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आज निर्वासन दिवस: कश्मीरी पंडित बोले, 'हम वापस आएंगे', बदले हालात में मोदी सरकार से बढ़ीं आशाएं

देश विदेश में बसे कश्मीरी पंडित सोशल मीडिया पर एक सुर में बोल रहे हैं कि हम वापस आएंगे।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sat, 18 Jan 2020 10:16 PM (IST)Updated: Sun, 19 Jan 2020 01:10 AM (IST)
आज निर्वासन दिवस: कश्मीरी पंडित बोले, 'हम वापस आएंगे', बदले हालात में मोदी सरकार से बढ़ीं आशाएं
आज निर्वासन दिवस: कश्मीरी पंडित बोले, 'हम वापस आएंगे', बदले हालात में मोदी सरकार से बढ़ीं आशाएं

नवीन नवाज, जम्मू। इस्लामिक कट्टरवाद की जड़ अनुच्छेद 370 समाप्त हो चुका है। नए जम्मू-कश्मीर के उदय के साथ विकास और खुशहाली की नई इबारत लिखी जा रही है। बदलते हालात के बीच बीते 30 साल में पहली बार विस्थापित कश्मीरी पंडितों को घाटी में अपनी सम्मानजनक वापसी की उम्मीद जगी है। यही कारण है कि शनिवार को सोशल मीडिया पर शिकारा फिल्म का डायलॉग 'हम वापस आएंगे' ट्रेंड करता रहा।

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अपने ही घर में शरणार्थी बने

अपने ही घर में शरणार्थी बने पंडितों का कहना है कि केंद्र की मोदी सरकार ने जो संकल्पशक्ति जम्मू-कश्मीर को लेकर दर्शायी है। वैसी ही उनके मुद्दों को हल करने के लिए भी कायम रहती है तो शायद ही कोई कश्मीरी विस्थापित अगले साल इस निर्मम त्रासदी की बरसी मनाए। हम उम्मीद कर रहे हैं कि अगले साल इस दिन घर वापसी का जश्न मनाएं।

आतंकी गतिविधियां बढ़ने से रातों-रात कश्मीरी पंडितों को अपना घर छोड़ना पड़ा

कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी संगठन जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) और हिजबुल मुजाहिदीन समेत विभिन्न संगठनों ने 1988 में धीरे-धीरे अपनी गतिविधियां बढ़ाना शुरू कीं और 1990 की शुरुआत में हालात इस कदर बिगड़ गए कि रातों-रात कश्मीरी पंडितों को अपने घर छोड़कर जम्मू समेत देश के विभिन्न हिस्सों में शरण लेनी पड़ी।

हर साल 19 जनवरी को अपना निर्वासन दिवस मनाते हैं कश्मीरी पंडित

कश्मीरी पंडित हर साल 19 जनवरी को निर्वासन दिवस मनाते हुए अपने साथ हुए अत्याचार की ओर देश और दुनिया का ध्यान दिलाते हैं।

कश्मीरी पंडित बीते 30 वर्षो से इंसाफ की गुहार लगा रहे

कश्मीरी पंडित बीते 30 वर्षो से ही देश-विदेश में विभिन्न मंचों पर अपने लिए इंसाफ मांग रहे हैं। हालांकि केंद्र सरकार ने पिछले कुछ वर्षो में कश्मीरी पंडितों की कश्मीर वापसी के लिए कई कॉलोनियां बनाने के साथ उनके लिए रोजगार पैकेज का भी एलान किया। इसके बावजूद साल 2015 तक सिर्फ एक ही परिवार कश्मीर वापसी पैकेज के तहत श्रीनगर लौटा था। प्रधानमंत्री पैकेज के तहत रोजगार पाने वाले भी ट्रांजिट कॉलोनियों में ही सिमट कर रह गए हैं। हालांकि पांच अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटने के बाद विस्थापित कश्मीरी पंडितों में भी उम्मीद की एक नयी किरण जगी है।

अगर अब कुछ नहीं हुआ तो कभी नहीं होगा : चुरुंगु

पनुन कश्मीर के चेयरमैन डॉ. अजय चुरुंगु ने कहा कि अनुच्छेद 370 और 35ए जम्मू-कश्मीर को धर्मनिरपेक्ष भारत में एक लघु इस्लामिक राज्य का दर्जा देते थे। अब यह समाप्त हो चुका है। अब जम्मू-कश्मीर धर्मनिरपेक्ष भारत का एक पूर्ण हिस्सा है। जेकेएलएफ और जमात-ए-इस्लामी पर भी पाबंदी लग चुकी है। इसलिए अब हमें अपनी वापसी की उम्मीद है। केंद्र सरकार को चाहिए वह रिवर्सल ऑफ जिनोसाइड करे, पंडितों का पूरे देश में निष्पक्ष जनगणना होनी चाहिए। कश्मीर में एक अलग शहर होना चाहिए, उन्हें होमलैंड चाहिए। अगर अब कुछ नहीं हुआ तो कभी नहीं होगा।

कश्मीरियों के नाम पर सियासत भी होगी कम

कश्मीरी ¨हदू वेलफेयर सोसाइटी के सदस्य चुन्नी लाल ने कहा कि हमारे समुदाय के अधिकांश लोग कश्मीर से चले गए, लेकिन मुझ जैसे करीब तीन हजार लोग यहां रहे। हम लोगों की हालत आप देख सकते हैं। मेरी तरह यहां जो लोग रहे वे कुपवाड़ा, बारामुला समेत वादी के दूरदराज इलाकों में आतंकी हमलों से डर कर श्रीनगर आ गए। हमारी तरफ कोई ध्यान नहीं देता। जितनी सियासत कश्मीरियों के नाम पर हुई है। अब उसके समाप्त होने की उम्मीद की जा सकती है। रविवार को पूरी दुनिया में हम निर्वासन दिवस मनाएंगे, लेकिन कश्मीर में हम ऐसा नहीं कर सकते।

'हम आएंगे अपने वतन और यहीं पर दिल लगाएंगे, यहीं मरेंगे

'हम आएंगे अपने वतन और यहीं पर दिल लगाएंगे, यहीं मरेंगे और यहीं के पानी में हमारी राख बहाई जाएगी'। दरअसल, यह डायलॉग विधु विनोद चोपड़ा की आने वाले फिल्म शिकारा का है। इस फिल्म में बताया गया कि कश्मीरी पंडितों का कैसे पलायन हुआ और उन्हें कितनी पीड़ा सहनी पड़ी। 'हम वापस आएंगे' का डायलॉग अब सोशल मीडिया पर एक कंपेन बन गया है। जो कि शनिवार को पूरे दिन देश में ही नहीं, विदेशों में भी ट्विटर पर ट्रेंड करता रहा। देश विदेश में बसे कश्मीरी पंडित सोशल मीडिया पर एक सुर में बोल रहे हैं कि 'हम वापस आएंगे'। युवा कश्मीरी पंडित तो भावुक भरे पोस्ट भी कर रहे हैं।


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