और बिगड़ सकते हैं भारत-तुर्की के रिश्ते, एर्दोगन के रवैये से भारत नाराज, कर सकता है रिश्तों की समीक्षा
तुर्की के राष्ट्रपति तैयप एर्दोगन ने संयुक्त राष्ट्र की सालाना महासभा को संबोधित करते हुए जिस तरह से कश्मीर के मुद्दे को हवा दी है उससे भारत नाराज है। भारत तुर्की के साथ अपने द्विपक्षीय रिश्ते की पूरी तरह से समीक्षा करने को बाध्य हो सकता है।
नई दिल्ली, जेएनएन। तुर्की के राष्ट्रपति तैयप एर्दोगन ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र की सालाना महासभा को संबोधित करते हुए जिस तरह से कश्मीर के मुद्दे को हवा दी है उससे भारत के साथ उसके द्विपक्षीय रिश्ते को बड़ा झटका लगना तय है। भारत ने वैसे तो आधिकारिक तौर पर एर्दोगन के बयान को खारिज कर दिया है और उसे साफ तौर पर अपने घरेलू मुद्दों पर ध्यान देने की सलाह दे डाली है लेकिन बात यहीं तक सीमित नहीं रहेगी। कश्मीर को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने के मुद्दे पर तुर्की लगातार पाकिस्तान के सुर में सुर मिला रहा है। ऐसे में भारत, तुर्की के साथ अपने द्विपक्षीय रिश्ते की पूरी तरह से समीक्षा करने को बाध्य हो सकता है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत टी एस त्रिमूर्ति ने कहा है कि, 'तुर्की के राष्ट्रपति का भाषण भारत के आंतरिक मामलों का घोर उल्लंघन है। तुर्की को दूसरे देशों की संप्रभुता का आदर करना चाहिए और इस संबंध में अपनी नीति पर विचार करना चाहिए।'
आधिकारिक तौर पर भारत का यह बयान बेहद संतुलित है लेकिन विदेश मंत्रालय में यह भावना बन रही है कि तुर्की के राष्ट्रपति की तरफ से हर मंच पर कश्मीर मुद्दे को उठाने की आदत को अब ज्यादा गंभीरता से लेने की जरूरत है। फरवरी, 2020 में पाकिस्तान यात्रा के दौरान भी एर्दोगन ने कश्मीर को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। उसके पहले सितंबर, 2019 में भी संयुक्त राष्ट्र में भाषण देते हुए कश्मीर का मुद्दा उन्होंने उठाया था। तब भी भारत ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए नई दिल्ली स्थित तुर्की के राजदूत को डेमार्श जारी किया गया था। इसके पहले जब एर्दोगन ने कश्मीर का मुद्दा उठाया था तब तुर्की जाने वाले पर्यटकों के लिए एडवायजरी जारी की गई थी।
सूत्रों का कहना है कि इस्लामिक राष्ट्रों के बीच एक नए गठबंधन बनने की वजह से ही तुर्की पिछले वर्ष से कश्मीर के मुद्दे को ज्यादा हवा देने लगा है। पिछले वर्ष पाकिस्तान और तुर्की को मलेशिया का भी साथ मिल रहा था। लेकिन मलेशिया को अपने तरीके से साध लिया गया है। पीएम नरेंद्र मोदी की अगुआई में भारत के रिश्ते सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों के साथ बेहद मजबूत हुए हैं। जबकि तुर्की के रिश्ते इन देशों के साथ कई वजहों से बिगड़ रहे हैं। तुर्की और पाकिस्तान मिल कर इस्लामिक देशों में सऊदी अरब की नेता सरीखी भूमिका को चुनौती देना चाहते हैं। यही वजह है कि तुर्की पाकिस्तान के हितों के अनुकूल बातें कर रहा है।