जानिए, अविश्वास प्रस्ताव औंधे मुंह गिरा जरूर लेकिन बड़ा संदेश और संकेत छोड़ गया
अगले सात आठ महीने दूर खड़े लोकसभा चुनाव तक हर किसी को थामकर कदम रखने होंगे।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव आया भी और औंधे मुंह गिर भी गया, लेकिन बड़ा संदेश और संकेत छोड़ गया। यह बता गया कि अगले सात आठ महीने दूर खड़े लोकसभा चुनाव तक हर किसी को थामकर कदम रखने होंगे। महागठबंधन की आस लगाए कांग्रेस को इसका अहसास करा गया कि दिल्ली की डगर बहुत कठिन है तो भाजपा को आगाह कर गया कि साथियों के बीच गांठ मजबूत रखनी होगी। सही मायने में भावी गठबंधनों की शक्ल दिखी, लेकिन कुछ अगर मगर के साथ।
शुक्रवार को अविश्वास प्रस्ताव के बाद जो वोट पड़े उसमें भाजपा दो तिहाई बहुमत पर खड़ी नजर आई। कुछ चौंकाने के अंदाज में भाजपा अन्नाद्रमुक को साथ जोड़ने में कामयाब रही जो न सिर्फ संसद के अंदर बल्कि चुनाव मे भी साथ रहने का संकेत है। जाहिर तौर पर भाजपा के लिए यह बड़ी राहत की बात है क्योंकि पिछली बार पार्टी को छोटे-छोटे दलों के समूह से ही संतुष्ट होना पड़ा था जो बहुत असरदार साबित नहीं हुआ था।
वस्तुत: भाजपा तटीय क्षेत्रों की रणनीति की दिशा में कदम बढ़ा चुकी है। हालांकि महाराष्ट्र में शिवसेना का रुख चिंताजनक है। शिवसेना केंद्र और राज्य की राजग सरकार में शामिल है फिर भी परोक्ष रूप से वह विरोधी खेमे में खड़ी है। वह वोटिंग से बाहर रही। जो तेवर है उससे यह अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है कि भाजपा को नुकसान पहुंचाने के लिए वह अपने हाथ जलाने को भी तैयार है।
पर कांग्रेस के अच्छे दिन अभी शुरू होने में वक्त लगेगा यह स्पष्ट होता दिख रहा है। अविश्वास प्रस्ताव तो ऐसा मौका था जहां कोई हिस्सेदारी नहीं होनी थी, लेकिन बावजूद इसके कांग्रेस बीजद और टीआरएस को साथ नहीं ला पाई। सदन के अंदर टीडीपी ने भी ऐसा कोई संकेत नहीं दिया जिससे महसूस हो कि उसे कांग्रेस के एजेंडे से कोई दरकार हो। चर्चा से बाहर जाने से पहले बीजद ने जिस तरह भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस की भी आलोचना की उससे यह तो साफ हो ही गया कि लोकसभा के साथ ही होने वाले ओडिशा चुनाव मे त्रिकोणीय लड़ाई होगी। भाजपा यही चाहती भी है।
तृणमूल कांग्रेस ने अविश्वास प्रस्ताव मे बढ़चढ़ कर हिस्सा तो लिया, लेकिन पश्चिम बंगाल मे कांग्रेस को तोड़कर अपनी ताकत बढ़ाने में कोई हिचक नहीं दिखा रही है। दरअसल अविश्वास प्रस्ताव के जरिए विपक्ष को एकजुट करने की मंशा पर पानी पड़ गया। इसकी संभावना भी बहुत कम है कि गठबंधन की जो शक्ल संसद मे दिखी, अगले सात आठ महीनों मे उसमें बड़ा फेरबदल हो।
अल्पसंख्यक मुद्दों पर कांग्रेस की झिझक
कुछ दिन पहले मुस्लिम पार्टी के कथित बयान से झुलसी कांग्रेस अब केवल दलितों व पिछड़ों के नाम पर हमलावर होगी। शुक्रवार को अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने ही इसका संकेत दे दिया। पिछले सभी भाषणों से अलग शुक्रवार को वह धर्मरिपेक्षता के शब्द से भी बचे। कांग्रेस ने हर वर्ग और समाज में पैठ बढ़ाने की पहल शुरू की है। सपा, बसपा, तृणमूल जैसे दलों के बीच अपना महत्व बनाए रखने के लिए जररी है कि इस समाज से कांग्रेस के लिए आवाज उठे। लेकिन संभव है कि फिलहाल कुछ वक्त तक कांग्रेस ही चुप रहे।