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कांग्रेस में फेरबदल: कमलनाथ को मध्यप्रदेश तो गिरीश चोडांकर को गोवा कांग्रेस की कमान

दिग्गज नेता कमलनाथ को मध्यप्रदेश और गोवा में गिरीश चोढंकर को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर नियुक्त किया गया है।

By Monika MinalEdited By: Published: Thu, 26 Apr 2018 12:52 PM (IST)Updated: Thu, 26 Apr 2018 08:57 PM (IST)
कांग्रेस में फेरबदल: कमलनाथ को मध्यप्रदेश तो गिरीश चोडांकर को गोवा कांग्रेस की कमान
कांग्रेस में फेरबदल: कमलनाथ को मध्यप्रदेश तो गिरीश चोडांकर को गोवा कांग्रेस की कमान

नई दिल्‍ली (एएनआई)। कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने गोवा और मध्‍य प्रदेश में कांग्रेस कमेटी के नये प्रदेश अध्‍यक्ष के नामों की घोषणा कर दी है। कमल नाथ को मध्‍यप्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्‍यक्ष और गिरीश चोडांकर को गोवा प्रदेश कांग्रेस (पीसीसी) का अध्‍यक्ष चुना गया है। क्षेत्रीय, गुटीय और जातीय संतुलन बैठाने की गरज से पहली बार चार कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति भी की गई है। कमलनाथ 1 मई को अध्यक्ष का कार्यभार संभालेंगे।

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प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष के अलावा जिन चार नेताओं को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया वे हैं- बाला बच्चन, रामनिवास रावत, जीतू पटवारी और सुरेंद्र चौधरी। कांग्रेस में ऐसा पहली बार हो रहा है जब अध्यक्ष के अलावा चार-चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए हों। कांग्रेस में हुए इस फेरबदल का इंतजार पिछले दो-तीन साल से था, लेकिन पार्टी नेतृत्व यह तय नहीं कर पा रहा था कि कमलनाथ और सिंधिया में से किसे प्रदेश अध्यक्ष बनाएं और किसे चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष। इस ऊहापोह का लाभ अरुण यादव को मिला और वे चार साल से ज्यादा समय तक अध्यक्ष रहने का कीर्तिमान बना गए।

यादव को 2014 में उस समय प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया था, जब विधानसभा चुनाव में पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा था। तब कांतिलाल भूरिया को हटाकर अपेक्षाकृत युवा अरुण यादव को पीसीसी की कमान सौंपी गई थी। यादव को कमान मिलने के चार माह बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस फिर चारों खाने चित नजर आई। उस चुनाव में कांग्रेस मध्य प्रदेश से सिर्फ दो सांसद ला पाई थी। एक कमलनाथ और दूसरे ज्योतिरादित्य सिंधिया। लोकसभा चुनाव के लिहाज से यह कांग्रेस का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन था। निवर्तमान अध्यक्ष अरुण यादव भी उस चुनाव में हार गए थे। इसके बाद उनके नेतृत्व में हुए अनेक उपचुनावों में पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा। कमलनाथ और सिंधिया को कांग्रेस का अजेय योद्धा माना जाता है। कमलनाथ 1980 से लगातार मध्यप्रदेश की राजनीति में सक्रिय है। 1980 में पहली बार वे छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र से विजयी रहे और एक चुनाव को छोड़ उन्होंने हर चुनाव जीता। जबकि सिंधिया 2002 में हुए उपचुनाव में गुना- शिवपुरी संसदीय क्षेत्र से पहली बार सांसद बने। इसके बाद हुए हर चुनाव में उन्हें सफलता मिलती गई।

संगठन को दोबारा खड़ा करने की चुनौती रहेगी
कमलनाथ और सिंधिया की जोड़ी के सामने लगभग ढह चुके कांग्रेस संगठन को दोबारा खड़ा करने और पिछले 15 साल में गांव-गांव, घर-घर तक गहरी पैठ बना चुकी भाजपा से दो-दो हाथ करने की चुनौती रहेगी। गुटों में बंटी कांग्रेस को एकता के धागे में पिरोना भी आसान काम नहीं होगा। कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी दिक्कत अब तक संसाधनों की कमी थी, लेकिन कमलनाथ के अध्यक्ष बनते ही अब वह भी खत्म हो गई है। लगभग 38 साल से प्रदेश की राजनीति में सक्रिय कमलनाथ को पहली बार प्रदेश स्तर पर कोई जिम्मेदारी मिली है। अब तक वे सांसद और प्रदेश के कोटे से केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। सूबे की सियासत में उनकी छवि किंगमेकर की रही है। पहली बार उन्हें राज्य में कोई बड़ी जिम्मेदारी दी गई है। हालांकि उनके विरोधी यह आरोप चस्पा करते रहे हैं कि उन्हें मप्र के जमीनी नेटवर्क का अनुभव नहीं है वे सिर्फ हवा हवाई नेता हैं।

कमलनाथ के नाम पर करनी पड़ी मशक्कत
कांग्रेस सूत्र बताते हैं कि कमलनाथ के नाम पर पार्टी में एकराय बनाने में कांग्रेस नेतृत्व को काफी मशक्कत करना पड़ी। पार्टी के एक अन्य क्षत्रप दिग्विजय सिंह के कमलनाथ के पक्ष में खुलकर आने के बाद उनकी राह आसान हुई और पार्टी सिंधिया को चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष बनने पर राजी कर पाई। सिंधिया 2013 के चुनाव में भी इस पद पर रह चुके हैं, इसलिए उनकी दिलचस्पी दोबारा उसी पद को लेने की कतई नहीं थी। चूंकि अभी तक कांग्रेस ने किसी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित नहीं किया है, इसलिए सभी मिलकर काम करेंगे, ऐसी उम्मीद पार्टी को है।

कार्यकारी अध्यक्षों के जरिए संतुलन की कवायद
कमलनाथ के साथ पार्टी ने चार कार्यकारी अध्यक्ष भी घोषित किए हैं। इन चारों की नियुक्ति करते समय पार्टी ने सावधानी से क्षेत्रीय, जातीय और गुटीय संतुलन साधने पर ध्यान दिया है। बाला बच्चन निमाड़ अंचल से आते हैं, जहां के अरुण यादव को अध्यक्ष पद से हटाया है। बच्चन आदिवासी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं और कमलनाथ के बेहद करीबी हैं। दूसरे कार्यकारी अध्यक्ष जीतू पटवारी मालवा अंचल के हैं और उनके तार सीधे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से जुड़े हुए हैं। वे पिछड़े वर्ग के नेता हैं। रामनिवास रावत ग्वालियर-चंबल अंचल का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे पिछड़े वर्ग से ताल्लुक रखते हैं और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेहद करीबी हैं, जबकि सुरेंद्र चौधरी बुंदेलखंड अंचल के हैं। वे अनुसूचित जाति से हैं और कमलनाथ के करीबी हैं। बचे हुए महाकौशल अंचल से खुद अध्यक्ष कमलनाथ हैं और बघेलखंड से नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह। इस तरह आंचलिक संतुलन बैठाने के लिहाज से तो कांग्रेस का यह प्रयोग हाल फिलहाल सफल रहा है।

गोवा में कांग्रेस को मजबूत बनाना बड़ी चुनौती: चोडांकर

गोवा में कांग्रेस अध्‍यक्ष के तौर पर नियुक्‍त किए गए गिरीश चोडांकर ने कहा, राज्‍य में कांग्रेस को मजबूती के साथ खड़ा करना सबसे बड़ी चुनौती है। पेशे से शिक्षक 50 वर्षीय चोडांकर ने कहा, वह दिन गए जब लोग राजनीतिक पार्टी के पास आते थे। अब पार्टियां ही लोगों के पास जाती हैं।‘ 2011 से 2017 के बीच चोडांकर नेशनल स्‍टूडेंट्स ऑफ इंडिया (एनएसयूआइ) के इंचार्ज रहे। बता दें कि पिछले माह शांताराम नाइक ने इस पद से इस्‍तीफा दे दिया था। 


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