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साल्वे का गैर निर्वाचित लोगों पर निशाना, कहा- कुछ को लगता है कि थोप सकते हैं अपनी इच्‍छा

न्यायविद हरीश साल्वे ने कहा है कि बहुत से ऐसे लोग जो निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं हैं उन्हें लगता है कि वे अदालतों के माध्यम से अपनी इच्छा सरकार पर थोप सकते हैं।

By Krishna Bihari SinghEdited By: Published: Sat, 30 May 2020 01:41 AM (IST)Updated: Sat, 30 May 2020 01:43 AM (IST)
साल्वे का गैर निर्वाचित लोगों पर निशाना, कहा- कुछ को लगता है कि थोप सकते हैं अपनी इच्‍छा

नई दिल्ली, पीटीआइ। जाने-माने न्यायविद हरीश साल्वे ने शुक्रवार को कहा कि बहुत से ऐसे लोग जो निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं हैं, उन्हें लगता है कि वे अदालतों के माध्यम से अपनी इच्छा सरकार पर थोप सकते हैं। उन्होंने कहा कि किसी फैसले और यहां तक कि एक न्यायाधीश की आलोचना की जा सकती है। लेकिन, उसके लिए उद्देश्यों को जिम्मेदार ठहराना गलत है। वरिष्ठ वकील ने यह भी कहा कि निजता का उल्लंघन एक गंभीर मुद्दा है और निजी डाटा एक मूल्यवान संपत्ति है। लेकिन, भारतीय इसके बारे में गंभीर नहीं हैं।

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साल्वे ने एक वेबिनार के दौरान कहा, यह कहना कि कोई निर्णय किसी राजनीतिक दल का पक्ष लेना है या न्यायाधीश ने राजनीतिक दल के पक्ष में काम किया है, गलत है। आप यह कहते हुए किसी फैसले की आलोचना कर सकते हैं कि न्यायाधीश ने रूढि़वादी लाइन ली है। साल्वे ने कहा कि कुछ लोगों को राहत के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचने की आदत है। जब उन्हें सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिलती है, तो वे कहते हैं कि जज इस वजह से ऐसा नहीं कर रहे हैं..।

साल्वे ने कहा कि कुछ लोग यह कह कर सीमाओं को तोड़ रहे हैं कि प्रवासियों के मामले को हैंडल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट 'एफ' ग्रेड का हकदार है। मैं इन लेखों को पढ़ता रहता हूं। वे गलत हैं। बहुत से लोग जो निर्वाचित नहीं हैं, उन्हें लगता है कि वे अदालतों के माध्यम से अपनी इच्छा सरकार पर थोप सकते हैं। कोई भी अदालत की यह कहकर आलोचना कर सकता है कि (प्रवासियों के मामले में) अदालत को हस्तक्षेप करना चाहिए था या नहीं। लेकिन, यह कहना कि अदालत सरकार से डर गई है, गलत है।

अभी एक दिन पहले ही प्रवासी मजदूरों को वापस घर भेजे जाने पर हुई सुनवाई के दौरान सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हस्तक्षेप अर्जी दाखिल करने वाले लोगों को सुने जाने का विरोध करते हुए कहा था कि अदालत को राजनीतिक मंच नहीं बनने दिया जाना चाहिए। मेहता ने कहा कि जिन लोगों ने हस्तक्षेप अर्जी दाखिल की है और मजदूरों की समस्या पर कोर्ट में बहस करना चाहते हैं उनसे पहले पूछा जाए कि उन्होंने खुद इस दिशा में क्या किया है। 


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