आसियान बैठक: मोदी के रूख से तय होगा क्षेत्रीय समग्र आर्थिक साझेदारी का भविष्य
आरसीईपी आसियान के सदस्य 10 देशों के अलावा उक्त छह देशों के बीच किया गया एक समझौता है जिसका उद्देश्य एक व्यापक आर्थिक समझौता करना है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। ऐसे समय जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अगुवाई में अमेरिका ने वैश्विक संरक्षणवाद की मुहिम छेड़ी हुई है तब दुनिया के 15 अहम देशों के बीच एक नया कारोबारी सहयोग समझौता होता है या नहीं यह बहुत हद तक भारत के रूख पर निर्भर करेगा। हम रीजनल कमप्रेहेंसिव इकोनोमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) की बात कर रहे जिसको लेकर आसियान के दस देशों के अलावा भारत, चीन, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, दक्षिण कोरिया और जापान की अहम बैठक 14-15 नवंबर को सिंगापुर में है। इस बैठक में हिस्सा लेने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी सिंगापुर जा रहे हैं। जानकारों की मानें तो आरसीईपी को लेकर बहुत सारे संदेह अभी भारत के मन में है जिसके बारे में आश्वस्त होने के बाद पीएम मोदी इसको लेकर हरी झंडी दिखाएंगे।
सिंगापुर में अगले हफ्ते क्षेत्रीय समग्र आर्थिक साझेदारी पर वार्ता
आरसीईपी को लेकर जारी वार्ता में पिछले कुछ दिनों से जुड़े सरकारी अधिकारियों का कहना है कि भारत ने इस समग्र व्यापार समझौते के जिन मुद्दों को लेकर अपनी चिंताएं जताई थी उनका समाधान अभी नहीं निकल पाया है। मसलन, भारत ने सभी सदस्य देशों के बीच एक ऐसा श्रम समझौता करने का प्रस्ताव दिया था जिसके तहत एक दूसरे के श्रमिकों को अस्थाई तौर पर नौकरी देने का रास्ता खुल सकेगा।
पीएम मोदी लेंगे हिस्सा, कई मुद्दों पर भारत अभी तैयार नहीं
जापान, आस्ट्रेलिया समेत कई देशों का समर्थन मिलने के बावजूद दूसरे तमाम राष्ट्र अभी तक इसमें खामियां निकालने में जुटे हैं। इसी तरह से बौद्धिक संपदा कानून के बारे में जो प्रस्ताव आरसीईपी की समितियों की तरफ से सुझाया है उसको लेकर भारत को कई सारी आपत्तियां हैं।
निवेश समझौते को लेकर जो प्रस्ताव तैयार किया गया है, खास तौर पर विदेशी कंपनियों की शाखाओं को लेकर भारत बहुत उत्साहित नहीं है। इसके अलावा सेवा क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों को ज्यादा स्वतंत्रता देने की भारत की मांग पर भी सहमति नहीं बन पाई है। वैसे भी आरसीईपी वार्ता में शामिल देशों के साथ भारत का व्यापार घाटा (निर्यात से ज्यादा आयात) पिछले वर्ष समग्र तौर पर 115 डॉलर का रहा था। ऐसे में भारत बहुत सोच समझ कर आगे बढ़ेगा।
आरसीईपी आसियान के सदस्य 10 देशों के अलावा उक्त छह देशों के बीच किया गया एक समझौता है जिसका उद्देश्य एक व्यापक आर्थिक समझौता करना है। भारत के अलावा सभी सदस्य देशों ने इसके प्रस्ताव को अगले हफ्ते होने वाली बैठक में ही अंतिम रूप देने की बात कही है। ऐसे में यह बहुत अहम होगा कि पीएम मोदी के स्तर पर होने वाली द्विपक्षीय वार्ताओं में भारत की चिंताओं को दूर करने की कितनी कोशिश की जाती है।
भारतीय अधिकारियों का कहना है कि अभी अधिकारी स्तर पर बातचीत का दौर उस स्तर में नहीं पहुंचा है कि यह कहा जा सके कि इतनी जल्दी सभी लंबित मुद्दों पर दो टूक फैसला हो जाएगा। बातचीत का दौर अभी अगले साल तक जारी रह सकता है।
वैसे भी जब अमेरिका और चीन के बीच जारी 'ट्रेड वार' को देखते हुए भारत बहुत जल्दबाजी में कोई कदम उठाने के मूड में नहीं है। यह जरुर हो सकता है कि सदस्य देश जिन मुद्दों पर सहमति बनी है उसके आधार पर आरसीईपी को आगे बढ़ाने को लेकर कोई नई दृष्टि पेश करे। आरसीईपी के सदस्य देशों के बीच अभी वैश्विक कारोबार का 30 फीसद हिस्सा है।
भारत जिन मुद्दों को उठाएगा
1. श्रमिकों को अस्थाई तौर पर एक देश से दूसरे देश में काम करने का मौका मिले
2. निवेश व बौद्धिक संपदा से जुड़े प्रस्तावों में बदलाव की जरुरत
3. सेवा क्षेत्र में सदस्य देशों की कंपनियों को मिले पूरी आजादी।