कुछ खास हैं ये नतीजे, पूर्वोत्तर राज्यों के फैसले में छिपी आगे की राजनीति
पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के चुनावी नतीजों का असर सिर्फ वहीं तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि 2019 के आम चुनावों से पहले इसका असर दूसरे राज्यों पर भी पड़ेगा।
नई दिल्ली [स्पेशल डेस्क] । पूर्वोत्तर के तीन राज्यों त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड के चुनावी नतीजों पर पूरे देश की निगाह टिकी हुई थी। इवीएम खुलने के बाद ये तस्वीर बन रही थी कि शायद सरकार के किले को ढहा पाना आसान नहीं होगा। लेकिन कुछ घंटों के बीतने के बाद तस्वीर पूरी तरह बदल गई। पांच साल पहले 50 सीटों पर किस्मत आजमाने वाली पार्टी की जमानत 49 सीटों पर जब्त हो गई ये बात अलग है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने दो तिहाई बढ़त के साथ इतिहास लिख दिया है।
25 साल तक अगरतला के कोने कोने में शान से लहराने वाले लाल झंडे को केसरिया रंग के सामने नतमस्तक होना पड़ा और त्रिपुरा में माणिक की जगह हीरा ने अपनी जगह बना ली। तीन मार्च 2018 जहां भाजपा और उसके सहयोगी दलों के लिए जश्न का दिन है तो विपक्षी दलों के लिए आत्मावलोकन का कि आखिर ये सब कैसे हुआ। इससे भी बड़ा सवाल है क्या इन चुनावी नतीजों का असर स्थानीय स्तर पर सीमित रह जाएगा या देश के राजनीतिक पटल पर कामयाबी या नाकामी के दस्तावेजों को अपने लिहाज से रखा जाएगा। आइए जानने की कोशिश करते हैं 2019 के आम चुनाव से पहले कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम के विधानसभा चुनावों पर क्या असर होगा।
2019 से पहले कई राज्यों में परीक्षा
2019 के आम चुनाव से पहले दक्षिण भारत के अहम राज्य कर्नाटक में विधानसभा के चुनाव होने हैं। इस चुनाव के लिए भाजपा ने अपने सीएम उम्मीदवार के नाम का ऐलान कर दिया है। वी एस येदियुरप्पा की अगुवाई में भाजपा चुनावी मैदान में उतर चुकी है। दैनिक जागरण के वरिष्ठ कार्यकारी संपादक प्रशांत मिश्र के मुताबित पूर्वोत्तर राज्यों के चुनावी नतीजों से भाजपा पूरे जोश के साथ कांग्रेस के मुकाबले मैदान में उतरेगी। उन्होंने कहा कि त्रिपुरा, नागालैंड के नतीजों का असर सिर्फ उन इलाकों तक ही सीमित नहीं रहेगा। भाजपा अब और हमलावर होकर कांग्रेस पर निशाना साधेगी।
त्रिपुरा में भाजपा की जीत सिर्फ संख्याबल की जीत नहीं है बल्कि एक विचारधारा पर भी जीत है। माणिक सरकार के खिलाफ भाजपा ने जहां एक बेहतर गठबंधन किया वहीं 25 साल में आम लोगों की बेबसी को भी दिखाया। भाजपा ये संदेश देने में कामयाब रही कि माणिक सरकार का चेहरा और उनकी कार्यशैली में जमीन आसमान का अंतर है।
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि जब कोई दल एक एक कर चुनावों को जीतती है तो कार्यकर्ताओं में जोश का संचार होता है। अगर किसी राज्य में किसी तरह संगठन या सरकार को लेकर असंतोष है तो उस चुनौती का सामना कर पाना आसान होता है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मिजोरम की तस्वीर को देखें तो पहले के तीन राज्यों में स्वभाविक तौर सत्ता विरोधी भावनाएं पैदा होती हैं। लेकिन अगर संगठन में जोश खरोश हो तो लोगों को समझा कर हवा के रुख को अपनी तरफ मोड़ने में आसानी होती है। आप इसे भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के बयानों में भी देख सकते हैं। विरोधी दलों के बयानों को देखें तो ये साफ है कि उनके पास कहने के लिए कुछ भी नया नहीं है। आप किसी भी दल का सिर्फ विरोध नहीं कर सकते हैं। आप को सत्ता पक्ष की खामियों को बताने से पहले एक पुख्ता योजना पर काम करना पड़ता है।
इन चुनावी नतीजों के बाद कांग्रेस प्रवक्ता मीम अफजल का कहना था कि वो तो नागालैंड में चुनाव लड़ ही नहीं रहे थे। इस तरह का बयान न केवल विरोधी दल को हमला करने का मौका देता है बल्कि उनका खुद का कैडर भ्रम का शिकार बन जाता है। ये बात सच है कि आज केंद्र में एक मजबूत सरकार है और जिसका मुखिया दमदार अंदाज में अपनी बात को रखने के साथ आम लोगों को सोचने पर विवश करता है कि आज भारतीय राजनीति में उनके दल से बेहतर न तो किसी के पास सोच है न ही कोई कार्ययोजना।
त्रिपुरा में जीत पर पीएम मोदी ने कहा कि यह एक ऐसा सफर रहा जो शून्य से शिखर की यात्रा है। इस यात्रा को तार्किक मंजिल तक पहुंचाने के लिए कार्यकर्ताओं ने अथक मेहनत किया।
उन्होंने कहा कि ये सिर्फ राजनीतिक जीत नहीं है बल्कि विचारधारा की भी जीत हुई है।
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