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राजस्थान में राष्ट्रपति शासन की चर्चाएं, विधि विशेषज्ञों ने कहा- अभी स्थितियां बिगड़ी नहीं

राजस्थान हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हेमंत नाहटा मानते हैं स्थितियां बिगड़ने पर राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की नौबत आ सकती है।

By Bhupendra SinghEdited By: Published: Sat, 25 Jul 2020 05:55 PM (IST)Updated: Sat, 25 Jul 2020 05:55 PM (IST)
राजस्थान में राष्ट्रपति शासन की चर्चाएं, विधि विशेषज्ञों ने कहा- अभी स्थितियां बिगड़ी नहीं

जयपुर, राज्य ब्यूरो। विधानसभा का सत्र आहुत करने के मामले में राजस्थान के मुख्यमंत्री की ओर से राजभवन के घेराव की चेतावनी, राज्यपाल के जवाब और पूरे घटनाक्रम से बनी स्थितियों को देखते हुए राजस्थान में अब राष्ट्रपति शासन की चर्चाएं शुरू हो गई है। हालंकि विधि विशेषज्ञ मानते हैं कि स्थितियां दुर्भाग्यपूर्ण तो हैं, लेकिन राष्ट्रपति शासन जैसी हालत अभी नहीं आई है।

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विधि विशेषज्ञो का मानना है कि स्थितियां इतनी नहीं बिगड़ी

विधानसभा सत्र आहुत करने के मामले में शुक्रवार को सत्तारूढ कांग्रेस और इसके समर्थित विधायकों ने राजभवन में धरना दिया। इससे पहले मुख्यमंत्री और गृहमंत्री अशोक गहलोत ने राजभवन का घेराव करने की चेतावनी दे डाली थी। इस बीच जो स्थितियां बनी उसे देखते हुए राज्य में राष्ट्रपति शासन लगने की सम्भावनाओं की चर्चा शुरू हो गई। शनिवार को राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा रही कि कानून व्यवस्था बनाए रखना सरकार का काम है और जब सरकार खुद ही ऐसी बात कह रही हो तो केन्द्र को राष्ट्रपति शासन के लिए एक बडा आधार मिल सकता है। हालांकि विधि विशेषज्ञो का मानना है कि स्थितियां इतनी नहीं बिगड़ी है।

घेराव शब्द का प्रयोग गलत था

राजस्थान उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश पानाचंद जैन मुख्यमंत्री के बयान को उनके पद की मर्यादा से जोड़ते है। उनका मानना है कि मुख्यमंत्री ने जो कुछ कहा वह उनके पद की मर्यादा के विपरीत था। उन्हे यह देखना चाहिए था कि वे खुद किस पद पर हैं और किस पद पर बैठे व्यक्ति के खिलाफ बयान दे रहे है। घेराव शब्द का प्रयोग बहुत गलत था। यह किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं था। जैन ने कहा कि इस मामले में राज्यपाल की ओर से दिया गया जवाब भी सटीक है। उन्होंने कहा कि जहां तक राष्ट्रपति शासन की बात है तो मुझे नहीं लगता कि ऐसी बातों से राष्ट्रपति शासन की नौबत आ सकती है।

सीएम के बयान के आधार पर राष्ट्रपति शासन जैसे हालात नहीं बनते- हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश

वहीं सिक्किम उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एसएन भार्गव का मानना है कि जो स्थितियां बनी हैं, वे काफी दुर्भाग्यपूर्ण है। मुख्यमंत्री ने जिस तरह का बयान दिया वह उन्हें नहीं देना चाहिए था, लेकिन सिर्फ इस बयान या जो भी स्थिति बनी है, उसके आधार पर राष्ट्रपति शासन जैसे हालात नहीं बनते है। ऐसा किया जाता है तो कोर्ट हस्तक्षेप करेगा और यह निर्णय टिक नहीं पाएगा। लेकिन जो कुछ हो रहा है, वह प्रदेश के लिए अच्छा नहीं है।

मुख्यमंत्री का बयान राजनीतिक बयान है- राजस्थान हाई कोर्ट के जज शिवकुमार शर्मा

वहीं राजस्थान उच्च न्यायालय के ही पूर्व न्यायाधीश शिवकुमार शर्मा मुख्यमंत्री के बयान को राजनीतिक बयान मानते है। उनका कहना है कि सत्र बुलाने के लिए राज्यपाल मना नहीं कर सकते। उसके बावजूद उन्होंने ऐसा किया और इसीलिए ऐसी स्थिति बनी। ऐसे में मुख्यमंत्री की ओर से जो बयान दिया गया, वह एक तरह का राजनीतिक बयान है। जहां तक राष्ट्रपति शासन की बात है तो ऐसी स्थिति है नहीं, लेकिन ऐसी बनाई जाती दिख रही हैं।

स्थितियां बिगड़ने पर राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की नौबत आ सकती है

वहीं राजस्थान हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हेमंत नाहटा मानते हैं स्थितियां बिगड़ने पर राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की नौबत आ सकती है। उनका कहना है कि राज्यपाल संवैधानिक प्रमुख होते है। आर्टिकल 159 के तहत उनका दायित्व होता है कि वह राज्य में संविधान और कानून की रक्षा करे। राजभवन को घेरने के बारे में मुख्यमंत्री का बयान एक तरह से धमकी देने और राज्यपाल को राजभवन में रोकने के लिए लोगों को उकसाने के समकक्ष था।

राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखना राज्य सरकार की जिम्मेदारी होती है

राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखना राज्य सरकार की जिम्मेदारी होती है। इस तरह का बयान देने से स्थिति बिगडने और राज्य में संवैधानिक मशीनरी के ब्रेकडाउन होने की स्थिति की और जाने पर ऐसे मामलों में नौबत राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा तक भी जा सकती है।


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