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History of Political Tours: भारतीय राजनीति में राजनीतिक यात्राओं की रही अहम भूमिका

देश के इतिहास में सबसे चर्चित यात्रा स्वाधीनता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी की दांडी यात्रा को माना जाता है। अंग्रेज सरकार द्वारा नमक पर टैक्स लगाए जाने के विरोध में उन्होंने 12 मार्च 1930 को अहमदाबाद में अपने साबरमती आश्रम से गुजरात के ही दांडी तक पैदल यात्रा की।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Fri, 09 Sep 2022 06:30 AM (IST)Updated: Fri, 09 Sep 2022 06:30 AM (IST)
History of  Political Tours: भारतीय राजनीति में राजनीतिक यात्राओं की रही अहम भूमिका
आइए देखें कैसा रहा इन चार यात्राओं का सफर और कौन थे इनके नायकः

नई दिल्‍ली, जेएनएन। कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा आरंभ हो चुकी है। राहुल गांधी के नेतृत्व में यह यात्रा देश के 12 राज्यों में 3,500 किलोमीटर की दूरी तय करेगी। इसे आने वाले आम चुनाव के पूर्व कांग्रेस की खुद को स्थापित करने व जनसमर्थन की जमीन तैयार करने की कोशिश माना जा रहा है। भारतीय राजनीति में राजनीतिक यात्राओं की अहम भूमिका रही है। बीते चार दशक की बात करें तो राजनीतिक माहौल को प्रभावित करने वाली चार यात्राएं देश में प्रमुख रही हैं। खास बात यह है कि सत्ता तक पहुंचने की कोशिश वाली इन चार यात्राओं में से तीन राज्य स्तर की थीं और आंध्र प्रदेश में हुईं। राष्ट्रीय स्तर की इस अवधि में एक ही यात्रा अहम मानी जाती है जिसने भाजपा की राजनीतिक पहचान बहुत सशक्त कर दी। आइए देखें कैसा रहा इन चार यात्राओं का सफर और कौन थे इनके नायकः

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1982: एनटी रामाराव की चैतन्य रथम यात्रा

आंध्र प्रदेश में वर्ष 1982 में एनटी रामाराव ने चैतन्य रथम यात्रा निकाली। 75 हजार किलोमीटर लंबी इस यात्रा ने प्रदेश के चार चक्कर लगाए जोकि गिनीज बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड में है। 29 मार्च 1982 को नंदमूरी तारक रामाराव ने तेलुगु सम्मान के मुद्दे पर तेलुगुदेशम पार्टी का गठन किया और देश की पहली राजनीतिक रथयात्रा शुरू की। एक शेवरले वैन में बदलाव करके रथ बनवाया गया। एनटीआर एक दिन में 100-100 जगहों तक रुकते। वह इतना लोकप्रिय थे कि जनता इंतजार करती थी, महिलाएं उनकी आरती उतारती थीं। यात्रा के बाद विधानसभा चुनाव में तेलुगुदेशम पार्टी को 294 में से 199 सीटें मिलीं और एनटीआर आंध्र प्रदेश के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने।

1990: आडवाणी की राम रथयात्रा

वर्ष 1990 में भाजपा ने राममंदिर निर्माण आंदोलन को तेज करते हुए पूरे देश में भ्रमण करते हुए अयोध्या तक रथयात्रा की घोषणा की। इस यात्रा के सारथी बने लालकृष्ण आडवाणी। रथयात्रा 25 सितंबर को गुजरात में ख्यात तीर्थस्थल सोमनाथ से शुरू हुई और सैकड़ों शहरों व गांवों से होकर गुजरते हुए बिहार पहुंची। तत्कालीन सीएम लालू प्रसाद ने समस्तीपुर में रथयात्रा रोककर आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया। इस रथयात्रा ने भाजपा को राष्ट्रीय पार्टी के रूप में एक नई पहचान और जनता के बीच लोकप्रियता दी। कहा जाता है कि यहीं से भाजपा की राजनीतिक यात्रा ने करवट ली और एक नए दौर में प्रवेश किया। रथयात्रा के बीच राममंदिर आंदोलन में भारी संख्या में कारसेवक अयोध्या पहुंचे। वर्ष 1991 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को 120 सीटें मिलीं जो पिछले चुनाव से सीधे 35 अधिक थीं।

2004: वाईएस राजशेखर रेड्डी की पैदलयात्रा

कांग्रेस के कद् दावर नेता वाईएस राजशेखर रेड्डी ने वर्ष 2004 में आंध्र प्रदेश के चेवेल्ला शहर से 1,500 किमी पैदलयात्रा की शुरुआत की। यह यात्रा 11 जिलों से होकर गुजरी। जनता राजशेखर को मसीहा मानती थी, लोग उनसे मिलने उमड़े । विधानसभा चुनाव में 294 में से 185 सीटों पर कांग्रेस की जीत के साथ 10 वर्ष से जारी टीडीपी का शासन खत्म हुआ और वाईएस राजशेखर रेड्डी मुख्यमंत्री बने।

2017 : जगनमोहन रेड्डी की प्रजा संकल्प यात्रा

आंध्र प्रदेश में ही वर्ष 2017 में निकाली गई इस यात्रा ने युवा जगनमोहन रेड्डी को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचा दिया। वर्ष 2009 में वाईएस राजशेखर रेड्डी की हेलीकाप्टर दुर्घटना में मौत के बाद कांग्रेस ने उनके बेटे जगनमोहन रेड्डी को मुख्यमंत्री बनाने से इन्कार कर दिया था। इसके बाद जगमोहन ने वाईएसआर कांग्रेस पार्टी का गठन किया। पिता की आंध्र प्रदेश यात्रा की तरह पदयात्रा निकाली जो उनके राजनीतिक करियर की खेवनहार बनी। छह नवंबर 2017 में उन्होंने कडप्पा जिले से पदयात्रा शुरू की। जो 430 दिन में 13 जिलों के 125 विधानसभा क्षेत्रों से 3,648 किमी की दूरी तय करते हुए श्रीकाकुलम तक पहुंची। रथयात्रा के बाद वर्ष 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में वाईएसआर कांग्रेस को 175 में से 152 सीटों पर विजय मिली और जगनमोहन सीएम बने।

देश के इतिहास में सबसे चर्चित यात्रा स्वाधीनता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी की दांडी यात्रा को माना जाता है। अंग्रेज सरकार द्वारा नमक पर टैक्स लगाए जाने के विरोध में उन्होंने 12 मार्च 1930 को अहमदाबाद में अपने साबरमती आश्रम से गुजरात के ही दांडी तक पैदल यात्रा की। 26 दिनों बाद छह अप्रैल 1930 को यह यात्रा दांडी पहुंची जहां महात्मा गांधी ने नमक कानून तोड़ा।


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