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लखीमपुर खीरी कांड से उत्साहित कांग्रेस यूपी में बनेगी सपा के लिए चुनौती, जानें क्या दोनों में है गठबंधन की संभावना

लखीमपुर खीरी कांड में किसानों के समर्थन में प्रियंका गांधी वाड्रा की सक्रियता से कांग्रेस को मिली सियासी संजीवनी उत्तर प्रदेश में विपक्षी गठबंधन के लिए नई चुनौती बन सकती है। अब तक डांवाडोल दिख रही कांग्रेस को प्रियंका के आक्रामक तेवर में अपने लिए उम्मीद नजर आने लगी है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sat, 09 Oct 2021 07:55 PM (IST)Updated: Sat, 09 Oct 2021 07:55 PM (IST)
लखीमपुर खीरी कांड से उत्साहित कांग्रेस यूपी में बनेगी सपा के लिए चुनौती, जानें क्या दोनों में है गठबंधन की संभावना
लखीमपुर खीरी कांड में किसानों के समर्थन में प्रियंका गांधी वाड्रा अखिलेश यादव

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। लखीमपुर खीरी कांड में किसानों के समर्थन में प्रियंका गांधी वाड्रा की सक्रियता से कांग्रेस को मिली सियासी संजीवनी उत्तर प्रदेश में विपक्षी गठबंधन के लिए नई चुनौती बन सकती है। चुनावी पिच पर अब तक डांवाडोल दिख रही कांग्रेस को प्रियंका के आक्रामक तेवर में अपने लिए उम्मीद नजर आने लगी है। कांग्रेस की यह उम्मीद ही उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ विपक्ष के चुनावी गठबंधन की राह में रोड़ा बन सकती है। लखीमपुर खीरी कांड से उत्साहित कांग्रेस तालमेल की स्थिति में अब समाजवादी पार्टी के सामने ज्यादा सीटों की मांग रखेगी।

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विपक्षी वोटों का बिखराव रोकने के लिए सपा को कांग्रेस से करना पड़ सकता है तालमेल

गठबंधन के पिछले अनुभवों में कांग्रेस को ज्यादा सीटें देने का नुकसान उठा चुकी सपा के लिए एक बार फिर ऐसा जोखिम उठाना आसान नहीं होगा। लखीमपुर खीरी कांड से पूर्व उत्तर प्रदेश की चुनावी चर्चा से कांग्रेस लगभग न केवल बाहर थी बल्कि पार्टी सूबे में अपनी सियासी साख बचाने के लिए सपा से गठबंधन के लिए अंदरूनी तौर पर काफी प्रयास भी कर रही थी। जबकि कांग्रेस की जमीनी हालत को देखते हुए सपा उसे ज्यादा तवज्जो नहीं दे रही थी। सपा ने तो उत्तर प्रदेश के चुनाव में गठबंधन नहीं करने का एलान भी कर दिया था। जाहिर तौर पर प्रतिकूल सियासी हालात में अकेले चुनाव में जाने की तैयारी करने के अलावा कांग्रेस के पास कोई विकल्प नहीं बचा था।

यूपी में कांग्रेस को राजनीतिक बहस की परिधि में ला खड़ा किया

इस बीच लखीमपुर खीरी कांड में प्रियंका गांधी वाड्रा की सक्रियता और उनकी 'गिरफ्तारी' ने सूबे में कांग्रेस को राजनीतिक बहस की परिधि में ला खड़ा किया है। चुनाव से पहले कांग्रेस की यह सियासी बढ़त स्वाभाविक रूप से सपा की परेशानी में इजाफा करेगी क्योंकि इससे भाजपा विरोधी मतों के बंटवारे का खतरा बढ़ेगा। कांग्रेस चुनाव में जितनी मजबूती दिखाएगी विपक्षी वोटों का बंटवारा भी उसी अनुपात में होगा। इसका सबसे अधिक नुकसान सपा को होगा। ऐसे में वोटों का बिखराव रोकने के लिए सपा पर गठबंधन का दबाव बनेगा मगर उसके लिए चुनौती यह होगी कि लखीमपुर खीरी से मिले सियासी टानिक से उत्साहित कांग्रेस ज्यादा सीटों की मांग रखेगी।

फायदेमंद नहीं रहा है दो पार्टियों के बीच गठबंधन

2014 के लोकसभा चुनाव के बाद हुए पिछले दो चुनावों में गठबंधन का सपा का अनुभव उसके लिए फायदेमंद नहीं रहा है। सपा ने 2017 के विधानसभा चुनाव में 100 से अधिक सीटें देकर गठबंधन किया मगर कांग्रेस इनमें से केवल सात सीटें ही जीत पाई। इसी तरह 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा का गठबंधन हुआ मगर इसमें भी बसपा की तुलना में सपा घाटे में ही रही। ऐसे में अगले चुनाव में विपक्षी वोटों का बिखराव रोकने के लिए कांग्रेस को अधिक सीटें देकर गठबंधन करने का जोखिम लेना सपा के लिए बड़ी चुनौती होगी।


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