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सिख दंगा: तीन दशकों तक इन्‍होंने कोर्ट में लड़ी लड़ाई, जब फैसला आया तो रूंध गया गला

1984 के सिख दंगों में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सज्जन कुमार को उम्रकैद की सजा सुनाए जाने के दौरान वरिष्ठ वकील एचएस फुल्का भावुक हो गए।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Mon, 17 Dec 2018 07:48 PM (IST)Updated: Mon, 17 Dec 2018 11:40 PM (IST)
सिख दंगा: तीन दशकों तक इन्‍होंने कोर्ट में लड़ी लड़ाई, जब फैसला आया तो रूंध गया गला

नई दिल्‍ली, जेएनएन। 1984 के सिख दंगों में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सज्जन कुमार को दोषी ठहराए जाने और उम्रकैद की सजा सुनाए जाने के दौरान वरिष्ठ वकील एचएस फुल्का भावुक हो गए। वह सिख दंगा पीड़ि‍तों के लिए 'अथक योद्धा' साबित हुए। पिछले तीन दशकों से पंजाब में आम आदमी पार्टी (एएपी) के नेता और वरिष्‍ठ वकील एचएस फुल्‍का अदालतों में मुफ्त में सिख विरोधी दंगा पीड़ितों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। दंगा पीड़ितों का मुकदमा लड़ने में आ रही परेशानी के कारण उन्‍होंने पंजाब में बतौर विपक्ष का नेता का पद छोड़ दिया।

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चंडीगढ़ से ही कानून की पढ़ाई करने वाले एचएस फुल्का खुद दंगों का दंश झेल चुके थे। उन्होंने दंगा पीड़ितों को न्याय दिलाने की ठानी और लड़ाई शुरू कर दी। दंगों के साल भर बाद एक संस्था बनाई, जिसका नाम सिटिजन्स जस्टिस कमेटी रखा। पंजाब के बरनाला जिले के रहने वाले फुल्का की लड़ाई में तमाम नामी लोग साथ आए। खुशवंत सिंह, जस्टिस रंजीत सिंह नरुला, सोली सोराबजी, जनरल जगजीत सिंह अरोरा, जस्टिस वी एम तारकुंडे जैसे लोग उनके साथ जुड़ गए।   

सिख दंगों को लेकर लिखी पुस्‍तक  
सजा सुनाए जाने के बाद उन्‍होंने नम आंखों के साथ कहा कि 'यह एक बड़ी जीत है। यह क्षण 34 साल बाद आया है। हम सब बहुत खुश हैं।' एचएस फुल्का ने वरिष्ठ पत्रकार मनोज मिट्टा के साथ एक पुस्तक 'जब एक पेड़ ने दिल्ली को हिला कर रख दिया'(When A Tree Shook Delhi) में न्याय के लिए अपने संघर्ष के बारे में विस्‍तार से लिखा है।

दिल्ली के राजनगर में एक परिवार के पांच सदस्यों की हत्या और एक‍ नवंबर, 1984 को गुरुद्वारा की ओर मशाल से रोशनी दिखाने के लिए सज्जन कुमार को दोषी ठहराया गया। सज्जन अपने जीवन के बाकी दिन अब जेल में बिताएंगे। निचली अदालत ने इस मामले में पहले सज्‍जन कुमार को निर्दोष बताया था। उन्हें 31 दिसंबर तक आत्मसमर्पण करने के लिए कहा गया है।

विपक्ष का नेता पद छोड़ दिया 
फुल्का को पिछले साल दिल्ली बार काउंसिल ने उन्हें 1984 के सिख दंगा मामलों में सज्जन कुमार और अन्य के खिलाफ पेश होने से रोक दिया था। बार काउंसिल का कहना था कि वह आफिस ऑफ प्राफिट का आनंद ले रहे हैं। फुल्का ने न्याय के लिए लड़ाई जारी रखने के लिए पंजाब विधानसभा में नेता विपक्ष का पद छोड़ दिया।

73 वर्षीय वकील ने कहा था कि वह लंबे समय से मामलों को लड़ रहे हैं और वे एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुकाम तक पहुंच चुके हैं। इसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। इसके लिए उन्‍हें पद छोड़ना होगा। उन्‍होंने कहा कि इस चरण में सिख विरोधी दंगा मामलों में मेरी उपस्थिति महत्वपूर्ण है। इस कारण मैंने नेता विपक्ष का पद छोड़ने का फैसला किया।

केंद्रीय मंत्री ने की प्रशंसा 
केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने एक ट्वीट में फुल्का के सिख दंगा मामलों में "निःस्वार्थ और अथक" सेवा की प्रशंसा की है। 31 अक्टूबर को सिख अंगरक्षकों द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस नेताओं और उन्‍मादी भीड़ ने सिख समुदाय को लक्षित करते हुए लगभग 3,000 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था।

राजनीतिक लाभ के लिए कराए गए दंगे 
एचएस फुल्का ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि कथित तौर पर नरसंहार में शामिल पार्टी के नेताओं को ऊपर उठाया और बढ़ावा दिया, जब कि उन्हें दंडित किया जाना चाहिए था। फुल्का ने सज्जन कुमार के खिलाफ फैसले के बाद कहा कि निर्णय में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि आरोपियों को राजनीतिक लाभ प्रदान किया गया। 

वरिष्‍ठ आप नेता ने दावा कि 'वरिष्‍ठ कांग्रेस नेता और मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री कमल नाथ के  सिख विरोधी दंगों में शामिल होने के मजबूत सबूत हैं। उन्‍होंने कहा कि न्याय का पहिया अभी भी उसके खिलाफ नहीं था।' एचएस फुल्का की इस लड़ाई में उनकी पत्नी मनिंदर कौर हर कदम पर साथ खड़ी रहीं। बताया जाता है कि फुल्का का सहयोग करने के लिए उन्होंने नौकरी तक छोड़ दी।

सिख दंगों के दौरान खुद भी फंस गए थे फुल्का
जब नई दिल्ली में सिखों के खिलाफ दंगे हो रहे थे, उस वक्त फुल्का भी फंस गए थे। वह अपनी गर्भवती पत्नी को बाइक पर अस्पताल से ला रहे थे। इसी दौरान उनके दोस्त का फोन आया और उन्होंने बताया कि शहर में दंगे फैल गए हैं और वह मुख्य सड़क छोड़ अन्य रास्ते से घर पहुंचे।


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