Assembly Election 2023: काम नहीं आई विचारधारा के विपरीत दोस्ती, परिणाम ने किया कांग्रेस और वामदलों को निराश
Assembly Election 2023 ममता बनर्जी के राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरते ही कांग्रेस और वामदलों की बंगाल की जमीन धीरे-धीरे सिकुड़ने लगी। जिसे रोकने के लिए 2021 के विधानसभा में दोनों एक साथ आ गए। (जागरण - फोटो)
नई दिल्ली, अरविंद शर्मा। विचारधारा के विपरीत जाकर कांग्रेस के साथ वामदलों का गठबंधन त्रिपुरा में भी काम नहीं आया। विधानसभा चुनाव में दोनों का हाल लगभग बंगाल जैसा ही हुआ। तीन दशक तक वामदलों की जन्म-कर्मभूमि रहे बंगाल में दो वर्ष पहले तृणमूल कांग्रेस एवं भाजपा की बढ़ती शक्ति को चुनौती देने के लिए वामदलों के मोर्चा ने कांग्रेस के साथ दोस्ती की थी।
वामदलों की बंगाल की जमीन धीरे-धीरे लगी सिकुड़ने
इसके पहले प्रत्येक चुनाव में दोनों प्रमुख प्रतिद्वंद्वी होते थे। दोनों के बीच यह दुश्मनी तबतक चलती रही जबतक तृणमूल कांग्रेस बंगाल की प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित नहीं हो गई। ममता बनर्जी के राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरते ही कांग्रेस और वामदलों की बंगाल की जमीन धीरे-धीरे सिकुड़ने लगी। जिसे रोकने के लिए 2021 के विधानसभा में दोनों एक साथ आ गए।
पिछले विधानसभा चुनाव में 16 प्रत्याशी जीतकर आए थे
मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन जब परिणाम सबके लिए ऐतिहासिक सबक लेकर आया। दोनों में से किसी भी दल को एक भी सीट नहीं मिली थी। किंतु कांग्रेस एवं वामदलों ने बंगाल के सबक को पीछे छोड़ते हुए भाजपा को रोकने के लिए त्रिपुरा में भी दोस्ती कर ली। नतीजा लगभग उसी तरह आया। त्रिपुरा में वामदल अपना पिछला प्रदर्शन भी नहीं कर पाए। पिछले विधानसभा चुनाव में 16 प्रत्याशी जीतकर आए थे। इस बार गठबंधन के बावजूद सिर्फ 11 पर सिमट गए।
कांग्रेस का हाल भी कुछ ज्यादा अच्छा नहीं रहा। उसे तीन सीटें मिलीं। मेघालय में भी कांग्रेस को निराशा ही हाथ लगी। पिछली बार 21 सीटें मिली थीं। इस बार पांच पर सिमट गई। ममता बनर्जी की मेहनत के अनुरूप तृणमूल कांग्रेस का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं रहा। मेघालय में उन्होंने काफी मेहनत की थी, लेकिन सिर्फ पांच सीटों से संतोष करना पड़ा । चुनाव के पहले माना जा रहा था कि अगर ममता की मेहनत कारगर होती है और वह पूर्वोत्तर के किसी एक राज्य में भी मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभर पाती हैं तो राष्ट्रीय राजनीति में उनका हस्तक्षेप बढ़ सकता है।
मिशन-24 के लिए भी संदेश
ईसाई और आदिवासी बहुल नगालैंड और मेघालय में भी कांग्रेस की रणनीति काम नहीं कर पाई। विकास कार्यों में तेजी के साथ-साथ भाजपा ने द्रौपदी मुर्मु को राष्ट्रपति बनाकर एक बड़े वर्ग तक संदेश दिया। टिकट वितरण में भी भाजपा ने आदिवासी एवं ईसाई चेहरों पर खुलकर दांव लगाया। माना जा रहा है कि पूर्वोत्तर में भाजपा की यह रणनीति मिशन-2024 में भी सहायक हो सकती है। धार्मिक मुद्दों से अलग भाजपा विकास के मुद्दों को उभार सकती है।