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जानिए, संविधान की प्रस्‍तावना में पंथनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द क्‍यों किए गए थे शामिल

वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि यह वीके कृष्णा मेनन ही थे जिन्होंने इस प्रस्तावना का मसौदा तैयार किया था।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Wed, 22 Jan 2020 12:30 AM (IST)Updated: Wed, 22 Jan 2020 12:30 AM (IST)
जानिए, संविधान की प्रस्‍तावना में पंथनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द क्‍यों किए गए थे शामिल

नई दिल्ली, प्रेट्र। वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने मंगलवार को कहा कि 'समाजवादी' और 'पंथनिरपेक्ष' शब्द संविधान की प्रस्तावना में जगह नहीं बना पाए थे क्योंकि जवाहरलाल नेहरू महसूस करते थे कि उस समय इन मुद्दों पर आम सहमति नहीं थी। ये शब्द 1976 में 42वें संशोधन के माध्यम से संविधान की प्रस्तावना का हिस्सा बन पाए थे।

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नई पुस्‍तक पर की गई परिचर्चा 

रमेश यहां उनकी नई पुस्तक 'चैकर्ड ब्रिलियंस : द मैनी लाइव्ज ऑफ कृष्णा मेनन' पर ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में एक परिचर्चा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि यह वीके कृष्णा मेनन ही थे जिन्होंने इस प्रस्तावना का मसौदा तैयार किया था जिसे हाल में पूरे देश में जगह-जगह उद्धत किया जा रहा है। उनका इशारा नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों की ओर था जिसमें विरोध स्वरूप कुछ लोग संविधान की प्रस्तावना पढ़ते हैं।

रमेश ने कहा कि देश के पहले प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने मेनन से 'समाजवादी' और 'पंथनिरपेक्ष' पर 'धीमे चलने' को कहा था, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे समाजवादी और पंथनिरपेक्ष नहीं थे। उनका यह बयान इस मायने में अहम है क्योंकि कुछ दक्षिणपंथी संगठन तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा प्रस्तावना में इन शब्दों को जोड़ने पर कई बार आपत्ति जताते हैं। वे कहते हैं कि ऐसा तुष्टिकरण की राजनीति के लिए किया गया था। रमेश ने कहा कि 'नेहरू (प्रस्तावना में) पंथनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द नहीं चाहते थे, उसका कारण यह है कि वह महसूस करते थे कि इन मुद्दों पर आम सहमति नहीं थी यानी भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण थे। उन्होंने कहा, '1947 की रोचक बात है कि नेहरू कृष्णा मेनन से कह रहे थे कि इन दोनों शब्दों पर धीमे चलें। हम जानते हैं हम हैं.. याद रखिए कि हिंदू महासभा पहले मंत्रिमंडल में थी। श्यामा प्रसाद मुखर्जी (मंत्रिमंडल में) थे, यह सर्वदलीय मंत्रिमंडल था।'

मेनन और नेहरू की खलनायक जैसी छवि पेश की गई

चीन के साथ 1962 की लड़ाई का जिक्र करते हुए रमेश ने कहा कि इस युद्ध के बाद मेनन और नेहरू की खलनायक जैसी छवि पेश की गई, जबकि सच्चाई और भी जटिल है। उन्होंने कहा कि मेनन ने पहले रक्षा बजट बढ़ाने की मांग की थी, लेकिन वित्त मंत्री मोरारजी देसाई ने यह कहते हुए मना कर दिया था कि यह महात्मा गांधी के विश्वासों के साथ छल होगा। नेहरू ने दोनों मंत्रियों के बीच हस्तक्षेप इसलिए नहीं किया क्योंकि वह मंत्रियों को अपना मंत्रालय अपने हिसाब से चलाने देने में यकीन करते थे। नेहरू अधिनायकवादी नहीं थे बल्कि वह अपनी ताकत समझते थे। नेहरू और मेनन ने गलतियां तो कीं, लेकिन 1962 की हार के लिए पूरी तरह उन्हें जिम्मेदार ठहराना चीजों को सरलीकरण होगा।


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