अगले महीने भारत अमेरिका के बीच पहला 'टू प्लस टू' वार्ता
ऐसे समय जब भारत और अमेरिका केद्विपक्षीय रिश्तों में कारोबार व अन्य वजहों से तनाव फैलने के बीच दोनो देशों के बीच एक अहम वार्ता होने जा रही है।
नई दिल्ली [जयप्रकाश रंजन]। ऐसे समय जब भारत और अमेरिका केद्विपक्षीय रिश्तों में कारोबार व अन्य वजहों से तनाव फैलने के बीच दोनो देशों के बीच एक अहम वार्ता होने जा रही है। इस अहम वार्ता यानी टू प्लस टू शुरु करने को लेकर जून, 2017 में ही पीएम नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच सहमति बनी थी लेकिन वह अभी तक शुरु नहीं हो पाया है।
अब भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण की अगुवाई में यह वार्ता होगी जिसमें अमेरिकी पक्ष की अगुवाई वहां के विदेश मंत्री माइकल आर पोमपीओ और रक्षा मंत्री जेम्स एन मैटिस करेंगे। यह इस लिहाज से महत्वपूर्ण तो होगा ही कि पहली बार भारतीय पक्ष का प्रतिनिधित्व दो महिला कैबिनेट मंत्री करेंगी बल्कि सामरिक व कूटनीतिक क्षेत्र में आपसी हितों को देखते हुए जो लक्ष्य तय किये गये हैं उसकी नये सिरे से समीक्षा की जाए।
सनद रहे कि मोदी और ट्रंप के बीच मुलाकात में यह तय हुआ कि द्विपक्षीय रिश्तों को बहुआयामी बनाने के लिए पुराने वार्ता के तरीके की जगह पर टू प्लस टू वार्ता शुरु की जाएगी। इसके पहले राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल में भारत के साथ कूटनीतिक व वाणिज्यिक वार्ता होती थी जिसमें दोनों देशों के विदेश, रक्षा, वित्त, वाणिज्य व ऊर्जा मंत्री भी सदस्य होते थे।
पहले बताया गया था कि दिसंबर, 2017 तक टू पल्स टू के तहत पहली बातचीत होगी जिसे बाद में बढ़ा कर अप्रैल, 2018 कर दिया गया। लेकिन अमेरिका में विदेश मंत्री के बदलने से इसे तीन महीने और बढ़ा दिया गया है। बहरहाल, यह तय है कि मोदी सरकार के इस कार्यकाल में भारत-अमेरिका के बीच होने वाली यह पहली टू प्लस टू वार्ता होगी। विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी सूचना में बताया गया है कि उम्मीद है कि दोनो पक्ष सुरक्षा व रणनीतिक मुद्दों पर विचारों का आदान-प्रदान करेंगे और क्षेत्रीय व वैश्विक मुद्दों पर आपसी हितों पर चर्चा करेंगे।
जानकारों का कहना है कि इस पहली वार्ता में रणनीतिक गठजोड़ पर शायद ही कोई नया फैसला लिया जाए। कोशिश यह होगी कि वर्ष 2015 में दोनो देशों की तरफ से जारी संयुक्त स्ट्रेटेजिकविजन के तहत जो कदम उठाये गये हैं उनकी समीक्षा की जाए। तब यह पहली बार दोनों देशों ने कहा था कि वे एक दूसरे को एशिया प्रशांत महासागर और हिंद महासागर क्षेत्र में साझेदार मानेंगे।
आने वाले समय में सामुद्रिक सहयोग को किस तरह से आगे बढ़ाया जाए, यह भी बातचीत का अहम एजेंडा होगा। इसके अलावा रक्षा क्षेत्र में भारत को तकनीकी हस्तांतरण का मुद्दा भी उठेगा। वर्ष 2016 में मोदी-ओबामा शीर्ष वार्ता और उसके बाद मोदी-ट्रंप वार्ता में इस बारे में कई अहम घोषणाएं हुई थी लेकिन वास्तविक तौर पर अभी कोई प्रगति नहीं हुई है।
रक्षा सहयोग के अलावा जो अन्य मुद्दे महत्वपूर्ण होंगे वे अमेरिका की तरफ से रूस और ईरान पर लगाये जाने वाले प्रतिबंध और इन दोनो देशों के साथ भारत के कारोबारी व अन्य रिश्ते भी अहम होंगे। अमेरिका पहले ही यह साफकर चुका है कि अगर भारत इन देशों के साथ अपने कारोबारी व रणनीतिक रिश्तों को खत्म नहीं करता है तो उसके लिए भारत को अन्य सहयोग करने में समस्या आएगी।