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US-China के बीच छिड़े ट्रेड वार से भारत को मिला फायदा उठाने का मौका, जानें कैसे

अमेरिका और चीन के बीच शुरू हुए ट्रेड वार में भारत भी पिसता नजर आ रहा है। इस बीच जानकार इसमें कई संभावनाओं को भी टटोलते दिखाई दे रहे हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Thu, 20 Sep 2018 12:28 PM (IST)Updated: Fri, 21 Sep 2018 01:53 PM (IST)
US-China के बीच छिड़े ट्रेड वार से भारत को मिला फायदा उठाने का मौका, जानें कैसे
US-China के बीच छिड़े ट्रेड वार से भारत को मिला फायदा उठाने का मौका, जानें कैसे

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। काफी लंबे समय से अमेरिका और चीन के बीच विभिन्‍न मसलों पर चल रही तनातनी अब ट्रेड वार का रूप ले चुकी है। दोनों देश एक दूसरे को पटखनी देने और करारा जवाब देने की कोशिशों में लगे हैं। इसकी शुरुआत कहीं न कहीं अमेरिका की ही तरफ से हुई भी है। हालांकि जहां तक अमेरिका की बात है तो ट्रेड वार का जनक भी कहीं न कहीं वही रहा है। 1930 में अमेरिका ने न सिर्फ इसकी शुरुआत की बल्कि इससे होने वाले नुकसान को भी झेला था। बहरहाल इस बात को आठ दशक से ज्‍यादा समय बीत चुका है, लेकिन यह ट्रेड वार खत्‍म नहीं हो रहा है। अब इस ट्रेड वार के शिकंजे में वह देश भी शामिल हो गए हैं जो इसका हिस्‍सा नहीं हैं। इसमें भारत भी शामिल है। अमेरिका और चीन के बीच शुरू हुए ट्रेड वार में भारत भी पिसता नजर आ रहा है। इस बीच जानकार इसमें कई संभावनाओं को भी टटोलते दिखाई दे रहे हैं।

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अमेरिका-चीन ट्रेड वार
आगे बढ़ने से पहले एक नजर इस ट्रेड वार के दौरान हाल ही में किए गए फैसलों पर डाल लेते हैं। दरअसल, अमेरिका ने चीन से अपने यहां आयात किए जाने वाले और 200 अरब डॉलर के माल पर आयात पर शुल्क बढ़ाने की घोषणा की है। इस पर चीन ने जवाबी कार्रवाई करते हुए 60 अरब के अरब डॉलर के अमेरिकी सामान पर भी शुल्क लगा दिया है। अमेरिका इससे पहले दो बार इस तरह की कार्रवाई कर चुका है जिसमें 50 अरब डॉलर की चीनी वस्तुओं पर शुल्क बढ़ा दिया गया था। चीन ने भी इसके जवाब में चुनिंदा अमेरिकी वस्तुओं पर शुल्क बढ़ाया था।

शीर्ष अर्थव्‍यवस्‍थाओं के बीच ट्रेड वार
इन दोनों के बीच छिड़े ट्रेड वार में सबसे बड़ी चिंता की बात यह भी है कि यह दोनों देश दुनिया में शीर्ष की अर्थव्‍यवस्‍था है। अपने ताजा फैसले में अमेरिका ने चीन के 200 अरब डॉलर के आयात पर 10 प्रतिशत शुल्क लगाया है। इस साल के अंत तक यह शुल्क बढ़कर 25 प्रतिशत तक पहुंच जायेगा। इन सभी के बीच भारत भी बलि का बकरा बन रहा है। ऑब्‍जरवर रिसर्च फाउंडेशन के प्रोफेसर हर्ष वी पंत का साफतौर पर कहना है कि इस लड़ाई का सीधा असर भारत पर भी पड़ रहा है और हमें नुकसान उठाना पड़ रहा है। दरअसल, इसका असर कहीं न कहीं मेक इन इंडिया प्रोजेक्‍ट पर भी पड़ रहा है। इस ट्रेड वार के चलते अमेरिकी बाजार में भारतीय माल की खपत कम हो रही है।

सरकार की नीतियां तय करेंगी प्रभाव
इतना ही नहीं अर्थशास्‍त्री यह भी मानते हैं कि इसका सीधा असर रुपये पर भी पड़ रहा है। लिहाजा कहा जा सकता है कि रुपये के डॉलर के मुकाबले लगातार कमजोर होने के पीछे एक वजह दो शीर्ष अर्थव्‍यवस्‍थाओं के बीच छिड़ा ट्रेड वार भी है। इसके अलावा जानकारों का यह भी कहना है कि इस ट्रेड वार का भारत पर असर इस बात पर भी निर्भर करता है कि आखिर सरकार की पॉलिसी क्‍या है। मसलन भारत के लिए यह चुनौती भी है और एक मौका भी है। चुनौती इस लिहाज से है कि हम इस ट्रेड वार से पड़ने वाले प्रभाव को कैसे कम कर सकते हैं और मौका इसलिए कि हम इस समय को अपने पक्ष में भुनाते हुए चीन की जगह ले सकते हैं या नहीं। यह दोनों ही बातें सरकार की नीतियों पर तय होंगी।

ट्रंप की चेतावनी
आपको यहां पर ये भी बता दें कि इस ट्रेड वार में ट्रंप ने चीन को चेतावनी भी दी है कि अगर उसने नये कदम के खिलाफ कोई जवाबी कार्रवाई की तो अमेरिका चीन के और 267 अरब डालर के आयात पर शुल्क लगा देगा। इसके साथ ही चीन से होने वाले करीब करीब सभी तरह के आयात पर अमेरिका में शुल्क लग जायेगा। चीन से अमेरिका को करीब 522.9 अरब डालर का निर्यात होता है। 

एक्‍सपोर्ट में आई तेजी
जानकारों की राय में इस ट्रेड वार के भारत पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को कम करते हुए सरकार को चाहिए वह ऐसी नीतियां तैयार करे जिससे अमेरिका-भारत के और करीब आ सके। डायरेक्‍टर जनरल ऑफ कमर्शियल इंटेलिजेंस एंड स्‍टेटिस्टिक्‍स के आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल-मई 2018 में भारत से अमेरिका को होने वाले एक्‍सपोर्ट में बढ़ोतरी हुई हे और यह 58,221.46 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। जबकि इसी अवधि में चीन का एक्‍सपोर्ट 17,614.44 करोड़ रुपये रहा है। इंपोर्ट के मामले में यही पूरी तरह से उलट रहा है। इसमें चीन पहले नंबर पर है। आपको यहां पर ये भी बताना जरूरी होगा कि भारत और चीन के बीच का व्‍यापार घाटा बढ़कर बढ़कर वर्ष 2017-18 में 51 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया जबकि 2007-08 में यह महज 16 बिलियन डॉलर था। वहीं अमेरिका से व्‍यापार की बात करें तो यह 23 बिलियन डॉलर अधिक रहा है। ऐसे में जानकार मानते हैं कि यह चीन की जगह लेने का अच्‍छा मौका है।

परेशानियां भी कम नहीं
लेकिन इन सभी के बीच कुछ परेशानियां भी हैं। इनमें सबसे बड़ी परेशानी तो यही है कि जिन चीजों पर अमेरिका ने शुल्‍क बढ़ाया है उसका एक्‍सपोर्टर भारत नहीं है और यदि है भी तो वह महज 1-2 फीसद ही है। ऐसे में चीन की जगह लेना भारत के लिए इतना आसान नहीं होगा। इस परेशानी की एक और वजह यह भी है कि ट्रेडवार के चलते कच्‍चे माल की कीमत में इजाफा होगा और प्रतियोगियों के कम होने से कीमतों में उछाल आएगा जो भारत के लिए सही नहीं होगा। जहां तक अमेरिका की बात है तो ट्रंप लगातार अमेरिका-चीन के बीच व्यापार घाटे को कम करने के लिये दबाव बनाये हुये हैं। आपको बता दें कि वर्ष 2017 में अमेरिका का चीन के साथ द्विपक्षीय व्यापार में 335.4 अरब डालर का घाटा रहा है।

ट्रेड वार और भारत
इस ट्रेड वार में सबसे ज़्यादा असर भारत में बिकने वाले अमेरिकी खान-पान के सामान पर पड़ेगा। जैसे – बादाम और सेब। इसका कारण यह है कि, अमेरिका में बादाम का व्यापार काफी बड़ा है और भारत में बादाम अमेरिका से आयात होता है। अब इन बादाम पर इम्पोर्ट ड्यूटी बढ़ने से बादाम के आयात पर सबसे ज़्यादा असर पड़ेगा। इसके अलावा पॉपुलर आइटम्स भी महंगे हो सकते है।


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