केंद्र सरकार ने जारी किया पाकिस्तान को पानी रोकने वाली परियोजनाओं का विवरण
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी ने कहा-मैदान में तीन बार युद्ध हारने के बाद पाक प्रॉक्सी वार कर रहा है। आतंकवादियों को भेजकर हमले करवा रहा है।
नई दिल्ली, प्रेट्र। सिंधु जल समझौते के तहत नदी जल के अपने हिस्से को पाकिस्तान जाने से रोकने के लिए सरकार विभिन्न परियोजनाओं पर कार्य कर रही है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने गुरुवार को ट्वीट कर इस फैसले को दोहराया था। शुक्रवार को जल संसाधन मंत्रालय ने इन परियोजनाओं का विवरण जारी किया।
जल संसाधन मंत्रालय की ओर से जारी बयान के मुताबिक, 1960 में हस्ताक्षरित सिंधु जल समझौते के तहत रावी, ब्यास और सतलज नदियों का पानी (करीब 33 मिलियन एकड़ फीट) भारत के हिस्से और सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों का पानी (करीब 135 मिलियन एकड़ फीट) पाकिस्तान के हिस्से आया था।
भारत ने सतलज नदी पर भाखड़ा बांध, ब्यास पर पोंग और पंडोह बांध, राबी नदी पर रंजीत सागर बांध का निर्माण किया है। इसके अलावा ब्यास-सतलज लिंक, माधोपुर-ब्यास लिंक, इंदिरा गांधी परियोजना आदि ने भारत को इन नदियों के अपने हिस्से का 95 फीसद पानी इस्तेमाल करने में मदद की है। इसके बावजूद रावी नदी का दो मिलियन एकड़ फीट पानी हर साल बिना उपयोग किए पाकिस्तान बह जाता है।
बयान के मुताबिक, शाहपुरकांडी परियोजना से रंजीत सागर बांध के पावरहाउस से निकल रहे पानी का इस्तेमाल करने में मदद मिलेगी। साथ ही जम्मू-कश्मीर व पंजाब की 37 हजार हेक्टेयर भूमि की सिंचाई और 206 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा सकेगा। इस परियोजना को सितंबर 2016 तक पूरा किया जाना था, लेकिन जम्मू-कश्मीर व पंजाब के बीच विवाद के चलते 30 अगस्त, 2014 को इस पर काम रुक गया था। आठ सितंबर, 2018 को दोनों राज्यों के बीच समझौते के बाद केंद्र सरकार की निगरानी में पंजाब सरकार ने इस पर फिर काम शुरू किया है।
इसके अलावा रावी की सहायक उज्ज नदी पर बहुउद्देश्यीय परियोजना के जरिये 781 मिलियन क्यूबिक मीटर की भंडारण क्षमता का निर्माण किया जा रहा है। इस पानी का इस्तेमाल बिजली उत्पादन और सिंचाई के लिए किया जाएगा। 5,850 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाली इस परियोजना की डीपीआर को जुलाई 2017 में मंजूरी मिल चुकी है। इसे राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा दिया है और केंद्र सरकार इसमें 4,892.47 करोड़ रुपये का अंशदान देगी। निर्माण शुरू होने के बाद इसे पूरा होने में छह साल का समय लगेगा। तीसरी परियोजना का उद्देश्य उज्ज के नीचे रावी-ब्यास लिंक से बह जाने वाले पानी को रोकने के लिए है। इसके लिए रावी नदी पर बैराज का निर्माण किया जाएगा।