अक्टूबर से शताब्दी, राजधानी ट्रेनों में नहीं लगेंगे झटके, डिजाइन में किया बदलाव
नया सीबीसी कपलर न केवल झटकों से मुक्ति दिलाता है, बल्कि दुर्घटना की स्थिति में बोगियों को एक दूसरे पर चढ़ने से भी रोक कर जान-माल की क्षति को काफी हद तक सीमित करता है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। अक्टूबर से राजधानी और शताब्दी ट्रेनों के यात्रियों को रुकते और चलते वक्त लगने वाले झटकों से निजात मिलने की उम्मीद है। इसके लिए रेलवे ने एलएचबी बोगियों में लगने वाले सेंट्रल बफर कपलर (सीबीसी) के डिजाइन में संशोधन किया है।
नए किस्म के सीबीसी कपलर विकसित
रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अश्वनी लोहानी ने इस बात की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि पुराने किस्म के सीबीसी कपलर के कारण राजधानी और शताब्दी ट्रेनों के यात्रियों को ट्रेन चलते और रुकते वक्त जर्क की समस्या का सामना करना पड़ता था। रेलवे के इंजीनियरों ने इस समस्या से निपटने के बहुतेरे प्रयास किए, मगर कामयाबी नहीं मिली थी। परंतु अब इसका समाधान खोज लिया गया है। इसके लिए रेलवे ने नए किस्म के सीबीसी कपलर विकसित किए हैं, जिनके उपयोग से इस समस्या से पूरी तरह निजात मिल जाएगी।
बैलेंस्ड ड्राफ्ट गियर वाले नए सीबीसी कपलर
जर्मन तकनीक पर आधारित एलएचबी (लिंक हॉफमैन बुश) बोगियां वैसे तो इंटीग्रल कोच फैक्ट्री फैक्ट्री के डिजाइन पर निर्मित आइसीएफ बोगियों के मुकाबले उन्नत और सुरक्षित हैं। लेकिन इनकी जर्क की समस्या की शिकायत यात्री अक्सर करते रहे हैं जिसका कारण इनमें प्रयुक्त सीबीसी कपलर थे, जिनमें बेहद कमजोर शॉक एब्जार्बर का प्रयोग किया गया था।
रेलवे ने इन्हें दुरुस्त करने के अनेक प्रयास किए लेकिन कामयाबी नहीं मिली। परिणामस्वरूप रेलवे ने बैलेंस्ड ड्राफ्ट गियर वाले नए सीबीसी कपलर विकसित करने का फैसला किया। इनमें झटकों को अपने भीतर समाहित करने की अद्भुत क्षमता है। ट्रेन के चलते व रुकते वक्त बोगियों के भीतर यात्रियों को झटके महसूस नहीं होते।
लोहानी के अनुसार सबसे पहले राजधानी दिल्ली से चलने वाली 13 शताब्दी और 11 राजधानी ट्रेनों में नए कपलर लगाए जा रहे हैं। अक्टूबर तक उत्तर रेलवे में चलने वाली सभी शताब्दी और राजधानी ट्रेनों में नए सीबीसी कपलर लगा दिए जाएंगे।
ट्रेन हादसों में जान-माल की सीमित क्षति
कपलर ट्रेन की दो बोगियों को आपस में संबद्ध करने वाला उपकरण है। जबकि दो कपलर को परस्पर जोड़ने वाले उपकरण को ड्राफ्ट गियर कहते हैं। नया सीबीसी कपलर न केवल झटकों से मुक्ति दिलाता है, बल्कि दुर्घटना की स्थिति में बोगियों को एक दूसरे पर चढ़ने से भी रोक कर जान-माल की क्षति को काफी हद तक सीमित करता है। झटकों को छोड़ दें तो सुरक्षा के लिहाज से बोगियों को एक दूसरे पर न चढ़ने देने की खूबी पहले वाले सीबीसी कपलर में भी थी। इस खूबी के कारण कई ट्रेन हादसों में जान-माल की सीमित क्षति हुई। दूसरी ओर आइसीएफ बोगियां हादसे के वक्त एक दूसरे पर चढ़ जाती हैं।
इस लिहाज से आइसीएफ बोगियों को असुरक्षित माना जाता है। पुखरायां हादसे में इन्हीं बोगियों की वजह से ज्यादा लोग मारे गए थे। तभी रेलवे ने आइसीएफ बोगियों का उत्पादन पूरी तरह बंद कर केवल एलएचबी बोगियों का उत्पादन करने का निर्णय लिया था। यही नहीं, यह भी तय किया गया था कि उपयोग में आ रही सभी 40 हजार आइसीएफ बोगियों के कपलर बदलकर उनमें सीबीसी कपलर लगाए जाएंगे।