ED ने एयरसेल-मैक्सिस मामले में पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम को हिरासत में लेने की मांग की
ईडी ने अपने जवाब में कहा कि चिदंबरम एयरसेल-मैक्सिस मनी लांडरिंग मामले में जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं
नई दिल्ली, एजेंसी। प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम की एयरसेल-मैक्सिस मनी लांडरिंग मामले में अग्रिम जमानत याचिका का विरोध किया है। साथ ही ईडी ने पूरे मामले पर अपना जवाब भी कोर्ट में दाखिल कर दिया है। इसके बाद कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई गुरूवार के लिए टाल दी है। ईडी ने अपने जवाब में कहा कि चिदंबरम एयरसेल-मैक्सिस मनी लांडरिंग मामले में जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं जिससे जांच प्रभावित हो रही है इसलिए उन्हें हिरासत में लेकर पूछताछ करने की मांग की है।
एयरसेल-मैक्सिस मनी लांडरिग मामले में चिदंबरम की अग्रिम जमानत याचिका पर गुरूवार को स्पेशल जज ओ पी सैनी की अदालत सुनवाई करेगी। इसके पहले अदालत ने 8 अक्टूबर को चिदंबरम और उनके बेटे कार्ति को गिरफ्तारी की अवधि को 1 नवंबर तक बढ़ा दिया था।
ईडी ने चिदंबरम पर विदेशी निवेशकों के उद्यमों को मंजूरी देने के लिए उनके साथ गलत तरीके से लेन-देन करने का आरोप लगाया है। पूरे मामले पर विचार करने के लिए विशेष न्यायाधीश ओ पी सैनी ने 26 नवंबर की तारीख तय की। ईडी ने मामले में पहला आरोपपत्र चिदंबरम के पुत्र कार्ती के खिलाफ दायर किया था। बाद में उनके खिलाफ एक पूरक आरोपपत्र भी दायर किए गए।
जांच एजेंसी ने पूरे मामले में चिदंबरम के अलावा 8 और आरोपियों के नाम शामिल किए हैं इनमें से एस भास्कर रमन जो कि कार्ती चिदंबरम के सीए हैं, वी श्रीनिवासन एयरसेल के पूर्व सीईओ के नाम भी शामिल हैं उनके खिलाफ आरोप है कि मार्च 2006 में पूर्व मंत्री द्वारा विदेशी निवेशक ग्लोबल कम्युनिकेशन एंड सर्विसेज होल्डिंग्स लिमिटेड, मॉरीशस को अवैध एफआईएफबी अनुमोदन दिए जाने के बदले 1.16 करोड़ रुपये की मनी लांडरिंग की गई थी, जिसमें यह आरोप है कि ये मंजूरी भारत में एफडीआई नीति से जुड़े कई नियमों का उल्लंघन कर दी गयी।
ईडी ने अपने दूसरे पूरक आरोपपत्र में कहा कि साल 2006 में भारत सरकार की एफडीआइ नीति के तत्कालीन नियमों के तहत पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम को 600 करोड़ रूपए तक के विदेशी निवेश के प्रस्ताव को मंजूरी देने का अधिकार था। विदेशी कंपनी ग्लोबल कम्युनिकेशन एंड सर्विसेज होल्डिंग्स लिमिटेड का निवेश प्रस्ताव आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति को भेजा जाना था। लेकिन ऐसा नहीं किया गया और यहां पर गलत तरीकों से चिदंबरम ने मंजूरी दे दी थी। इस मामले में कार्ती के ईमेल और उनके सहयोगियों के जब्त किए गए कंप्यूटर और लैपटॉप से सबूत मिले हैं।