Move to Jagran APP

खड़गे को कमान से फिर सुलग सकती है कांग्रेस की कलह, उत्तर बनाम दक्षिण का बन सकता है मसला

राज्यसभा में विपक्ष के अगले नेता बनने जा रहे खड़गे कर्नाटक से हैं और लोकसभा चुनाव हारने के बाद हाईकमान ने पिछले साल जून में आजाद के विकल्प के मकसद से ही राज्यसभा में लाने का फैसला किया था।

By Dhyanendra Singh ChauhanEdited By: Published: Fri, 12 Feb 2021 09:56 PM (IST)Updated: Fri, 12 Feb 2021 10:02 PM (IST)
राज्यसभा में नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक से हैं

संजय मिश्र, नई दिल्ली। कांग्रेस में युवा बनाम बुर्जुगों की लंबे समय से चल रही रस्साकशी के बीच पार्टी हाईकमान ने राज्यसभा में नेता विपक्ष के पद के लिए एक बार फिर वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे पर भरोसा जताया है। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के भरोसेमंद खड़गे राज्यसभा में गुलाम नबी आजाद की जगह विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी संभालेंगे। कांग्रेस की अंदरूनी उठापटक को देखते हुए खड़गे को राज्यसभा में नेता विपक्ष बनाने में बेशक कांग्रेस हाईकमान को किसी तरह के सियासी प्रतिरोध से रूबरू नहीं होना पड़़ा है मगर देर-सबेर पार्टी के असंतुष्ट खेमे की ओर से बड़ी हलचल शुरू करने की संभावनाओं को नकारा नहीं जा रहा है। खड़गे की नियुक्ति के बाद कांग्रेस में हिंदी भाषी उत्तर के राज्यों के नेताओं की अनदेखी का नया विवाद भी गरमा सकता है।

loksabha election banner

राज्यसभा में खड़गे को नेता विपक्ष बनाए जाने की कांग्रेस की तरफ से आधिकारिक घोषणा अभी नहीं की गई है लेकिन समझा जाता है कि पार्टी ने एक हफ्ते में रिटायर होने जा रहे गुलाम नबी आजाद की जगह खड़गे को राज्यसभा में कांग्रेस संसदीय दल का अगला नेता बनाए जाने संबंधी पत्र सभापति वेंकैया नायडू को सौंप दिया है। इस नाते खड़गे का 17 फरवरी के बाद नेता विपक्ष बनना तय है क्योंकि आजाद इसी दिन रिटायर हो रहे हैं। बजट सत्र के पहले चरण के अंतिम दिन सदन में आजाद का भी आखिरी दिन था और तभी सदन स्थगित होने के बाद राज्यसभा में कांग्रेस के उपनेता आनंद शर्मा गेट के बाहर तक उनको छोड़ने आए और आजाद को विदाई दी।

हिंदी भाषी राज्यों की अनदेखी जैसे सवाल मुखर रूप में लाए जा सकते हैं सामने

पिछली लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे की राजनीतिक क्षमता पर पार्टी में कोई सवाल खड़ा नहीं कर रहा मगर अंदरखाने यह बात साफ है कि गांधी परिवार का भरोसेमंद होना इसमें सबसे अहम रहा। इतना ही नहीं आजाद की जगह खड़गे के आने के बाद पार्टी के सभी प्रमुख संस्थागत ढांचों में असंतुष्ट खेमे की भागीदारी अब मामूली रह गई है। इसके मद्देनजर माना जा रहा कि आने वाले दिनों में कांग्रेस के असंतुष्ट जी-23 समूह के नेताओं की ओर से पार्टी की चुनौतियों को दरकिनार करने से लेकर हिंदी भाषी राज्यों की अनदेखी जैसे सवाल मुखर रूप में सामने लाए जा सकते हैं। पार्टी के इस समूह से जुड़े सूत्रों के अनुसार गुलाम नबी जैसे कद्दावर नेता को राज्यसभा में नहीं ले जाने से साफ है कि कांग्रेस नेतृत्व ने बीते साल 19 दिसंबर को विश्वास बहाली का जो सेतु बनाया था वह टूटा है। साथ ही आपसी संशय की लकीरें इससे और गहरी होंगी विशेषकर हिंदी भाषी राज्यों के नेताओं की उपेक्षा का सवाल तो आएगा ही।

कांग्रेस में उत्तर भारत के नेताओं की उपेक्षा 

राज्यसभा में विपक्ष के अगले नेता बनने जा रहे खड़गे कर्नाटक से हैं और लोकसभा चुनाव हारने के बाद हाईकमान ने पिछले साल जून में आजाद के विकल्प के मकसद से ही राज्यसभा में लाने का फैसला किया था। राज्यसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक जयराम रमेश भी सदन में कर्नाटक का प्रतिनिधित्व करते हैं। जबकि लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी पश्चिम बंगाल और उपनेता रवनीत सिंह बिट्टू पंजाब से आते हैं। लोकसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक के सुरेश केरल से हैं। उत्तर भारत के नेताओं की उपेक्षा के सवाल पर कांग्रेस संगठन से जुड़े सूत्रों ने अनौपचारिक चर्चा में कहा कि इसे क्षेत्रीय रंग देना मुनासिब नहीं है क्योंकि संसद में पंजाब और दक्षिण के राज्यों से पार्टी के ज्यादा सदस्य हैं और ऐसे में उनकी भागीदारी भी उसी अनुरूप है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.