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देश के किसी भी हिस्से में आने जाने के लिए इनर लाइन परमिट को सुप्रीम कोर्ट मे चुनौती

अपने ही देश के किसी भी हिस्से में आने जाने के लिए परमिट जरूरी करना तर्कसंगत नहीं है। पूर्वोत्तर राज्यो के कुछ हिस्से में इनर लाइन परमिट को सुप्रीम कोर्ट मे चुनौती दी गई है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sun, 23 Jun 2019 09:32 PM (IST)Updated: Mon, 24 Jun 2019 12:46 AM (IST)
देश के किसी भी हिस्से में आने जाने के लिए इनर लाइन परमिट को सुप्रीम कोर्ट मे चुनौती
देश के किसी भी हिस्से में आने जाने के लिए इनर लाइन परमिट को सुप्रीम कोर्ट मे चुनौती

माला दीक्षित, नई दिल्ली। देश के किसी भी हिस्से में आने जाने के लिए नागरिकों को परमिट क्यों लेना पड़े। संविधान ने सभी नागरिकों को भारत मे कहीं भी स्वतंत्रता पूर्वक आने जाने का मौलिक अधिकार दिया है और देश के किसी भी हिस्से में आने जाने के लिए इनर लाइन परमिट (आइएलपी) का नियम इस मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। इसे आधार बनाते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर इनर लाइन परमिट व्यवस्था को चुनौती दी गई है।

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याचिका मे आइएलपी का प्रावधान करने वाले बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन 1873 की धारा 2,3 और 4 को रद करने की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर 2 जुलाई को सुनवाई करेगा।

मालूम हो कि नागालैंड में नगा हिल्स क्षेत्र में जाने के लिए नगा मूल निवासियो के अलावा सभी को आइएलपी लेना पड़ता है। इतना ही नहीं दीमापुर जिले को भी नगाहिल्स क्षेत्र में शामिल करके वहां भी आइएलपी लागू करने का प्रस्ताव है। जिसका याचिका में विरोध किया गया है। सुप्रीम कोर्ट मे यह जनहित याचिका भाजपा नेता और वकील अश्वनी कुमार उपाध्याय ने दाखिल की है।

याचिका मे कहा गया है कि आइएलपी व्यवस्था एक प्रकार से अपने ही देश में वीजा सिस्टम की तरह है जो कि न सिर्फ अनुच्छेद 14 (समानता), 15 (भेदभाव की मनाही), 19 (स्वतंत्रता) और 21 (जीवन) के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है बल्कि उस क्षेत्र के विकास, समग्र निवेश को भी नुकसान पहुंचाता है और लोगों में आपसी विश्वास नहीं बनने देता।

सरकार को आइएलपी सिस्टम को प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए था बल्कि यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कोई राज्य विशेष प्रवासियों के कारण आर्थिक प्रगति के मौकों से वंचित न हों। उपाध्याय ने याचिका दाखिल करने का कारण बताते हुए कहा है कि गत 30 मार्च को वह परिवार के साथ गुवाहाटी, दीमापुर व कोहिमा घूमने गए, लेकिन उन्हें गुवाहाटी से वापस आना पड़ा क्योंकि कोहिमा जाने के लिए आइएलपी चाहिए था। उन्हें यह जानकर भी आश्चर्य हुआ की सरकार दीमापुर जिले में भी आइएलपी लागू करने की तैयारी कर रही है जो कि महानगरीय शहर है।

कहा गया है कि भारतीय नागरिकों पर परमिट सिस्टम लागू करने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि खराब होती है। कहा गया है कि नगा आदिवासियों को संरक्षण देने के लिए सरकार तर्क संगत नियंत्रण तो लगा सकती है, लेकिन अपने ही देश के किसी भी हिस्से में आने जाने के लिए परमिट जरूरी करना तर्कसंगत नहीं है।

कहा गया है कि आइएलपी सिस्टम बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन 1873 के प्रावधानों के तहत जारी होता है। वास्तव मे अंग्रेजों ने यह कानून भारतीयों को नागालैंड के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाने वाली औषधीय और अन्य बहुमूल्य वनस्पतियों के लाभ से वंचित करने के लिए बनाया था ताकि वहां पर पाए जाने वाले उत्पादों का सिर्फ ब्रिटिश सरकार ही व्यापारिक लाभ उठा सके और व्यापार मे उसका एकाधिकार कायम रहे। उपाध्याय कहते हैं कि कैबिनेट ने दो तीन महीने पहले दीमापुर में भी आइएलपी लागू करने को मंजूरी दी है जबकि दीमापुर नागालैंड का हिस्सा नहीं है यह मैदानी क्षेत्र असम मे आता है। वहां इसके लागू होने से वहां रह रहे और रोजगार कर रहे गैर नगा जनजाति के लोगों को नुकसान होगा। उपाध्याय कहते हैं कि पहले कश्मीर में भी यह लागू था और इसी के विरोध में डाक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया था और वह बिना परमिट कश्मीर गए थे जहां उन्हंें गिरफ्तार कर लिया गया था और बाद मे हिरासत में ही संदिग्ध परिस्थितियों में उनकी मौत हो गई थी। उसके बाद कश्मीर से आइएलपी हटा था।

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