि एससी-एसटी उत्पीड़न पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के लिए भी सरकार को ही कठघरे में खड़ा किया गया था। दरअसल 2015 में बिहार चुनाव के वक्त से ही लगातार विपक्ष के लिए यह हथियार रहा है। ऐसे में आरक्षण की समयावधि बढ़ाने के लिए आने वाले संविधान संशोधन का बड़ा राजनीतिक महत्व भी होगा। गौरतलब है कि लोकसभा में एससी-एसटी और एंग्लो इंडियन के लिए 131 सीटें आरक्षित होती हैं। दो एंग्लो इंडियन को राष्ट्रपति नामित करते हैं।


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