लोकसभा में अनिवार्य मतदान विधेयक पर हुई चर्चा, संसद में दिखी अलग-अलग राय
लोकसभा में भाजपा सांसद राजीव प्रताप रूडी ने कहा कि मतदान को अनिवार्य किए जाने से विकास होने बात तर्कसंगत नहीं है। सौ फीसद वोटिंग खतरनाक हो सकती है।
नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। चुनाव सुधारों से संबंधित दो निजी विधेयकों पर संसद में चर्चा हुई। लोकसभा में मतदान को अनिवार्य किए जाने से संबंधित विधेयक पर सदस्यों का अलग-अलग रुख देखने को मिला। जबकि राज्यसभा में चुनाव खर्च पर सीमाबंदी को लेकर सदस्यों ने अपने विचार रखे।
लोकसभा में हुई चर्चा में मतदान को अनिवार्य किए जाने के विचार का भाजपा के राजीव प्रताप रूड़ी और राजेंद्र अग्रवाल तथा बीजद के बी. महताब ने विरोध किया। जबकि भाजपा के ही निहाल चंद तथा जगदंबिका पाल ने इसका समर्थन किया।
चुनाव सुधारों पर मार्च, 2015 में पेश रिपोर्ट में विधि आयोग ने अनिवार्य मतदान के विचार का ये कहते हुए विरोध किया था कि इसे लागू करना अव्यावहारिक होगा। हाल ही में संपन्न लोकसभा चुनावों में 66.11 फीसद मतदाताओं ने मतदान किया जो 2014 के लोकसभा चुनावों में हुए 65.95 फीसद मतदान से 1.16 फीसद अधिक था।
शत-प्रतिशत वोटिंग हो सकती है खतरनाक
रूडी ने कहा कि मतदान को अनिवार्य किए जाने से विकास होने बात तर्कसंगत नहीं है। शत-प्रतिशत वोटिंग खतरनाक हो सकती है। भारत अभी इसके लिए तैयार नहीं है। इसलिए मैं इसके पक्ष में नहीं हूं। महताब ने भी कहा कि अनिवार्य मतदान को लागू करना कठिन है।
परंतु निहाल चंद ने अनिवार्य मतदान का ये कहते हुए समर्थन किया कि इससे चुनाव खर्च में कमी आएगी। चुनाव बहुत खर्चीले हो गए हैं।
राज्यसभा में चुनाव खर्च का बिल
उधर राज्यसभा में चुनाव खर्च पर व्यक्तिगत सीमा को समाप्त करने के लिए 1951 के जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन करने संबंधी निजी विधेयक पर चर्चा हुई। बिल पेश करते हुए कांग्रेस सदस्य एमवी राजीव गौड़ा ने कहा कि इस कानून में आदर्शवादी उपबंध से समस्या हो रही है जो वास्तव में अनुत्पादक है। इसे किस तरह बदला जाए। मेरा सुझाव है कि चुनाव खर्च में पाबंदी खत्म करने के साथ-साथ हमें राजनीतिक दलों की फंडिंग के स्वच्छ तरीकों पर भी विचार करना चाहिए।
राजीव गौड़ा ने दिया सुझाव
इसके लिए उन्होंने राष्ट्रीय चुनाव कोष की स्थापना का सुझाव दिया। इसके दो हिस्से होने चाहिए। पहला भाग राजनीतिक दलों के लिए हो और उनके पूर्व के प्रदर्शन के आधार पर इसका आवंटन किया जाना चाहिए। जबकि दूसरे हिस्से का उपयोग नई पार्टियों को प्रोत्साहन देने के लिए किया जाना चाहिए।
रिपोर्ट का किया गया जिक्र
इस सिलसिले में गौड़ा ने सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज की रिपोर्ट का भी जिक्र किया जिसमें कहा गया है कि 2019 के लोकसभा चुनावों में विभिन्न राजनीतिक दलों की ओर से कुल 60 हजार करोड़ रुपये की राशि खर्च की गई। उन्होंने कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद से जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन के लिए आगे आने का अनुरोध किया।
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भाजपा के विजय पी. सहस्रबुद्धे ने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि चुनाव खर्च पर सीमा हटाने का मतलब धन बल के सहारे चुनाव जीतने वालों के आगे समर्पण करना होगा। ये एक तरह की 'भौतिक लोकप्रियता' होगी जिसमें गरीब के लिए चुनाव लड़ना असंभव हो जाएगा।
जहां राजद के मनोज कुमार झा ने कहा कि चुनाव महंगे और आम आदमी की पहुंच से बाहर होते जा रहे हैं। वहीं भाजपा के शिवप्रताप शुक्ला का कहना था कि पहले पूरे देश में चुनाव 10 लाख में निपट जाता था। अब ये खर्च कई गुना बढ़ गया है।
अभी लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए प्रत्याशी के खर्च की सीमा 70 लाख रुपये है। जबकि विधानसभा चुनावों के मामले में बड़े राज्यों के लिए व्यक्तिगत खर्च की सीमा 28 लाख तथा छोटे राज्यों के लिए 20 लाख रुपये है।
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