मोदी सरकार के कार्यकाल में देश की अर्थव्यवस्था ने यूपीए से बेहतर प्रदर्शन किया
पहली बार किसी रेटिंग एजेंसी ने यूपीए-दो और एनडीए के कार्यकाल में देश की अर्थव्यवस्था का आकलन पेश किया है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। पहली बार किसी रेटिंग एजेंसी ने यूपीए-दो और एनडीए के कार्यकाल में देश की अर्थव्यवस्था का आकलन पेश किया है। आकलन अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी फिच की भारतीय सहयोगी कंपनी इंडिया रेटिंग्स ने पेश की है। वैसे यह आकलन देश की अर्थव्यवस्था के मौजूदा हालात और भविष्य की संभावनाओं पर है, लेकिन इसमें वर्ष 2010 से वर्ष 2013 और वर्ष 2014 से वर्ष 2019 तक का विस्तार से तुलनात्मक अध्ययन है जिसमें साफ है कि आंकड़ों के आधार पर मोदी सरकार के कार्यकाल में अर्थव्यवस्था ने ज्यादा बेहतर प्रदर्शन किया है। वैसे इंडिया रेटिंग्स यह भी मानती है कि अगर नवंबर, 2016 में नोटबंदी नहीं लागू होती तो अर्थव्यवस्था की स्थिति और बेहतर होती।
फिच रेटिंग एजेंसी की भारतीय सहयोगी इंडिया रेटिंग्स ने पेश किया आकलन
अगर सरकारी आंकड़ों पर भरोसा करें तो वित्त वर्ष 2010 से वित्त वर्ष 2014 के चार वर्षो में आर्थिक विकास दर क्रमश: 8.6, 8.9, 6.7 और 5.5 फीसद रही है लेकिन उसके बाद के पांच वित्त वर्षो के दौरान यह 6.4, 7.4, 8.2, 7.1 और 6.7 फीसद रही है। चालू वित्त वर्ष के दौरान इसके 7.2 फीसद रहने के अनुमान है।
इंडिया रेटिंग्स ने पहले के चार वर्षो के विकास दर को कमतर करार दिया है जबकि अभी के विकास दर को सुधार वाला बताया है। इसी तरह से महंगाई के मोर्चे पर मोदी सरकार को पूरे नंबर दिए गए हैं। पहले के चार वर्षो में महंगाई की दर क्रमश: 12.4 फीसद, 10.4, 8.4 और 10.1 फीसद रही है। जबकि मोदी सरकार के कार्यकाल में इसके 5.9, 4.9, 4.5, 3.6 और 3.5 फीसद रहने के आंकड़े पेश किये गये हैं। यह हमेशा सरकार की तरफ से तय लक्ष्य के नीचे रही है।
राजकोषीय घाटे और चालू खाते में घाटे को लेकर भी मौजूदा सरकार के कार्यकाल को ज्यादा सक्षम माना गया है। कमोबेश यह स्थिति चालू वित्त वर्ष के शेष महीनों और अगले वित्त वर्ष के दौरान भी रहने के अनुमान है। विकास दर अभी फिलहाल 8 फीसद को पार करने की स्थिति में नहीं है और यह मौजूदा विकास दर से संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था को इससे ज्यादा की विकास दर की दरकार है।
इंडिया रेटिंग्स के चीफ इकोनोमिस्ट देवेंद्र पंत का तो साफ तौर पर कहना है कि अगले दो-तीन वित्त वर्षो तक तो विकास दर आठ फीसद का आंकड़ा पार करता नहीं दिख रहा है। इसके पीछे वजह यह है कि निजी क्षेत्र की तरफ से नए निवेश सामने नहीं आ रहे है और निर्यात के मोर्चे पर सफलता मिलती नहीं दिख रही है।
सरकार की तरफ से खर्चे बढ़ाए जा रहे हैं और सरकार की तरफ से होने वाले खपत की स्थिति भी सुधरेगी लेकिन इन दोनों से अर्थव्यवस्था को बहुत मजबूती नहीं मिल सकती। इंडिया रेटिंग्स ने देश की शीर्ष 200 सूचीबद्ध कंपनियों की भावी निवेश योजनाओं पर अध्ययन किया है जिससे यह बात सामने आई है कि वर्ष 2021 में ही ये कंपनियां पूंजीगत खर्चे को बढ़ाने के मूड में है।