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कर्नाटक का किला बचाने को गुजरात का दांव लगाएंगे राहुल

जनवरी से ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को उनकी सियासी उपयोगिता के हिसाब से कर्नाटक भेजे जाने का सिलसिला भी शुरू हो जाएगा।

By Gunateet OjhaEdited By: Published: Sun, 24 Dec 2017 09:26 PM (IST)Updated: Sun, 24 Dec 2017 09:26 PM (IST)
कर्नाटक का किला बचाने को गुजरात का दांव लगाएंगे राहुल

संजय मिश्र, नई दिल्ली। गुजरात चुनाव में सियासी उलटफेर के करीब पहुंचकर भी दूर रह गई कांग्रेस अगले लोकसभा चुनाव के लिए कर्नाटक विधानसभा चुनाव को बेहद निर्णायक मान रही है। इसीलिए हाईकमान कर्नाटक की चुनावी रणनीति को भी गुजरात की तर्ज पर अंजाम देने में जुट गया है। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को इसके मद्देनजर चुनावी तोहफे से जुड़ी सरकार की योजनाओं का जनवरी तक ऐलान करने की सलाह दी गई है। जबकि सियासी माहौल बनाने के मद्देनजर बैंगलूरू में एआइसीसी का प्लेनरी अधिवेशन बुलाने पर मंथन किया जा रहा है।

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राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष के रुप में निर्वाचन का अनुमोदन कराने के लिए आइसीसी का यह अधिवेशन बुलाया जाना है। गुजरात में सत्ता की दौड़ से फिर बाहर रह जाने और हिमाचल प्रदेश का राज छीन जाने के बाद कांग्रेस के लिए कर्नाटक की सत्ता बचाये रखना कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो गया है। भाजपा नेतृत्व सूबे के अपने सबसे बड़े चेहरे पूर्व सीएम येदियुरप्पा की अगुआई में कांग्रेस से चुनावी मुकाबले की ताल ठोक चुका है। ऐसे में कांग्रेस के लिए दक्षिण का अपना एकमात्र दुर्ग बचाना आसान नहीं है। कांग्रेस की जिन चार राज्यों में सत्ता बची है उसमें कर्नाटक सबसे बड़ा राज्य है और जहां लोकसभा की 26 सीटें हैं।

पार्टी रणनीतिकारों का मानना है कि कर्नाटक में भाजपा के विजय रथ को रोकने के अपने सियासी मायने और संदेश होंगे। सूबे में कांग्रेस अपनी सत्ता बचाने में कामयाब रही तो इसका असर 2018 के अंत में होने वाले तीन अहम राज्यों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ और राजस्थान पर इसका असर तो होगा ही है। साथ ही 2019 के आम चुनाव में भाजपा और पीएम मोदी को चुनौती देने के लिए कांग्रेस को संजीवनी मिलेगी। वसुंधरा राजे सरकार को लेकर लोगों में पनप रही नाराजगी के साथ राजस्थान में हर पांच साल में सत्ता बदल देने के हालिया इतिहास को देखते हुए कांग्रेस इस सूबे में अपनी वापसी की पूरी संभावना देख रही है। वहीं गुजरात चुनाव के बाद राहुल गांधी छत्तीसगढ और मध्यप्रदेश में सियासी बाजी पलटने को लेकर भी आशावान हैं। इसकी वजह साफ है कि इन राज्यों में कोई तीसरी पार्टी नहीं और मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है।

कांग्रेस कार्यसमिति की अध्यक्ष के रुप में अपनी पहली बैठक के दौरान राहुल ने कर्नाटक के अलावा इन तीनों राज्यों में भाजपा को मात देने की पूरी गुंजाइश होने की बात कही भी थी। पार्टी की इस सियासी उम्मीद को पंख लगाने के लिए जाहिर तौर पर कर्नाटक का चुनाव निर्णायक है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की सियासी पकड़ और छवि के साथ सरकार के कामकाज को पार्टी अहम चुनावी मुद्दा बनाएगी। इसीलिए सीएम को आचार संहिता लागू होने से काफी पहले सरकार की नई अहम योजनाओं और तोहफों का ऐलान कर देने की सलाह दी गई है। सूत्रों के अनुसार राहुल गांधी की अध्यक्ष के रुप में ताजपोशी के लिए आए सिद्धारमैया को वरिष्ठ पार्टी नेता गुलाम नबी आजाद की ओर से यह भी सलाह दी गई कि केवल सचिवालय में बैठकर या प्रेस नोट के जरिए स्कीमों का एलान न हो बल्कि मंत्री बकायदा रैली या समारोहों के जरिए इसकी घोषणा करें। कांग्रेस का मानना है कि भाजपा की सियासी रणनीति को मात देने के लिए घोषणाओं को इवेंट मैनेजमेंट का शक्ल देना जरूरत बन गई है। सूत्रों का यह भी कहना है कि जनवरी से ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को उनकी सियासी उपयोगिता के हिसाब से कर्नाटक भेजे जाने का सिलसिला भी शुरू हो जाएगा।

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