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भारत बाइडन की चीन नीति का करेगा इंतजार, फिलहाल सैन्य तनाव खत्म करने पर ड्रैगन से वार्ता जारी रखने का फैसला

पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के सैनिक आमने सामने डंटे हुए हैं। चूंकि वार्ताओं का कोई नतीजा निकलता नहीं दिख रहा है। ऐसे में भारत की निगाहें अमेरिका में नई सरकार पर होंगीं। विशेषज्ञों की मानें तो भारत जो बाइडन की भावी चीन नीति का इंतजार करना चाहेगा।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sun, 08 Nov 2020 07:53 PM (IST)Updated: Sun, 08 Nov 2020 07:53 PM (IST)
भारत अमेरिका के नवनियुक्त राष्ट्रपति जो बाइडन की भावी नीति का भी इंतजार करना चाहेगा।

नई दिल्ली, जेएनएन। चीन की विस्‍तारवादी नीतियों से पूरी दुनिया त्रस्‍त है। पूर्वी लद्दाख में बर्फबारी की शुरुआत होने के बावजूद वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी के अधिकांश हिस्सों पर भारत और चीन के सैनिक आमने सामने डंटे हुए हैं। दोनों देशों के बीच चल रही कूटनीतिक और सैन्य वार्ता का कोई नतीजा निकलता नहीं दिख रहा है। इस बीच भारत और अमेरिका के नवनियुक्त राष्ट्रपति जो बाइडन की भावी चीन नीति का इंतजार करना चाहेगा। 

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दरअसल, राष्ट्रपति चुनाव के दौरान बाइडन का रुख स्पष्ट नहीं था। एक ओर उन्होंने कुछ भाषणों में चीन की बढ़ती चुनौतियों पर लगाम लगाने के लिए भारत की मदद देने की बात कही तो दूसरी तरफ उन्होंने चीन के सामने सख्ती दिखा रहे ट्रंप प्रशासन की नीतियों की भी आलोचना की। चीन के साथ कारोबार को लेकर भी बाइडन का रवैया नरम रहा है। बाइडन ट्रंप प्रशासन की तरफ से चीन के आयात पर प्रतिबंध लगाने के समर्थक नहीं रहे हैं। 

दूसरी ओर चीन के साथ भारत के सैन्य तनाव पर ट्रंप प्रशासन लगातार नरेंद्र मोदी सरकार के साथ खड़ा रहा है। विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने एक पखवाड़े पहले कहा था कि हर मुश्किल में अमेरिका भारत के साथ मजबूती के साथ खड़ा रहेगा। देश के विशेषज्ञों का तो कहना है कि चीन को लेकर बाइडन की भावी नीति ट्रंप की नीति से बहुत अलग नहीं होगी। इसकी ठोस वजह यह है कि चीन आने वाले वक्‍त में अमेरिका के लिए बड़ी चुनौती है। 

कई देशों में राजदूत रह चुके विष्णु प्रकाश का कहना है कि चीन सैन्य ताकत में अमेरिका के बराबर है। इतना ही नहीं वह सूचना प्रौद्योगिकी, बायोटेक, कारोबार में भी तेजी के साथ अमेरिका की बराबरी में खड़ा होने की स्थिति में है। अमेरिका पहले सोचता था कि चीन के साथ संबंधों को बढ़ाकर वह उसको अपने साथ मिला लेगा लेकिन उसकी गलतफहमी खत्म हो चुकी है। ऐसे में भारत के साथ अमेरिका की दोस्ती हर मोर्चे पर उसके हित में है। यही वजह है कि ट्रंप के कार्यकाल में जो रिश्ते मजबूत हुए हैं उनके आगे भी जारी रहने की संभावनाएं हैं। 

वहीं दूसरी ओर सात महीनों से पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर चीन के साथ जारी सैन्य विवाद के सुलझने के अभी कोई स्पष्ट आसार नजर नहीं आ रहे हैं। बीते शुक्रवार को दोनों देशों के बीच कमांडर लेवल पर बातचीत से भी हल निकलने के संकेत नहीं हैं। फि‍लहाल दोनों देशों ने बातचीत जारी रखने और एलएसी पर तैनात सैनिकों की वापसी की बात कही है। 

ऐसे में जब एलएसी का इलाका हिमपात की गिरफ्त में जाने का इंतजार कर रहा है तब देखना होगा कि दोनों पक्ष अगले एक पखवाड़े के भीतर सैनिकों को मई 2020 से पहले वाली स्थिति पर वापस लाने को तैयार होते हैं या नहीं। दोनों देशों की तरफ से रविवार को संयुक्त बयान जारी कर कमांडर स्तर की बातचीत के बारे में जानकारी दी गई। इसमें कहा गया है कि चुशूल सेक्टर में दोनो पक्षों के बीच बहुत ही खुल कर, विस्तार से और सकारात्मक बातचीत हुई है। 

सूत्र बताते हैं कि इस बात पर सहमति बनी है कि सैन्य बलों की तरफ से संयम बरतने और एक दूसरे के साथ गलतफहमी को दूर करने को लेकर दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच बनी सहमति को लागू किया जाना चाहिए। दोनों पक्ष सैन्य स्तर एवं कूटनीतिक स्तर पर बातचीत का दौर आगे भी जारी रखने को तैयार हैं ताकि मुद्दों का समाधान निकाला जा सके। यह एलएसी पर अमन और शांति बहाली के लिए बहुत जरूरी है।  


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