संविधान विशेषज्ञ बोले- सदन में मतदान से तय होता है बहुमत
संविधान की नजर में बहुमत राज्यपाल को दी गई चिट्ठी या राजभवन में विधायकों की परेड से नहीं बल्कि सदन में मतदान से तय होता है।
माला दीक्षित, नई दिल्ली। कनार्टक चुनाव में किसी भी दल को बहुमत न मिलने के बाद से सरकार बनाने के दावों का सियासी गणित चरम पर है। राजनैतिक दल अपना दावा साबित करने के लिए न सिर्फ विधायकों के हस्ताक्षर वाला समर्थन पत्र राज्यपाल को सौंप रहे हैं बल्कि राजभवन में विधायकों की परेड भी कराने में लगे हैं लेकिन संविधान विशेषज्ञों की माने तो इस सारी कवायद का कोई संवैधानिक मायने नहीं है। संविधान की नजर में बहुमत राज्यपाल को दी गई चिट्ठी या राजभवन में विधायकों की परेड से नहीं बल्कि सदन में मतदान से तय होता है।
कनार्टक की ताजा स्थिति पर अपनी बेबाक राय रखते हुए संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप कहते हैं कि सरकार बनाने का न्योता किसे देना है और मुख्यमंत्री किसे बनाना है ये राज्यपाल के विवेकाधिकार पर निभर करता है। कश्यप कहते है कि चिट्ठी पर हस्ताक्षर करने वाले विधायकों पर अभी पार्टी व्हिप या दल बदल कानून लागू नहीं होता। जब विधायक शपथ लेकर सदन की कारर्वाई में हिस्सा लेंगे उस वक्त उन पर ये प्रावधान लागू होंगे। संवैधानिक तौर पर विधानसभा कब से गठित मानी जाएगी इस पर लंबे समय तक चुनाव आयोग के कानूनी सलाहकार रहे एसके मेंहदीरत्ता कहते हैं कि चुनाव के बाद चुनाव आयोग जैसे ही अधिसूचना जारी करता है वैसे ही विधानसभा गठित मान ली जाती है। उस अधिसूचना में स्पष्ट होता है कि किस दल के कितने विधायक चुनाव जीते हैं। आयोग जनप्रतिनिधि कानून की धारा 73 के तहत यह अधिसूचना जारी करता है।
क्या कहता है दल बदल कानून
अगर किसी दल से चुनाव जीत कर आया सदस्य पार्टी व्हिप की अवहेलना करके किसी अन्य के पक्ष में मतदान करता है या मतदान में अनुपस्थित रहता है तो वह दल बदल कानून के तहत अयोग्य होगा। लेकिन अगर किसी दल के दो तिहाई सदस्य पार्टी से अलग होकर नये दल का गठन कर लेते हैं तो उन पर दल बदल कानून लागू नहीं होगा।