कर्नाटक में धार्मिक मठों की 'राजनीतिक निरपेक्षता' से कांग्रेस को उम्मीद, चुनावी तस्वीर बदलने में जुटी पार्टी
कर्नाटक में धार्मिक मठों पर भाजपा के प्रभाव को थामने के लिए उठाए अपने जवाबी सियासी कदमों को अब तक मिली सफलता के आधार पर पार्टी का आकलन है कि आरक्षण के दांव को चुनावी अभियान जोर पकड़ने से रोका जा सकेगा।
नई दिल्ली, संजय मिश्र। दक्षिण भारतीय राज्यों में सत्ता के सूखे का सामना कर रही कांग्रेस कर्नाटक में अपने सामाजिक समीकरणों के आधार से इतर भाजपा और जेडीएस के वोट बैंक में इस बार कुछ हद तक बिखराव की उम्मीद कर रही है। चुनावी एलान के ठीक पहले भाजपा के आरक्षण दांव के बावजूद पार्टी भाजपा और जेडीएस के आधार वोट बैंक में इस बार सेंध लगाए जाने की संभावनाओं को लेकर उत्साहित है।
कर्नाटक में धार्मिक मठों पर भाजपा के प्रभाव को थामने के लिए उठाए अपने जवाबी सियासी कदमों को अब तक मिली सफलता के आधार पर पार्टी का आकलन है कि आरक्षण के दांव को चुनावी अभियान जोर पकड़ने से रोका जा सकेगा। कर्नाटक का चुनाव केवल सूबे ही नहीं राष्ट्रीय राजनीति में कांग्रेस की वापसी के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है, क्योंकि इसमें संदेह नहीं कि यहां मिली जीत पार्टी को मौजूदा गंभीर चुनौतियों से बाहर निकलने का रास्ता देगी।
इस चुनाव की अहमियत को भली भांति भांपते हुए ही पार्टी ने भाजपा के लिंगायत और जेडीएस के वोकालिग्गा वोट बैंक के मजबूत आधार में सेंध लगाने के लिए चुनावी एलान से पहले इन दोनों समुदायों के प्रमुख धार्मिक मठों की परिक्रमा पूरी कर ली थी। पार्टी का मानना है कि इसका नतीजा ही है कि इन दोनों समुदायों के धार्मिक मठों ने इस बार अब तक सीधे भाजपा या जेडीएस के पक्ष में राजनीतिक संकेत देने से परहेज किया है।
पार्टी को भरोसा है कि चुनावी पारा चढ़ने के बावजूद दोनों समुदाय के प्रमुख मठों की सियासी सक्रियता शायद ही दिखाई देगी। कर्नाटक में कांग्रेस का चेहरा माने जा रहे दिग्गज नेता सिद्धारमैया और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार पिछले एक साल के दौरान लिंगायत और वोकालिग्गा ही नहीं अन्य वर्गों के धार्मिक मठों के दौरे कर चुके हैं।
कर्नाटक में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने भी कई धार्मिक गुरूओं से मुलाकात कर उनका आशीर्वाद लिया था। बेशक येदियुरप्पा के कारण लिंगायत समुदाय पर भाजपा की मजबूत पकड़ है। कांग्रेस के डीके शिवकुमार भी वोकालिग्गा समुदाय से ही आते हैं, मगर निर्विवाद रूप से पूर्व पीएम एचडी देवेगौड़ा इस वर्ग के सबसे बड़े चेहरे हैं।
'कांग्रेस के वोट प्रतिशत का पार नहीं कर पाती भाजपा'
भाजपा-जेडीएस की इन दोनों वर्गों के बीच मजबूत पैठ के बावजूद कर्नाटक में कांग्रेस के सामाजिक आधार का दायरा बड़ा है। ओबीसी, दलित तथा अल्पसंख्यक परंपरागत रूप से कांग्रेस के साथ रहे हैं। इसीलिए कर्नाटक में चाहे भाजपा अधिक सीटें जीत भी लेती है, मगर कांग्रेस के वोट प्रतिशत को पार नहीं कर पाती।
पिछले चुनाव में भी कांग्रेस को दो फीसद अधिक मत मिले थे और पार्टी मतों के इस अंतर को पांच से छह फीसदी पहुंचा कर कर्नाटक की सत्ता की राह तय करने की रणनीति पर काम कर रही है।
पार्टी रणनीतिकारों का आकलन है कि धार्मिक नेताओं-मठों की मौजूदा राजनीतिक निरपेक्षता बनी रही, तो सत्ता तक पहुंचने के लक्ष्य को हासिल करना कांग्रेस के लिए मुश्किल नहीं होगा। कर्नाटक में भाजपा ने कांग्रेस के विधायकों को तोड़ कर जुलाई 2019 में कांग्रेस-जेडीएस की सरकार गिरा उसे सत्ता से बाहर कर दिया था। इसी तरह केरल, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना में पिछले दो विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है।
रणनीतिकारों के मुताबिक, तमिलनाडु में पार्टी बीते दो दशक से द्रमुक की कनिष्ठ सहयोगी की भूमिका में ही रही है और सूबे की सियासत में राष्ट्रीय दलों की करीब पांच दशकों से जारी सहायक भूमिका में हाल-फिलहाल में बदलाव की कोई उम्मीद भी नहीं है, जबकि केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में 2021 के चुनाव के पहले ही विधायकों के विद्रोह के कारण सत्ता गंवाने वाली कांग्रेस विधानसभा का चुनाव भी हार गई थी। इस तरह फरवरी 2021 के बाद से यह कई दशकों बाद पहला मौका है जब कांग्रेस पांचों दक्षिणी राज्यों और पुडुचेरी में कहीं भी सत्ता में नहीं है।