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कृषि कानूनों के खिलाफ जुटाए हस्ताक्षर राष्ट्रपति को सौंपने पर जानें क्‍यों दुविधा में रही कांग्रेस, अब कही यह बात

कृषि कानूनों के खिलाफ जुटाए गए इन हस्ताक्षरों को नवंबर महीने में ही राष्ट्रपति को सौंपने की कांग्रेस की योजना थी मगर बिहार चुनाव के नतीजों के बाद अंदरूनी खींचतान तेज होने के कारण पार्टी अपने विरोध आंदोलन को तार्किक मुकाम देने को लेकर दुविधा में है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Tue, 22 Dec 2020 07:41 PM (IST)Updated: Tue, 22 Dec 2020 07:47 PM (IST)
कृषि कानूनों के खिलाफ जुटाए हस्ताक्षर राष्ट्रपति को सौंपने पर जानें क्‍यों दुविधा में रही कांग्रेस, अब कही यह बात
सोनिया गांधी और राहुल गांधी की फाइल फोटो।

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो/एजेंसी किसानों के आंदोलन का मुखर समर्थन कर रही कांग्रेस अपनी अंदरूनी उठापटक में ऐसी उलझी है कि कृषि कानूनों के खिलाफ जुटाए गए एक करोड़ लोगों के हस्ताक्षर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को सौंपने का फैसला नहीं कर पा रही है। कृषि कानूनों के खिलाफ जुटाए गए इन हस्ताक्षरों को नवंबर महीने में ही राष्ट्रपति को सौंपने की कांग्रेस की योजना थी मगर बिहार चुनाव के नतीजों के बाद अंदरूनी खींचतान तेज होने के कारण पार्टी अपने विरोध आंदोलन को तार्किक मुकाम देने को लेकर दुविधा में है। 

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अब कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने कहा कि पूरे भारत से लगभग 2 करोड़ हस्ताक्षर, तीन कृषि कानूनों को वापस लेने का आग्रह किया गया है। इसे 24 दिसंबर को राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस नेताओं के प्रतिनिधिमंडल द्वारा भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को प्रस्तुत किया जाएगा।

बिहार चुनाव के नतीजों और पार्टी की अंदरूनी खींचतान ने खेल बिगाड़ा

संसद के मानसून सत्र में कृषि कानूनों के पारित होने के बाद कांग्रेस ने पूरे अक्टूबर महीने में देश भर में इसके खिलाफ हर स्तर पर विरोध आंदोलन किया और लोगों के हस्ताक्षर भी जुटाए। इन कानूनों को लेकर किसानों के समर्थन में अपने आंदोलन की कांग्रेस ने जो रूपरेखा तय की थी, उसके हिसाब से कृषि कानूनों के विरोध में जुटाए हस्ताक्षर को 14 नवंबर के आस-पास इन्हें राष्ट्रपति को सौंपे जाने थे। लेकिन उससे पहले ही बिहार चुनाव के बड़े झटके ने कांग्रेस नेतृत्व की मुसीबत बढ़ा दी। 

वहीं असंतुष्ट गुट के नेताओं की इस बीच तेज हुई गोलबंदी ने पार्टी हाईकमान को राहत नहीं लेने दी। पार्टी अभी अपने आंदोलन को मंजिल देने की दुविधा से निकल भी नहीं पाई थी तब तक सारा लाइमलाइट किसान संगठनों ने आंदोलन शुरू कर दिया। राजनीतिक पार्टियां किसान संगठनों के आंदोलन से दूर हैं, बावजूद इसके भाजपा सरकार इसके पीछे विपक्षी दलों की भूमिका का आरोप लगाने से परहेज नहीं कर रही। ऐसे में राष्ट्रपति को कृषि कानूनों के खिलाफ जुटाए हस्ताक्षर सौंपने की कांग्रेस की दुविधा कायम है। 


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