गुजरात पैटर्न पर चार राज्यों में टिकट बंटवारे पर कांग्रेस में मंथन
टिकट बंटवारे को लेकर लचीला रूख अपनाने के इन संकेतों से साफ है कि पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी का पैराशूट सियासत करने वालों को तरजीह नहीं देने की घोषणा पर पूरी तरह अमल की गुंजाइश नहीं है।
संजय मिश्र, नई दिल्ली । चुनावी महासंग्राम 2019 के पहले कांग्रेस के लिए नवंबर-दिसंबर में होने वाले चार राज्यों के विधानसभा चुनाव करो या मरो की स्थिति है। इसीलिए टिकट बंटवारे में ज्यादा सियासी प्रयोग का जोखिम उठाने की पार्टी के पास गुंजाइश नहीं है। इस लिहाज से गुजरात चुनाव की तर्ज पर जीत की संभावना वाले बाहरी 'पैराशूट' उम्मीदवारों को मैदान में उतारने से कांग्रेस गुरेज नहीं करेगी। टिकट बंटवारे पर चल रही इन मंत्रणाओं से साफ है कि राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ और तेलंगाना में दूसरे दलों के असंतुष्टों के लिए कांग्रेस अपने दरवाजे बंद नहीं रखेगी।
टिकट बंटवारे को लेकर लचीला रूख अपनाने के इन संकेतों से साफ है कि पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी का पैराशूट सियासत करने वालों को तरजीह नहीं देने की घोषणा पर पूरी तरह अमल की गुंजाइश नहीं है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं को टिकट देने में वरीयता देना राहुल के सियासी एजेंडे की प्राथमिकता में शामिल है। मध्यप्रदेश से लेकर राजस्थान की अपनी पहली चुनावी सभाओं में वे पैराशूट नेताओं को खास तवज्जो नहीं देने की बात भी कह चुके हैं। मगर जमीनी सियासत का आकलन करने में जुटे पार्टी के रणनीतिकारों का कहना है कि चारों राज्यों में इस फार्मूले पर टिके रहना राजनीतिक रुप से व्यावहारिक नहीं होगा।
मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ और राजस्थान के लिए कांग्रेस की अलग-अलग स्क्रीनिंग कमिटी की हुई बैठकों में भी टिकट बंटवारे की इन चुनौतियों पर चर्चा हुई है। सूत्रों के अनुसार इन राज्यों में चुनावी मुकाबला लगभग गुजरात जैसा ही कांटे का होने की संभावना है। छत्तीसगढ में तो वोट प्रतिशत का अंतर बीते चुनाव में एक फीसद से भी कम रहा है। ऐसे में जीत की संभावना वाले उम्मीदवार के सहारे चुनावी बाजी पलटी जा सकती है। गुजरात में अल्पेश ठाकोर, जिग्नेश मेवाणी आदि जैसे बाहरी नेताओं को साथ जोड़ और हार्दिक पटेल के कई समर्थकों को टिकट देकर कांग्रेस ने वहां भाजपा को न केवल तगड़ी चुनौती दी बल्कि चुनाव को लगभग फोटो फिनिश के मुकाम पर पहुंचा दिया था।
पार्टी चुनावी रणनीतिकारों का तर्क है कि मौजूदा हालत में लचीला रूख रखना कांग्रेस की अपरिहार्य जरूरत है। खासकर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा को रोकने के लिए दमदार बाहरी टिकट दावेदारों को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए। लोकसभा के पिछले चुनाव और उत्तरप्रदेश के 2017 के विधानसभा चुनाव में दूसरे दलों के प्रभावशाली नेताओं को टिकट देने के भाजपा के कामयाब दांव को भी पार्टी रणनीतिकार इसका उदाहरण दे रहें। उनका यह भी कहना है कि दूसरे दलों से आने वाले स्थानीय प्रभावशाली नेता अपनी सीट ही नहीं जीतते बल्कि आस-पास की सीटों पर भी सकारात्मक माहौल बनाते हैं।
2019 में कांग्रेस के बढ़े हौसले के साथ मैदान में उतरने के लिए पार्टी चार में से कम से कम दो राज्यों में जीत को जरूरी मान रही है। राजस्थान में कामयाबी को लेकर पार्टी को ज्यादा संदेह नहीं मगर छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश का चुनावी मैदान खुला है। तेलंगाना में कांग्रेस मुख्य लड़ाई में तो है मगर अभी तक टीआरएस को ही दावेदारी में आगे आंका जा रहा।