आर्थिक मोर्चे पर नई सरकार की 'अग्नि परीक्षा', पांच साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंची GDP दर
शुक्रवार को जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर पांच वर्षो के न्यूनतम स्तर पर आ गई है।
हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली। नई सरकार को आर्थिक मोर्चे पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। शुक्रवार को जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर पांच वर्षो के न्यूनतम स्तर पर आ गई है, जबकि बेरोजगारी दर कई दशक के उच्चतम स्तर पर है। खेती खस्ताहाल है, जबकि मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर का भी बुरा हाल है।
सेंट्रल स्टैटिस्टिकल ऑफिस (सीएसओ) ने शुक्रवार को वित्त वर्ष 2018-19 के लिए जीडीपी के आंकड़े जारी किए। सीएसओ के मुताबिक पिछले वित्त वर्ष में देश की जीडीपी विकास दर 6.8 फीसद रही है, जो बीते पांच साल में न्यूनतम है। सीएसओ का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2018-19 में देश का जीडीपी (2011-12 के स्थिर मूल्यों पर) 140.78 लाख करोड़ रुपये मूल्य का रहा। वित्त वर्ष 2017-18 में विकास दर 7.2 फीसद रही थी। इससे भी चौंकाने वाला आंकड़ा जीडीपी की तिमाही वृद्धि दर का है जो अर्थव्यवस्था में हाल के वषों में लगातार आ रही गिरावट को दर्शाता है।
सीएसओ के अनुसार वित्त वर्ष 2018-19 की अंतिम तिमाही (जनवरी-मार्च) में विकास दर घटकर 5.8 फीसद रह गई है जो वित्त वर्ष 2013-14 की अंतिम तिमाही के बाद न्यूनतम है। कृषि, उद्योग और मैन्यूफैक्चरिंग में बीते नौ महीने में सुस्ती आने के चलते विकास दर में यह गिरावट आई है। माना जा रहा था कि इस वर्ष जनवरी-मार्च तिमाही में विकास दर तकरीबन 6.5 फीसद के आसपास रहेगी पर वास्तविक आंकड़े इससे काफी कम हैं।
मैन्यूफैक्चरिंग भी सुस्त
तिमाही आधार पर देखें तो मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में जनवरी-मार्च, 2019 में 3.1 फीसद वृद्धि हुई है, जबकि पिछले वर्ष की समान तिमाही में इसमें 9.5 फीसद वृद्धि हुई थी। हालांकि पूरे वर्ष के लिए देखें तो मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में 2018-19 के दौरान 6.9 फीसद वृद्धि हुई, जबकि 2017-18 में यह 5.9 फीसद थी। इससे भी खराब स्थिति कृषि क्षेत्र की है जो कृषि उत्पादों की कीमतों में ठहराव आने के चलते संकट से जूझ रहा है। कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर तिमाही आधार पर जनवरी-मार्च, 2019 में -0.1 फीसद और पूरे वित्त वर्ष 2018-19 में 2.9 प्रतिशत रही।
निवेश में भी सुधार नहीं
वहीं निवेश के मोर्चे पर भी हालात सुधरते नहीं दिखते। सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद निवेश की रफ्तार धीमी बनी हुई है। पिछले वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में ग्रॉस फिक्स्ड कैपिटल फॉरमेशन की दर घटकर 30.7 फीसद पर आ गई है जो पिछले कई वषों में काफी कम है। वित्त वर्ष 2018 -19 में चालू कीमतों पर देश की प्रति व्यक्ति आय 126406 रुपये रही जबकि वित्त वर्ष 2017-18 में यह 114958 रुपये थी । इस तरह चालू कीमतों पर प्रति व्यक्ति आय में 10 फीसद वृद्धि हुई है। आर्थिक मोर्चे पर दूसरी बड़ी चुनौती बेरोजगारी की ऊंची दर है। सरकार ने बेरोजगारी के आंकड़े जारी किए हैं जिसमें वर्ष 2017-18 में बेरोजगारी दर 6.1 फीसद बताई गई है।
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