कितना कारगर रहा कालेधन के खिलाफ सरकार का ‘मास्टरस्ट्रोक’!
नोटबंदी के बाद के वित्त वर्ष में 25 फीसद अधिक नए व्यक्तिगत करदाताओं ने रिटर्न दाखिल किया।
नई दिल्ली (जयप्रकाश रंजन)। नवंबर, 2016 में जब देश में 500 और 1000 रुपये के नोट बंद करने का फैसला हुआ तब इसे कालेधन के खिलाफ सरकार का एक ‘मास्टरस्ट्रोक’ माना गया था। पीएम मोदी ने स्वयं यह बात बाद में बताई थी कि इससे कालाधन जमा करने वालों को बहुत परेशानी हो रही है। उनके कैबिनेट के एक वरिष्ठ सहयोगी ने इसे कालेधन के जड़ पर किया गया प्रहार बताया था। अब सवाल यह है कि क्या तकरीबन डेढ़ साल बाद यह कहा जा सकता है कि नोटबंदी ने देश में कालेधन का खात्मा कर दिया?
इस सवाल का जवाब देने से पहले हम आपके सामने एक तथ्य पेश कर रहे हैं जिसे वित्त मंत्रालय ने ही तैयार किया है। नोटबंदी के बाद बैंकों में जो राशि जमा करवाई गई है उसकी छानबीन अभी जारी है। इस प्रक्रिया में यह तथ्य सामने आया है कि नोटबंदी के दौरान 3.04 लाख व्यक्तियों ने अपने बैंक खातों में दस-दस लाख रुपये कैश जमा किया था लेकिन इन्होंने निर्धारित तिथि तक अपना आयकर रिटर्न दाखिल नहीं किया। आयकर विभाग ने इन सभी को नोटिस जारी किया। इनमें से 2.09 लाख नॉनफाइलर्स रिटर्न दाखिल करने पर मजबूर हुए और उन्होंने सेल्फ असेसमेंट कर भार भरकम 6,416 करोड़ रुपये आयकर जमा किया है। इस राशि में से 5,241 करोड़ रुपये पिछले वित्त वर्ष 2017-18 में आए हैं।
नोटबंदी के बाद के वित्त वर्ष में 25 फीसद अधिक नए व्यक्तिगत करदाताओं ने रिटर्न दाखिल किया। इस आंकड़े को यहां बताने का मकसद सिर्फ यह था कि अगर नोटबंदी नहीं होती तो सिस्टम में कभी इन करदाताओं के बारे में जानकारी नहीं आ पाती। यह समझा जा सकता है कि सिस्टम से बाहर होने की वजह से उक्त करदाता एक तरह से कालेधन को जमा करने में ही योगदान कर रहे थे। कर नहीं चुकाना भी भ्रष्टाचार है और यह कई दूसरे तरीके के करप्शन को जन्म भी देता है। बेशक नोटबंदी की निंदा करने वाले कम नहीं है।
तमाम आंकड़े बताते हैं कि नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी की है, छोटे व मझोले उद्योगों को भी नुकसान हुआ है लेकिन इसके दूसरे सकारात्मक असर भी हैं जो देश में भ्रष्टाचार के खात्मे में अहम भूमिका निभा सकते हैं। मसलन, नोटबंदी ने जिस तरह से देश में डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देना शुरू किया है वह एक स्वच्छ व्यवस्था बनाने की राह तैयार करेगा।