आपातकाल देश के लोकतांत्रिक इतिहास का बदनुमा दौर - नकवी
नकवी ने आपातकाल को देश के लोकतांत्रिक इतिहास में बदनुमा दौर बताया है।
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने आपातकाल के 43 साल पूरे होने पर आपातकाल के दौर को याद करते हुए एक ब्लॉग लिखा है, जिसमें नकवी ने आपातकाल को देश के लोकतांत्रिक इतिहास में बदनुमा दौर बताया है।
लेख के अनुसार स्वतंत्र भारत में तीन बार आपातकाल लगा, जिसमें पहली बार आपातकाल 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय घोषित किया गया, वही दूसरी बार आपातकाल 1971 में भारत-पाक जंग के दौरान लगा, लेकिन 25 जून 1975 की आधी रात को जब तीसरी बार देश में आपातकाल लगा वो न किसी बाहरी हमले के कारण था ना ही किसी युद्ध के चलते बल्कि कांग्रेस एवं इंदिरा गांधी के सत्ता पर खतरे को टालने के लिए किया गया गुनाह था।
नकवी ने लिखा है कि आपातकाल लगाने के साथ ही कांग्रेस ने चुनाव संबंधी नियम-कानूनों को अपने हिसाब से बदला। इंदिरा गांधी की अपील को सुप्रीम कोर्ट में स्वीकार करवाया गया, ताकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा उनके संसदीय क्षेत्र से चुनाव रद्द किए जाने के फैसले को निष्प्रभावी किया जा सके।
साफ है कि आपातकाल की घोषणा केवल कांग्रेसी सत्ता बचाने के लिए ही नहीं बल्कि इलाहबाद हाई कोर्ट के फैसले और सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम फैसले का उलटना भी था। नकवी ने आपातकाल का सबसे शर्मनाक किस्सा संविधान का 42वां संशोधन को बताया है जिसके जरिए संविधान के मूल ढांचे को कमजोर करने की साजिश हुई। इस दौर में अभिव्यक्ति, प्रकाशन करने, संघ बनाने और सभा करने की आजादी को खत्म कर दिया गया।
नकवी लिखते है कि 1975 को आधी रात में लगायी गयी इमरजेन्सी का तर्क दिया गया ''भारत खतरे मे है''। यह तो देश की लोकतंत्र के प्रति आस्था और तानाशाही के प्रति नफरत का नतीजा था, कि लोगों ने कांग्रेस के सामन्ती आतंक भरे आपातकाल के खिलाफ बगावत की।