राम मंदिर को बने ट्रस्ट में शामिल हैं होम्योपैथी के डॉक्टर अनिल मिश्र, जानें उनके बारे में
होम्योपैथी के डॉक्टर अनिल मिश्र राम मंदिर का निर्माण करने वाले ट्रस्ट में शामिल हैं। वो वर्षों पहले भाजपा द्वारा राम मंदिर निर्माण को चलाए गए आंदोलन में भी शामिल थे।
अयोध्या [रघुवरशरण]। तरक्की के रास्ते पर संघर्ष कभी जाया नहीं जाता, जबकि सेवा और समर्पण ही अलग पहचान-मुकाम दिलाते हैं। मिसाल की दुनिया में इन लाइनों को बार-बार ऐसे ही नहीं दोहराया जाता। नजीर के रूप में जब भी कोई शख्स उभरता है, उसका पूरा व्यक्तित्व इन चंद शब्दों से गढ़ा-मढ़ा पाते हैं हम। चूंकि, देश में इन दिनों चर्चा का केंद्र राम मंदिर निर्माण के लिए गठित ट्रस्ट श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र है, इसलिए हर कोई हर कोई उसके बारे में जानने को उत्सुक है।
खासकर पहली बार बनाए गए सदस्यों के बारे में। वे कौन हैं? क्या खासियत है? यह ठीक है कि ट्रस्ट की घोषणा के बाद सदस्यों के बारे में बहुत सी जानकारियां सामने आ चुकी हैं। काफी कुछ लिखा गया है, मगर उनके चुनाव की वजह में छिपे तमाम ऐसे पहलू हैं, जिनके दम पर उन्हें यह जिम्मेदारी मिली है। ट्रस्ट के उन्हीं सदस्यों में एक डॉ. अनिल मिश्र के बारे में हम आपको बताते हैं।
कहने को पेशे से होम्योपैथी के चिकित्सक हैं। आरएसएस के समर्पित कार्यकता हैं, मगर स्वभाव से सरल और रोम-रोम में समाया है एक ही भाव, सेवा और सिर्फ सेवा..। लंबे इंतजार के बाद गठित 15 सदस्यीय श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में रामनगरी से तीन चेहरे लिए गए हैं। अयोध्या राजपरिवार के मुखिया बिमलेंद्र मोहन मिश्र, निर्मोही अखाड़ा के महंत दिनेंद्रदास सहित और आरएसएस के प्रांत कार्यवाह, होम्योपैथी के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. अनिल मिश्र।
डॉक्टर साहब, वैसे तो मूलरूप से आंबेडकरनगर के ग्राम पतोना निवासी हैं। जौनपुर के पीडी बाजार स्थित जयहिंद इंटर कॉलेज से माध्यमिक स्तर की पढ़ाई की। फिर डॉ. बृजकिशोर होम्योपैथिक कॉलेज में पढ़ने फैजाबाद आ गए। डॉक्टरी की पढ़ाई में कुछ दिन ही बीते थे कि होम्योपैथी को एलोपैथी के समानांतर प्रतिष्ठा दिलाने का आंदोलन छिड़ गया। अनिल मिश्र भी आंदोलन में कूद पड़े, जिसके चलते उन्हें जेल तक जाना पड़ा। यह उस दौर की बात है, जब देश आपातकाल में जकड़ चुका था। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के प्रचारक भी थोक के भाव जेल जा रहे थे।
बंदी जीवन के ही दौरान अनिल मिश्र भी संघ के संपर्क में आए। इनमें संगठन के स्थापित चेहरों में शुमार स्वर्गीय रमाशंकर उपाध्याय और प्रताप नारायण मिश्र जैसे लोग शामिल थे। फिर क्या, उन्हीं से प्रेरित होकर डॉ. मिश्र ने भी अपना जीवन संघ को समर्पित करने की ठानी।मेडिकल की लड़ाई के चलते आठ माह बाद जेल से छूटे डॉ. मिश्र का जीवन पूरा बदल चुका था। अब वे करियर की बजाए राष्ट्र के लिए जीने की सोचने लगे। हालांकि, उन्होंने होम्योपैथी की पढ़ाई जारी रखी, लेकिन केंद्र में संघ कार्य ही रहा।
दोहरी जिम्मेदारी के बीच 1981 में उन्होंने होम्योपैथी से स्नातक की पढ़ाई पूरी कर ली। साथ ही संघ कार्यकर्ता के रूप में भी पुख्ता पहचान बना ली। नगर शाखा कार्यवाह और मुख्य शिक्षक की भूमिका में प्रभावी छाप छोड़ी। इसी के परिणामस्वरूप बीती सदी के अंतिम दशक के मध्य में एक ओर उन्हें संघ का जिला संपर्क प्रमुख बनाया गया, तो दूसरी ओर चिकित्सा अधिकारी के तौर पर वह शासकीय सेवा में चयनित हो गए। चिकित्सक की भूमिका में प्रभावी मौजूदगी दर्ज कराने वाले डॉ. मिश्र शहर में संघ के प्रतिनिधि के तौर पर स्थापित हुए। दो दशक पूर्व संघ में अवध प्रांत का गठन होने के साथ उन्हें प्रांतीय सह कार्यवाह का दायित्व सौंपा गया।
2005 में जब प्रांत कार्यवाह के चुनाव की बेला आई, तो डॉ. मिश्र सबकी पसंद बनकर उभरे। वक्त के साथ संघ नेतृत्व की निगाह में वह लगातार बने रहे। करियर में भी तरक्की की सीढ़ियां चढ़ते गए। एक वर्ष पूर्व उन्हें होम्योपैथी मेडिसिन बोर्ड का रजिस्ट्रार नामित किया गया।डॉ. अनिल मिश्र को संघर्ष पूर्ण जीवन के सफर का सबसे बड़ा पुरस्कार गत पांच फरवरी को मिला, जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में राम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए गठित प्रतिष्ठापूर्ण राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट गठन का एलान किया।
देश के चुनिंदा 15 लोगों में डॉ. अनिल उसका अहम हिस्सा बनाए गए हैं। अपने मिजाज के अनुरूप ट्रस्टी बनने पर भी वह शांत हैं। ट्रस्ट का सदस्य बनाए जाने के पीछे की वजह पूछे जाने पर सिर्फ इतना कहते हैं, ‘इस बारे में वे लोग ही बता सकते हैं, जिन्होंने हमारा चयन किया है..।’